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Saturday, July 27, 2024

कुम्हार मोहल्ले में बढ़ी रौनक! बुजुर्ग ने बताई वर्षो में कैसे बदल गई मिट्टी के बर्तन बनाने की विधि 

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गाजियाबाद: गर्मी के मौसम में मिट्टी के घड़े का पानी पीने से एक अलग ही सुकून मिलता है. जैसे ही ये मौसम आता है तो कुम्हारों के चेहरे खिल उठते हैं. ऐसा ही कुछ गाजियाबाद के सबसे पुराने कुमार मोहल्ले जटवाड़ा में देखने को मिला है. यहां कई परिवार पेशे से मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य करते आ रहे हैं. इस मोहल्ले में बाजारों के मुकाबले सस्ते दामों में मिट्टी के बर्तन मिल जाते हैं.

यह मोहल्ला करीब 100 वर्षों से भी ज्यादा पुराना है. इस गली में आते ही शहर के बीचो-बीच गांव का एहसास होने लगता है. छोटी-छोटी गलियां, खुले हुए दरवाजे और गीली मिट्टी की भीनी भीनी खुशबू हवा में जैसे घुल सी जाती है. छोटे बच्चे हो या फिर 85 साल के बुजुर्ग सभी के हाथ मिट्टी में सने हुए और चेहरे पर पसीना दिख रहा है. ये अपनी मेहनत से वस्तु को तराश कर बाजारों में बेचते हैं. इस मोहल्ले को गाजियाबाद के कुम्हारों के मोहल्ले के नाम से जाना जाता है. यहां पर करीब 20 से भी ज्यादा परिवार मिट्टी के बर्तन बनाने के पेशे से जुड़ा हुआ है. यह यहां का मुख्य रोजगार भी है.

तकनीक ने बदल दी कुम्हारों की तस्वीर
86 वर्षीय खेमचंद अपना तजुर्बा बताते हुए भावुक हो गए. वह बताते हैं कि पहले पत्थर की चाक हुआ करती थी. उसी से मिट्टी के बर्तन बनाए जाते थे. इसके बाद बिजली से चलने वाली चाक आ गई और फिर उसी से कम होने लगा. पहले सिर्फ मिट्टी के बर्तन ही हर घर की रसोई में दिखते थे. फिर धीरे-धीरे इस इंडस्ट्री की जगह प्लास्टिक, स्टील आदि के बर्तन ने ले ली. इस मोहल्ले में मिट्टी के बर्तन बाजारों के मुकाबले काफी सस्ती खरीदने को मिल जाते है. इसके साथ ही यहां पर क्वालिटी भी काफी अच्छी होती है.

खेमचंद आगे बताते हैं कि इन दिनों पानी के घड़े और कुल्हड़ ज्यादा खरीदे जा रहे हैं. पानी का घड़ा यहां पर 60 रुपये से शुरू होकर डेढ़ सौ रुपये तक है. वहीं, कुल्लड़ का भी इन दिनों काफी चलन है. क्योंकि लस्सी और चाय की दुकानों में ज्यादा देखने को मिलते हैं.

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FIRST PUBLISHED : May 1, 2024, 13:23 IST



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