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गुजरात हाई कोर्ट ने प्रदेश की सूरत लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी मुकेश दलाल के निर्विरोध निर्वाचन को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (PIL) पर तुरन्त सुनवाई करने से इनकार कर दिया। चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस अनिरुद्ध पी मायी की खंडपीठ ने मंगलवार को याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि आपको चुनावी याचिका दायर करना था, ना कि जनहित याचिका।
याचिकाकर्ता भावेश पटेल इस याचिका पर तुरन्त सुनवाई चाहते थे, अपनी दलील में उन्होंने कोर्ट को बताया कि वे सूरत के रजिस्टर्ड मतदाता हैं, और चुनाव आयोग ने मतदान कराए बिना भाजपा के मुकेश दलाल को विजयी घोषित करते हुए जीत का प्रमाण पत्र भीदे दिया है। ऐसे में उन्हें नकारात्मक मतदान के विकल्स से वंचित कर दिया गया।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल ने कहा, ‘अगर कोई प्रत्याशी निर्विरोध चुनाव जीतता है, तो वह भी उस विजयी उम्मीदवार जैसी समान स्थिति में है, जिसे मतदान और मतगणना की प्रक्रिया के बाद विजयी घोषित किया गया है। उसकी जीत किसी अन्य श्रेणी में नहीं आती है, और उसके साथ किसी अन्य तरह का व्यवहार किए जाने का प्रावधान भी लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में नहीं है।’
चीफ जस्टिस ने कहा, ‘आप उस प्रक्रिया में कमी को उजागर कर रहे हैं, जिसके द्वारा एक उम्मीदवार को विजयी उम्मीदवार घोषित किया गया है। क्या यही आपका तर्क है? यह तर्क चुनाव याचिका के माध्यम से एक प्राधिकारी के अधिकार क्षेत्र में आता है।’
जस्टिस अग्रवाल ने कहा, ‘जब यह मामला उनके सामने सामान्य तरीके से आएगा तो वे इसे उठाएंगी और इसमें कोई जल्दबाजी की बात नहीं है, क्योंकि याचिकाकर्ता ने गलत मंच पर संपर्क किया है।’
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने वकील पर हाथ जोड़कर तत्काल सुनवाई की मांग करने पर नाराजगी भी जताई। उन्होंने कहा, ‘वकीलों से कोर्ट में हाथ जोड़ने की उम्मीद नहीं की जाती है, उन्हें अपने मुवक्किल के अधिकार के लिए लड़ना चाहिए। अगर आप किसी का पक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं, तो आपसे कभी भी हाथ जोड़ने की उम्मीद नहीं की जाती है।’
बता दें कि सूरत में कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुम्भाणी का नामांकन फॉर्म तकनीकी आधार पर खारिज होने और अन्य उम्मीदवारों के नाम वापस लेने के बाद नामांकन वापस लेने के आखिरी दिन भाजपा के उम्मीदवार मुकेश दलाल को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया था।