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Saturday, July 27, 2024

विपक्ष को खारिज कर बीजेपी की जीत को जो तय मान रहे थे, अब वह भी कहने को मजबूर हैं शाबाश 'इंडिया'!

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फरवरी में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विजयी भाव वाले दिख रहे थे, तो इसकी वजह थी। संसद में अंतरिम बजट पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए उन्होंने यह चाह जताई थी कि अधिकांश विपक्षी सदस्य चुनाव बाद दर्शक दीर्घा में नजर आएंगे। उन्होंने कहा था कि कई विपक्षी सदस्य चुनाव लड़ने से बचेंगे और बचने के लिए राज्यसभा का रास्ता लेंगे। उन्होंने घोषणा की थी कि उनकी सरकार की तीसरी पारी शुरू होने में महज 125 दिन बचे हैं; एनडीए का आंकड़ा 400 पार करेगा और बीजेपी अपने दम पर कम-से-कम 370 सीटें पाएगी।

नहीं लग रहा था कि वह संसद में हैं, लगता था कि वह किसी राजनीतिक रैली को संबोधित कर रहे हैं। उन्होंने विपक्ष की मांग के बावजूद महंगाई और बेरोजगारी-जैसे मुद्दों पर बोलने से लगभग तिरस्कारपूर्वक मना ही कर दिया। इसकी जगह उन्होंने  ‘लोकतंत्र के मंदिर’ में ऐसे सेंगोल की स्थापना कर नए संसद भावन का देश को ‘उपहार’ देने की बात की जो, दरअसल, मध्यकालीन समय का, शासन का सामंतवादी प्रतीक है।

सच कहें, तो विपक्ष मुश्किल में दिख भी रहा था। सीटों के बंटवारे का मसला मुश्किल में था। जनवरी के मध्य में ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक बीच में छोड़कर निकल जाने और एक पखवारे बाद ही बीजेपी से हाथ मिला लेने वाले नीतीश कुमार ने दावा किया कि उन्होंने कोशिश की, पर गठबंधन को कामलायक बनाने में विफल रहे। ममता बनर्जी ने घोषणा की कि उनकी तृणमूल कांग्रेस बंगाल में अकेले ही लड़ेगी। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पंजाब में सीटों के बंटवारे की संभावना से बिल्कुल इनकार कर दिया था। केरल में लेफ्ट और कांग्रेस किसी तरह साथ नहीं आने वाले थे। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने सबको ऊहापोह में रखा और अंततः, ‘इंडिया’ गठबंधन से अलग रहने की अपनी इच्छा की घोषणा की। ऐसे में, ‘इंडिया’ गठबंधन अधर में लग रहा था।



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