बलिया: इस शहर को तपोस्थली, भृगु नगरी, मोक्षदायिनी धरा और दर्दर क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है, संत-महात्माओं की पवित्र भूमि रही है. इसी धरती पर त्रिदंडी स्वामी जैसे महात्मा का जन्म हुआ, जिन्हें उनके अनुयायी देवता की तरह पूजते हैं. ये कांची पीठ द्वारा दीक्षित संत थे और उनकी ख्याति आज भी पूरे देश में फैली हुई है.
प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय का कहना है कि त्रिदंडी स्वामी के आशीर्वाद से लाखों लोगों को धन, संतान, नौकरी, व्यापार, और पुत्र की प्राप्ति हुई है. उनके चमत्कार और यज्ञों से प्रभावित लोग आज भी उन्हें भगवान के रूप में पूजते हैं.
त्रिदंडी स्वामी का जन्म और प्रारंभिक जीवन
भृगुक्षेत्र महात्म्य के अनुसार, त्रिदंडी स्वामी का जन्म बक्सर (बिहार) के सिसराढ गांव में सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम पं. नारायण चतुर्वेदी और माता का नाम इन्दिरा देवी था. वैशाख कृष्ण द्वितीया को रात्रि 11:24 बजे इनका जन्म हुआ. बाल्यावस्था में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया, जिसके बाद उनके दादाजी पं. जोधन चौबे ने उनका पालन-पोषण किया.
शिक्षा और दीक्षा
त्रिदंडी स्वामी, जिनका बचपन का नाम बैजनाथ चौबे था, ने बचपन में ही बक्सर के श्री निवास विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद वे आचारी पाठशाला कोइरीपुरा (बक्सर) से मध्यमा और काव्यतीर्थ की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किए. स्वामीजी ने साहित्याचार्य की परीक्षा में भी प्रदेश स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया. इसके बाद उन्होंने उपनिषदों और व्याकरण का गहन अध्ययन किया.
कांची पीठ से दीक्षा और चमत्कारिक यज्ञ
त्रिदंडी स्वामी ने कांची पीठाधीश्वर मदनन्ताचार्य स्वामी से त्रिदंडी संन्यासी की दीक्षा ग्रहण की. इसके बाद उन्होंने कई लौकिक और अलौकिक चमत्कार किए, साथ ही सैकड़ों यज्ञ भी कराए. बलिया में उनके लाखों शिष्य बने, और उनके द्वारा स्थापित स्मृति मंदिर ‘त्रिदंडिदेव धाम’ नगवां गांव में स्थित है. कहा जाता है कि जो भी यहां आता है, उसकी मुरादें पूरी होती हैं. आज भी त्रिदंडी स्वामी की स्मृति उनके अनुयायियों के दिलों में जीवित है, और बलिया की भूमि पर उनका नाम आदर और श्रद्धा से लिया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : October 23, 2024, 13:39 IST