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Monday, May 20, 2024

इंडिया गठबंधन का चक्रव्यूह तोड़कर हैट्रिक लगाएंगे लल्लू सिंह! फैजाबाद की खामोश

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इस साल 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन का जयघोष भारत ही नहीं पूरी दुनिया में सुनाई दिया. जनवरी के बाद से अब तक यहां रामभक्तों की कतार टूटने का नाम नहीं ले रही है. आलम ये है कि रामजन्म भूमि मंदिर ने देश के अन्य तीर्थस्थलों पर भक्तों की संख्या कम कर दी है. राम मंदिर का निर्माण भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक उपलब्धि माना जाता है. राम मंदिर निर्माण को ही जीत का बड़ा आधार मानकर बीजेपी इस बार को लोकसभा चुनाव में उतरी है. लेकिन रामनगरी अयोध्या वाले निर्वाचन क्षेत्र फैजाबाद में अभी तक कोई चुनावी सुगबुगाहट सुनाई नहीं पड़ रही है. यहां पांचवें चरण में 20 मई को वोट डाले जाएंगे.

फैजाबाद में पिछले 10 साल से बीजेपी के लल्लू सिंह का कब्जा है. पार्टी ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें मैदान में उतारा है. दोनों ही बार लल्लू सिंह का मुकाबला समाजवादी पार्टी से रहा है. इस बार समाजवादी पार्टी ने फैजाबाद लोकसभा सीट से अवधेश प्रसाद को मैदान में उतारा है. उधर, बहुजन समाज पार्टी ने सच्चिदानंद पांडेय को यहां से टिकट दिया है.

बीजेपी प्रत्याशी लल्लू सिंह जहां जीत की हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतरे हैं, वहीं इंडिया गठबंधन और बहुजन समाज पार्टी लल्लू सिंह की घेराबंदी करके उनके जीत के रथ को रोकने की रणनीति में लगे हुए हैं. यहां इंडिया गठबंधन में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन है और इस गठबंधन के तहत फैजाबाद सीट सपा के खाते में आई है. सपा के प्रत्याशी अवधेश प्रसाद वर्तमान में मिल्कीपुर से विधायक हैं और प्रदेश की पूर्व सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. उधर, लल्लू सिंह भी राजनीति के मझे हुए खिलाड़ी हैं. वे दो बार सांसद बनने से पहले पांच बार अयोध्या से विधायक रह चुके हैं. वे मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की सरकारों में मंत्री भी रह चुके हैं.

टक्कर पर अवधेश प्रसाद
अवधेश प्रसाद ने 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर सोहावल विधानसभा सीट पर जीत दर्ज करके अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की थी. हालांकि 1980 के विधानसभा चुनाव में इंदिरा कांग्रेस के प्रत्याशी से वे चुनाव हार गये थे. अवधेश प्रसाद ने 1985 में लोकदल और 1989 में जनता दल के टिकट पर फिर जीत हासिल की. 1991 में वे बीजेपी से मात खा गए. इसके बाद 1993, 1996, 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के निशान पर वे लगातार चार बार सोहावल सीट से जीते और सूबे के मंत्री भी बने.

2008 के परिसीमन के बाद सोहावल विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व खत्म हो गया और मिल्कीपुर को सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र घोषित किया गया. अवधेश प्रसाद ने मिल्कीपुर को अपनी सियासी जमीन बनाया और 2012 में मिल्कीपुर से विधायक चुने गए और कैबिनेट मंत्री भी बने. 2022 यहां से एक बार फिर जीत कर वे नौवीं बार विधायक बने और अब लोकसभा चुनाव में लल्लू सिंह को चुनौती दे रहे हैं.

फैजाबाद लोकसभा
फैजाबाद लोकसभा सीट का मिजाज हमेशा बदला-बदला सा रहता है. यहां लगभग सभी दलों को जीत मिली है. यह सीट किसी एक दल के पल्लू से लंब समय तक बंध कर नहीं रही है. लल्लू सिंह से पहले यहां 2009 में कांग्रेस के निर्मल सिंह खत्री सांसद रहे थे. 2004 में बीएसपी के मित्रसेन यादव ने जीत का झंडा बुलंद किया था. मित्रसेन ने यहां से तीन बार जीत हासिल की, लेकिन हर बार अलग-अलग चुनाव चिह्न पर. कभी कम्युनिस्ट पार्टी के बैनर तले तो कभी समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में. 1991, 1996 और 1999 के चुनाव में बीजेपी के तेजतर्रार नेता विनय कटियार ने जीत दर्ज की. 1977 में जनता पार्टी के अनंतराम जयसवाल भी चुनाव जीत चुके हैं. इस प्रकार फैजाबाद सीट पर लंबे समय तक किसी एक पार्टी का झंडा बुलंद नहीं रहा है. और बीजेपी के छोड़कर किसी और दल ने यहां से लगातार दो बार जीत हासिल नहीं की है. हां, शुरूआती दिनों में 1957 से 1971 तक लगातार यहां कांग्रेस का राज रहा था. उसके बाद सभी दलों की स्थिति आया राम-गया राम वाली ही रही है. अब देखना होगा कि बीजेपी इस स्थिति को बदल पाती है या नहीं.

फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीट आती हैं. इनमें मिल्कीपुर को छोड़कर सभी चार सीट अयोध्या, बीकापुर, रुदौली और दरियाबाद पर बीजेपी का कब्जा है. मिल्कीपुर में सपा की साइकिल दौड़ रही है.

फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या कुल 18 लाख, 96 हजार, 723 है. इनमें 9.88 लाख पुरुष और 9.08 लाख महिला मतदाता हैं. चुनावी मुद्दों की बात की जाए तो यहां रोजगार के साधन कम हैं. इस क्षेत्र का औद्योगिक विकास काफी धीमी रफ्तार से है. हालांकि, राम मंदिर बनने से एक धार्मिक पर्यटन नगरी के रूप में अयोध्या जरूर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक उठी है. रोजाना लाखों की तादाद में श्रद्धालुओं के आने से यहां के लोगों को पर्यटन से जुड़े तमाम रोजगार के अवसर मिले हैं. लेकिन धार्मिक पर्यटन को छोड़कर यहां को ऐसा मजबूत कारोबार उभर कर नहीं आया, जो बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार दे सके.

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