मथुरा. वृंदावन की रज भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मस्तक से स्पर्श कर ब्रज रज की महिमा को एक अलग ही पहचान दी. वृंदावन की रज श्रीजी के चरणों से कृतार्थ हो गई. मान्यता है कि यहां की रज को स्वयं श्रीकृष्ण ने अपने हाथों से उठाकर अपने मस्तक पर लगाया था. ब्रज रज की महिमा का यहां के संतों ने क्या खूब वर्णन किया है. वृंदावन का जर्रा-जर्रा राधाकृष्ण की लीलाओं से ओतप्रोत है. यहां हर कदम पर आपको राधाकृष्ण की लीलाओं के दर्शन हो जाएंगे. यहीं वजह है कि वृंदावन की रज को यहां लोग अपने मस्तक पर बड़े ही गर्व के साथ लगाते हैं.
वृंदावन की रज की क्या मान्यता है, यह किशनदास महाराज ने लोकल 18 को बताई. उन्होंने कहा कि ब्रज रज की अपनी ही अलग महिमा है. भगवान श्रीकृष्ण और लाडली जूं वृंदावन की रज में अठखेलियां करते थे. राधा रानी नंगे पैर यहां की मिट्टी में विचरण किया करती थीं. भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं राधा रानी के चरणों की धूल (रज) लेकर अपने हाथों से अपने मस्तक पर लगाई थी. महाराज जी बताते हैं कि कान्हा ने उनकी चरणों की रज को चखा था. यहां की रज को अगर कोई लेकर जाना चाहता है, तो वह पहले अपने गुरु से आज्ञा ले. उसके बाद यहां की रज को प्रणाम कर उनसे यह विनती करें कि आप मेरे साथ चलिए, तो ही वह वृंदावन की रज को लेकर जा सकता है. उन्होंने कहा कि व्यक्ति एक चुटकी रज ही लेकर जा सकता है.
किशनदास महाराज ने यह भी कहा कि ब्रज रज का व्यापार करना गलत है. ब्रज रज का किसी भी तरह का व्यापार करना अपराध है. परमिशन लेकर भी यहां की रज को बेचा नहीं जा सकता. अगर कोई भी व्यक्ति ऐसा करता है, तो उसे राधा रानी के प्रकोप से कोई नहीं बचा सकता. उनका विनाश होना सुनिश्चित है.
FIRST PUBLISHED : June 19, 2024, 15:18 IST