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Saturday, October 19, 2024

तुरंत रिहा करो; गुजरात के मुस्लिम धर्मगुरु को SC से मिली राहत, हिरासत को किया रद्द

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सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम धर्मगुरु मुफ्ती मोहम्मद सलमान अजहरी को बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने गुजरात असामाजिक गतिविधि रोकथाम अधिनियम (पीएएसए), 1985 के तहत उनकी हिरासत को रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ मौलवी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

Sneha Baluni लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 19 Oct 2024 07:49 AM
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सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम धर्मगुरु मुफ्ती मोहम्मद सलमान अजहरी को बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने गुजरात असामाजिक गतिविधि रोकथाम अधिनियम (पीएएसए), 1985 के तहत उनकी हिरासत को रद्द कर दिया है। जस्टिस विक्रम नाथ और प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने कहा, ‘रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री को देखने के बाद हमें लगता है कि हिरासत के आदेश को बरकरार नहीं रखा जा सकता क्योंकि ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह सजेक्ट करे कि अपीलकर्ता द्वारा दिए गए भाषण से किसी भी तरह से सार्वजनिक व्यवस्था बाधित हुई है।’

29 जुलाई 2024 को, गुजरात हाईकोर्ट ने जूनागढ़ जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी 16 फरवरी, 2024 के अजहरी के हिरासत आदेश को बरकरार रखते हुए कहा था कि ‘वर्तमान मामले में रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री यह मानने के लिए पर्याप्त है कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति की कथित पूर्वाग्रही गतिविधियों ने अधिनियम की धारा 4(3) के अंदर सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव को या तो प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है या उसके प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने की संभावना है।’

इस आदेश के खिलाफ मौलवी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अजहरी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील हुजेफा ए अहमदी ने कहा कि हिरासत में लेने वाले अधिकारी द्वारा जिस सामग्री पर भरोसा किया गया है, वह यह निष्कर्ष निकालने के लिए अपर्याप्त है कि उनकी गतिविधियां सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव के लिए हानिकारक थीं।

गुजरात की तरफ से कोर्ट में पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू और वकील स्वाति घिल्डियाल ने हिरासत को उचित ठहराने की मांग की। अपील को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हिरासत पर हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि अजहरी को ‘तुरंत रिहा किया जाए।’ हिरासत में लेने वाले अधिकारी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज दो एफआईआर और उक्त अपराधों के संबंध में पेश सामग्री पर विचार किया और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि याचिकाकर्ता की गतिविधियां पूर्वाग्रहपूर्ण थीं।



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