मुंबई. संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज ‘हीरामंडी: द डायमंड बाज़ार’ की सराहना और आलोचना गोनों हो रही है. कुछ लोग इस सीरीज की तारीफ कर रहे हैं, तो कुछ कास्टिंग, परफॉर्मेंस और कहानी को लेकर आपत्ति जता रहे हैं. डायरेक्टर विवेक रंजन अग्निहोत्री ने हाल ही में सीरीज की आलोचना की. उन्होंने एक्स पर ट्वीट में लिखा कि यह सीरीज वेश्याओं के जीवन का महिमामंडन करती है जबकि वेश्यालय मानवीय अन्याय, दर्द और पीड़ा की निशानी हैं. विवेक की इस आलोचना पर सीरीज की एडिशनल डायरेक्टर ने प्रतिक्रिया दी है.
न्यूज 18 शोशा को दिए इंटरव्यू ‘हीरामंडीः द डायमंड बाजार’ स्नेहिल दीक्षित मेहरा ने विवेक अग्निहोत्री के पोस्ट पर कहा,“मेरा मानना है कि उन्होंने शो नहीं देखा है. ‘हीरामंडी’ तवायफों के महिमामंडन के बारे में नहीं है. यह शो 1920 और 1940 के दशक की पृष्ठभूमि पर आधारित है. उस समय तवायफ़ों का बोलबाला था.”
स्नेहिल दीक्षित ने न्यूज18 को उस रिसर्च के बारे में बताया जो संजय लीला भंसाली ने राइटर्स की टीम के साथ मिलकर किया था. स्नेहिल ने खुलासा किया कि डेटा से पता चला है कि तवायफों के साथ ‘रानियों’ की तरह व्यवहार किया जाता था और हीरामंडी सही ढंग से बताती है कि उसने क्या निर्धारित किया था.
विवेक अग्निहोत्री का ट्वीट. (फोटो साभार: Twitter)
नवाबों से ज्यादा टैक्स देती थीं तवायफें
स्नेहिल दीक्षित कहती हैं, “हमने शो बनाने से पहले बहुत रिसर्च किया. हमें अपने शोध के दौरान एक नजरिया मिली, जो यह था कि ये तवायफें इतनी अमीर थीं कि जब उन्होंने अपने संख्या में हेराफेरी की, तब भी वे नवाबों की तुलना में अधिक कर चुका रही थीं. उनके पास इतना धन और ताकत थी कि उनका नवाबों और राजनेताओं पर इतना प्रभाव था कि वे इन महिलाओं से सलाह लेने आते थे.”
पर्दे में रहती थी नवाबों और शासकीय परिवारों की महिलाएं
स्नेहिल दीक्षित कहती है, “उस समय, शासकीय परिवारों की लड़कियों को पर्दे में रखा जाता था और उन्हें तालीम लेने की अनुमति नहीं थी. लेकिन तवायफ़ों के पास हर चीज़ पर तालीम थी- वे कला सीख सकती थीं, पढ़ और लिख सकती थीं. वे बहुत तेज तर्रार महिलाएं थीं. समाज में उनकी बहुत शक्तिशाली स्थिति थी.”
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FIRST PUBLISHED : May 7, 2024, 10:01 IST