बस्ती: भारत में धान (चावल) की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, जिसकी मांग विदेशों में भी काफी होती है. खरीफ सीजन की इस फसल में सितंबर से नवंबर तक कई प्रकार के रोग लगने का खतरा रहता है, जो उत्पादन को काफी कम कर सकते हैं, कभी- कभी पूरी फसल भी चौपट हो सकती है. ऐसा होने पर किसानों को भारी नुकसान होने की संभावना रहती है. आज हम आपको इन रोगों के बारे में बताने जा रहे हैं. ये कैसे फैलते हैं और इनसे कैसे फसल को बचाया जा सकता है. इस लेख में हम धान के दो प्रमुख रोगों गंधी कीट और हल्दिया रोग पर चर्चा करेंगे और बताएंगे कि उनके प्रभाव और रोकथाम के क्या उपाय हैं.
गंधी कीट
कृषि रक्षा अधिकारी बस्ती रतन शंकर ओझा लोकल 18 से बातचीत में बताते हैं कि गंधी कीट एक प्रमुख कीट है, जो धान की फसल को नुकसान पहुंचाता है. इसके शिशु और वयस्क दोनों बालियों में बन रहे कच्चे दानों से रस चूसते हैं. इसके परिणामस्वरूप, बालियों में दाना विकसित नहीं हो पाता, जिससे फसल की उपज में कमी आती है. इस कीट का वयस्क रूप तीखी गंध छोड़ता है, जिससे फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
रोकथाम के उपाय
कृषि रक्षा अधिकारी रतन शंकर ओझा ने बताया कि धान के मेढ़ी पर लगे मोथा में ये गंधी कीट अंडे देते हैं इसे उखाड़ फेंकने पर यह रोग लगने के चांस कम रहता है. गंधी कीट के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए, किसान प्रति एकड़ 15-17 किलोग्राम मैलाथियान 2% का छिड़काव कर सकते हैं. यह कीटनाशक इस कीट के विकास और फैलाव को रोकने में मदद करता है. छिड़काव का समय और तरीका भी महत्वपूर्ण होता है ताकि कीटों के जीवन चक्र के विभिन्न चरणों में प्रभावी रूप से नियंत्रण पाया जा सके.
हल्दिया रोग
कृषि रक्षा अधिकारी बस्ती रतन शंकर ओझा लोकल 18 से बातचीत में बताते हैं कि हल्दिया रोग विशेष रूप से हाइब्रिड वैरायटी में अधिक दिखाई देता है. यह रोग फसल के कुछ दानों पर असर डालता है, जिससे प्रभावित घाव बड़े और गांठदार आकार के बन जाते हैं. रोगग्रस्त बीज जब अंकुरित होते हैं, तो उनमें नारंगी रंग का कवक दिखाई देता है. शुरुआत में ये घुंघरू सफेद होते हैं, फिर पीले और अंततः काले हो जाते हैं. यह रोग किसानों के लिए गंभीर चिंता का विषय है. क्योंकि यह फसल की उत्पादकता को प्रभावित करता है. हल्दिया रोग से प्रभावित फसलों में दाने का आकार छोटा और गुणवत्ता खराब हो जाती है.
रोकथाम के उपाय
हल्दिया रोग को नियंत्रित करने के लिए प्रोपिकोनाजोल 25% का 500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर का उपयोग किया जा सकता है. यह फंगीसाइड कवक के विकास को रोकने में मदद करता है और फसल की स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक होता है.
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FIRST PUBLISHED : October 31, 2024, 10:35 IST