अवधेश कहते हैं ‘अमेठी घुमाई के मारत है और पतौ नाहीं चलै देत।’ (अमेठी याद रखती है और मौका देख के ऐसा मारती है कि अहसास तब होता है जब सामने वाला चित हो जाता है)। ठीक-ठीक तय कर पाना मुश्किल है कि ये बीजेपी के समर्थक हैं और शायद नाराज या मोहभंग की स्थित में हैं, या फिर फेंस के इधर और उधर के बीच वाले लोग। क्योंकि यह अमेठी है और यहां ऐसे लोग आपको कहीं भी मिल सकते हैं जो ज़िंदाबाद किसी की कर रहे होंगे, वोट किसी और को देने का मन बना चुके होंगे!
राहुल गांधी मैदान छोड़ गए, स्मृति ईरानी के लिए खुल्ला छोड़ दिया, कैसा लग रहा है? सामने वाले सज्जन घूर के देखते हैं और बुदबुदा के बोलते हैं- ‘अब इनहुन का संभारो’। ये अमेठी का चिरपरिचित अंदाज है। अमेठी तंज में ऐसे ही बोलती है। ज्यादा पूछने पर बोलते हैं- ‘इस बार सारा हिसाब-किताब बराबर हो जाएगा। यहां से भी राहुल ही जीतेंगे और बम्पर वोट से।’
लेकिन राहुल गांधी तो रायबरेली चले गए, यहां तो कोई किशोरी लाल शर्मा लड़ रहे हैं! कहने पर बोलते हैं, ‘वो कोई किशोरी लाल शर्मा नहीं, उनकेरी उमिर ढल गई अमेठी मा चुनाव लड़त-लड़ावत। घर-घर में घुसे हुए हैं। देखत जाव, स्मृति ईरानी के लिए वही भारी हैं। ये बात स्मृति ईरानी भी अब समझ रही हैं।’ उनके बगल में खड़े सज्जन बोल उठते हैं, “अमेठी इ दफ़ा बदला भी लेई अउर पश्चातापो (राहुल गांधी को हराने का प्रायश्चित) करी”।