जगदलपुर
बस्तरवासियों की प्राणदायिनी कही जाने वाली जिस इंद्रावती के तेज प्रवाह को देखकर बोधघाट परियोजना की परिकल्पना की गई थी, वहीं इंद्रावती अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। इसके सूखने का असर अब मध्य और पश्चिम बस्तर में स्पष्ट नजर आने लगा है। इतना ही नहीं इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान सह टाइगर प्रोजेक्ट और भैरमगढ़ अभयारण्य का जनजीवन भी बेहाल हो गया है। नदी में जलसंकट का असर संभाग के 200 गांवों पर पड़ रहा है।
दण्डकारण्य का पठार के नाम से हजारों साल से चर्चित बस्तर में इंद्रावती ही एक मात्र ऐसी नदी रही है, जिसका जल प्रवाह साल में बारह महीने रहा है। पानी नहीं होने से इस पठार के 12 हजार 429 वर्ग किमी में क्षेत्र में फैला जंगल तेजी से प्रभावित हो रहा है। भूगर्भशास्त्रियों का स्पष्ट कहना है कि पहाड़ के ऊपर के मैदान को पठार कहा जाता है और पठार के जनजीवन की रक्षक वहां की नदियां ही है, जो पठार के जल स्त्रोतों को लगातार रिचार्ज करती रहती है और अगर वह सूख जाए तो उस भू भाग की विभिषिका की कल्पना ही की सकती है।
इंद्रावती के सूखने से सिर्फ जगदलपुरवासी ही नहीं अपितु बारसूर, भैरमगढ़, कुटरू, बीजापुर और भद्रकाली के रहवासियों में भी काफी नाराजगी है। जहां संभागीय मुख्यालय का करीब 13 किमी इलाका इन्द्रावती के किनारे ही है वहीं चित्रकोट, बिंता घाटी में बसे आठ ग्राम पंचायतों की करीब 24 बस्तियों के अलावा बारसूर, भैरमगढ़ अभ्यारण्य, कुटरू और पाताकुटरू तथा केरपे- बेदरे का इलाका, पूरा सेण्ड्रा वन क्षेत्र, इन्द्रावती राष्ट्रीय उद्यान, इधर तिमेड़ से लेकर भद्रकाली संगम तक लोग परेशान हैं। बस्तर जिले में इंद्रावती नदी में एनीकटों का जाल बिछने से निस्तारी जल का संकट फिलहाल कम है।