UP STF Story: अभी यूपी के पंकज यादव और अनुज प्रताप सिंह का एनकाउंटर चर्चा में है. जब एसटीएफ ने पंकज यादव का एनकाउंटर किया तो समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने एसटीएफ पर यादवों के एनकाउंटर का अरोप लगाया, तो वहीं जब अनुज प्रताप सिंह का एनकाउंटर हुआ, तो उनके परिजनों ने अपने बेटे को योगी अखिलेश की राजनीति का शिकार बताया. असल में यूपी के सुल्तानपुर में इसी महीने एक ज्वैलरी की दुकान में डकैती हुई थी. यूपी पुलिस की एसटीएफ ने ज्वेलर्स की दुकान पर डकैती के आरोपी दो बदमाशों को एनकाउंटर में ढेर कर दिया. इनमें से एक मंगेश यादव का एनकाउंटर 5 सितंबर को हुआ जिसके बाद अखिलेश यादव ने सीएम योगी आदित्यनाथ व यूपी एसटीएफ पर यादव विरोधी होने का आरोप लगा दिया.
अभी इस पर सियासत चल ही रही थी कि इसी बीच 23 सितंबर को यूपी एसटीएफ ने इस मामले में फरार चल रहे अनुज सिंह का एनकाउंटर कर दिया. इसके बाद तो एसटीएफ को लेकर तरह तरह की बातें होने लगी. तो आइए आपको बताते हैं एक ऐसा ही किस्सा, जिससे आज के एसटीएफ की नींव पड़ी या यूं कहिए कि यही वो घटना थी, जिससे आज की एसटीएफ का जन्म हुआ. सच पूछिए तो एसटीएफ के कारनामों से अधिक रोचक उसके गठन का किस्सा है.
‘बाबूजी, आपके दिन लद गए…’
ये बात है 90 के दशक की. 90 के दशक में यूपी में सियासत के साथ साथ अपराध व माफियागिरी भी कदमताल कर रही थी. तब उत्तर प्रदेश की बागडोर भाजपा के कददावर नेता कल्याण सिंह के हाथों में हुआ करती थी. कल्याण सिंह तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. सूबे की राजधानी में सरेआम एक के बाद एक हत्याएं हुईं. जनवरी 1997 में लाटूश रोड पर लॉटरी कारोबारी विवेक श्रीवास्तव की सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई. 31 मार्च 1997 को दिनदहाड़े वीरेन्द्र शाही को गोलियों से भून दिया गया. एक अगस्त 1997 को लखनऊ के दिलीप होटल में तीन लोगों की हत्या कर दी गई. मई 1997 में, लखनऊ के नामी बिल्डर मूलराज अरोड़ा का हजरतगंज से अपहरण कर लिया गया और करीब 2 करोड़ रुपये की फिरौती वसूली गई. इन सभी घटनाओं के पीछे सिर्फ एक नाम था वह था माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला का.
कहा जाता है कि श्रीप्रकाश शुक्ला की परवरिश गोरखपुर के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी की नर्सरी में हुई थी, लेकिन यह चेला अपने गुरू का भी वफादार नहीं निकला और बागी हो गया. वह अब अपना वर्चस्व बनाना चाहता था, लिहाजा गुरु अलगाव हो गया. इसी बीच उत्तर प्रदेश की सियासत में एक धमकी सुनाई दी वह यह थी कि ‘बाबूजी, आपके दिन लद गए.’उस समय उत्तर प्रदेश की राजनीति में दो नेताओं को बाबूजी के नाम से बुलाया जाता था. एक सूबे के सीएम कल्याण सिंह और दूसरे हरिशंकर तिवारी को. और यह धमकी किसी और की ओर से नहीं आई थी, बल्कि इसके पीछे भी वही नाम था यानि श्रीप्रकाश शुक्ला का.
बाबूजी के कानों तक पहुंची धमकी
श्रीप्रकाश शुक्ला की इस धमकी ने सियासत से लेकर नौकरशाहों की धड़कनें बढ़ा दीं. कयास यह लगाया जाने लगा कि यह धमकी तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह यानि बाबूजी को दी गई है. यह बात बाबूजी यानि कल्याण सिंह के कानों तक भी पहुंच गई. घबराए बाबूजी ने आनन-फानन में प्रदेश के सभी टॉप अधिकारियों की मीटिंग बुलाई. इस मीटिंग के प्रदेश के तत्कालीन गृह विभाग के प्रमुख सचिव राजीव रतन शाह भी थे. वह दो दिन पहले ही न्यूयॉर्क से लौटे थे. उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और डीजीपी के अलावा उस समय के तेज तर्रार आईपीएस अरुण कुमार को भी इस बैठक में बुलाया गया था.
‘अब किसी ने मेरी ही सुपारी ले ली’
सारे अफसर मुख्यमंत्री आवास तो बैठे थे, लेकिन मन उनका उधेडबुन में लगा था. वह सिर्फ यही सोच रहे थे कि आखिर सीएम ने अचानक मीटिंग क्यों बुलाई वह भी सभी टॉप अफसरों की. तरह तरह के विचार मन में आ रहे थे कि इसी बीच कुर्ता धोती पहने मुंह में पान चबाते हुए मुख्यमंत्री कल्याण सिंह मीटिंग रूम में दाखिल हुए. सीएम को देखकर सभी अफसर खड़े होने लगे, लेकिन कल्याण सिंह ने उनकी ओर बैठने का इशारा किया और खुद बिना किसी औपचारिकता के खड़े-खड़े ही अपनी बात कहनी शुरू कर दी. उस समय के अधिकारी बताते हैं कि मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपने दांतों से सुपारी तोड़ते हुए कहा- ‘मैं रोज आठ दस सुपारी लेता हूं और चबा जाता हूं, लेकिन अब किसी ने मेरी ही सुपारी ले ली. यह बड़ी बात है.’
हक्का बक्का रह गए अधिकारी
सीएम के मुंह से ये बात सुनते ही सारे अधिकारी हक्का बक्का रह गए. सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे. कोई बगले झांकने लगा. मुख्यमंत्री का चेहरा और हाव भाव काफी सख्त था. अधिकारियों को समझते देर नहीं लगी. अभी कोई आगे की बात होती तभी तत्कालीन गृह विभाग के प्रमुख सचिव व आईएएस राजीव रतन शाह बोल पडे. उन्होंने सीएम से कहा कि न्यूयॉर्क में इसी तरह के अपराधियों से निपटने के लिए एक स्पेशल टीम का गठन किया गया है जिसे स्पेशल टॉस्क फोर्स यानि एसटीएफ कहा जाता है. हम भी ऐसे अपराधियों के लिए यहां भी क्यों न एसटीएफ बना दें. मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के मुंह से निकला अगला वाक्य था- बना दो.
कैसे होगा काम
मीटिंग में अब अगला सवाल यह उठा कि इसका काम कैसे होगा. जिसका जवाब देते हुए राजीव रतन शाह ने कहा कि इसमें ईमानदार व जुनून वाले अफसरों को रखना होगा. मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सहमति मिलते ही रातों रात एडीजी रैंक के आईपीएस अधिकारी अजय राज शर्मा को बुलाया गया. उनकी एसटीएफ का मुखिया बना दिया गया. उनके साथ 17 पुलिस अफसरों को लगाया गया, जिसमें आईपीएस अरुण कुमार राजेश पांडे सत्येंद्र वीर सिंह आदि शामिल रहे. और इस तरह 4 मई 1998 को यूपी में स्पेशल टॉस्क फोर्स का गठन हो गया.
तब भी मचा था बवाल
ऐसा नहीं कि एसटीएफ को लेकर तब राजनीतिक बवाल नहीं मचा था. उस समय भी एसटीएफ की कार्रवाई को लेकर जमकर राजनीति हुई. असल में उस समय भी एसटीएफ की टीम ने कई एनकाउंटर किए. मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सभी विरोधों से किनारा कर लिया और एसटीएफ अपने मिशन में जुटी थी. इसी बीच एसटीएफ की टीम को श्रीप्रकाश शुक्ला के दिल्ली और गाजियाबाद के बीच होने की सूचना मिली. एसटीएफ ने गाजियाबाद के मोहन नगर से वैशाली जाने वाले रास्ते पर रेलवे ओवरब्रिज के पास घेराबंदी की और श्रीप्रकाश शुक्ला को 22 सितंबर 1998 को एनकाउंटर में मार गिराया.
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FIRST PUBLISHED : September 28, 2024, 08:03 IST