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Saturday, March 22, 2025

धान के ये 6 खतरनाक रोग कर देंगे आपकी सारी मेहनत बर्बाद, एक्सपर्ट से जानें लक्षण और बचाव

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रायबरेली. धान की फसल का सीजन चल रहा है. धान की फसल खरीफ सीजन की मुख्य फसल मानी जाती है. बरसात शुरू होने के साथ ही किसानों ने धान की रोपाई भी शुरू कर दी है. किसान धान की फसल की अधिक पैदावार के लिए तरह-तरह के जैविक एवं रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते हैं. जिससे कि उनकी फसल की पैदावार में बढ़ोतरी हो सके. परंतु धान की फसल में रोग लगने का खतरा ज्यादा रहता है. जिसको लेकर किसान चिंतित रहते हैं.लेकिन अब उन्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.क्योंकि आज हम उन्हें इस फसल में लगने वाले प्रमुख रोग एवं उनसे बचाव के तरीके के बारे में बताने जा रहे हैं.

गौरतलब है कि धान की फसल में प्रमुख रूप से 6 प्रकार के रोग लगने का खतरा रहता है. जो फसल की ग्रोथ को प्रभावित करने के साथ ही फसल की पैदावार पर भी असर डालते हैं. तो लिए कृषि विशेषज्ञ से जानते हैं.इन रोगों से अपनी फसल को किस प्रकार से बचाया जा सकता है.

कृषि के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव रखने वाले रायबरेली के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के प्रभारी अधिकारी कृषि शिव शंकर वर्मा (बीएससी एजी डॉ.राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद) बताते हैं कि धान की फसल हमारे देश की खाद्यान्न फसलों में से प्रमुख फसल मानी जाती है. खरीफ के सीजन में होने वाली यह फसल किसानों के लिए मुनाफे वाली फसल होती है. परंतु इसमें कई प्रकार के रोग लगने का खतरा बना रहता है.

धान के प्रमुख रोग और उपचार
खैरा रोग : यह रोग पौधा रोपण के 2 सप्ताह बाद पुरानी पत्तियों के आधार भाग में हल्के पीले रंग के धब्बे होना शुरू हो जाते हैं.इस रोग का प्रकोप होने पर पौधा बौना हो जाता है .खैरा रोग से बचाव के लिए किस खेत में 20 से 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर कि दर से रोपाई के पहले खेत में प्रयोग करें.

झुलसा रोग: पौधारोपण से लेकर दाने बनने तक की अवस्था में इस रोग के लगने का खतरा ज्यादा रहता है. यह पौधे की पत्तियां तने की गांठ पर इसका प्रकोप ज्यादा होता है .इसका प्रकोप होने पर पौधे पर गहरे भूरे रंग के साथ ही सफेद रंग के धब्बे हो जाते हैं. झुलसा रोग से बचाव के लिए किसान बुवाई से पहले बीज का उपचार करें जिस पौधे पर क्या लोग दिखाई दे उसे उखाड़ कर फेंक दें.

पर्ण चित्ती या भूरा धब्बा : यह रोग मुख्य रूप से पत्तियों पर्णछंद तथा दानों को प्रभावित करता है. पत्तियों पर गोल अंडाकार अतः कर छोटे भूरे धब्बे बनते हैं और पत्तियां झुलस जाती हैं.इस रोग से बचाव के लिए किसान बुवाई से पहले बीज का उपचार करें जिस पौधे पर क्या लोग दिखाई दे उसे उखाड़ कर फेंक दें.

जीवाणु पत्ती झुलसा रोग: यह मुख्य रूप से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में ज्यादा प्रभावी होता है . इस मौसम में धान की फ़सल में जीवाणु पत्ती झुलसा रोग के आने की संभावना है. यदि धान की खड़ी फ़सल में पत्तियों का रंग पीला पड़ रहा हो तथा इन पर धब्बे बन रहे हों तो सावधान हो जाएं. सकी वजह से आगे जाकर पूरी पत्ती पीली पड़ने लग जाएगी. इसकी रोकथाम के लिए कांपर हाइड्रोक्साइड @1.25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 150 लीटर पानी में मिलाकर 10-12 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.

कंडुआ (फाल्स स्मट) : कंडुआ (फाल्स स्मट) अक्तूबर से नवंबर तक धान की अधिक उपज देने वाली प्रजातियों में आता है. जिस खेत में यूरिया का प्रयोग अधिक होता है और वातावरण में काफी नमी होती है उस खेत में यह रोग प्रमुखता से आता है. धान की बालियों के निकलने पर इस रोग का लक्षण दिखाईं देने लगता है. इस रोग से बचाव के लिए नमक के घोल में धान के बीजों को उपचारित करें. बीज को साफ कर सुखाने के बाद नर्सरी डालने के समय कार्बेन्डाजिम-50 डब्ल्यूपी दो ग्राम या दो ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करें व यूरिया अधिक न डालें.

शीथ झुलसा(अंगमारी)रोग: इस रोग का प्रमुख कारक रा‌इजोक्टोनिया सोलेनाइन नामक फफूंदी से फैलता है. पौधे के आवरण पर अंडाकार जैसा हरापन, उजला धब्बा हो जाता है. जल की सतह के ऊपर पौधे में यह रोग प्रभावी होता है.शीथ झुलसा की अवस्था में नाईट्रोजन का प्रयोग कम कर देना चाहिए. इसके अलावा जिस खेत में झुलसा रोग लगा है उस खेत का पानी दुसरे खेत में नहीं जाना चाहिए. खेत में रोग को फैलने से रोकने के लिए खेत से समुचित जल निकास की व्यवस्था की जाए तो रोग को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.

Tags: Agriculture, Local18, Rae Bareli News, Uttar Pradesh News Hindi



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