हाथरस: भोले बाबा उर्फ सूरजपाल के सत्संग में मचे भगदड़ में अब मरने वालों की संख्या 121 हो गई है. इस घटना को लेकर लगातार राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. हाथरस सहित आस-पास के कई जिलों में मची चीख-पुकार के बीच योगी सरकार के पिछले कार्यकाल के दौरान डीजीपी रहे ओ पी सिंह ने भी बड़ा बयान दिया है. न्यूज 18 हिंदी के साथ बातचीत में सिंह कहते हैं हाथरस हादसा दुर्भाग्यपूर्ण, निंदनीय और कई प्रश्नों को जन्म देती है. इस तरह की घटनाएं नहीं होनी चाहिए. इस घटना को लेकर सबसे पहले हमको यह पता लगाना होगा कि चूक आखिर कहां हुई? जिससे भविष्य में इस तरह की और घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं हो सके. इस हादसा के जांच के दायरे में सभी स्टेक होल्डर चाहे वह व्यवास्थपक हों, पुलिस और एडमिनिस्ट्रेशन के अधिकारी आएंगे.
ओपी सिंह कहते हैं, ‘उत्तर प्रदेश एक बहुत बड़ा प्रदेश है. यहां हर साल 70 हजार से ज्यादा धार्मिक आयोजन होते हैं. हर छठे साल प्रयागराज में कुंभ मेला लगता. कुंभ जैसे मेले में करोड़ों लोग आते हैं. लेकिन, हाल के वर्षों में जब कुंभ कोई इस तरह की नहीं हुई तो हाथरस के लाख-डेढ़ लाख की भीड़ में इतने बड़े पैमाने पर मौत क्यों हुई?’ सिंह कहते हैं, देखिए क्राउड मैनेजमेंट पुलिस और सरकार के लिए एक बड़ा विषय है. इस तरह की धार्मिक आयोजनों के लिए आयोजक जब परमिशन मांगता है तो हमें रिस्क एनालेसिस और क्राउड मैनेजमेंट का भी ध्यान देना चाहिए. जैसे इवेंट मैनेजमेंट आयोजकों की तरह से क्या रहेगा? प्रशासन की तरह से क्या-क्या बंदोबस्त किए जाएंगे? भीड़ में आने वाले लोगों के लिए क्या फैसिलिटी होनी चाहिए और कौन क्या देगा? कितनी भीड़ी जुटेगी, पिछले साल अगर इस तरह का आयोजन हुआ है तो कितनी भीड़ जुटी थी? ये प्लानिंग होनी चाहिए. जो हाथरस में नजर नहीं आई.
पूर्व डीजीपी के मुताबिक चूक यहां हुई
सिंह भीड़ के बारे में बात करते हुए कहते हैं, देखिए, क्राउड का वैज्ञानिक विश्लेषण करना जरूरी है. क्राउड वाली जगह पर लोगों का मुवमेंट क्या होगा? आपको बता दें कि अगर हमलोग कुंभ जैसे आयोजनों को जब अच्छे से कर सकते हैं तो लाख-डेढ़ लाख की भीड़ का मैनेजमेंट क्यों नहीं कर सकते? देखिए किसी भी प्रकार के आयोजन के लिए प्रशासनिक अनुमति लेना अनिवार्य है. चाहे वह क्रिकेट का मैच हो या धार्मिक सभा. इसमें आयोजकों की जिम्मेदारी होती है कि वह प्रशासन से भीड़ जुटाने की अनुमति लें. हालांकि, प्रशासन तभी परमिशन देता है जब वह सभी एंगल से संतुष्ट हो जाता है. प्रशासन चाहे तो लॉ एंड ऑर्डर जैसे विषयों को हवाला देकर परमिशन नहीं भी दे सकता है या फिर परमिशन देने के बाद भी रद्द कर सकता है.
सिंह आगे कहते हैं, ‘भीड़ के रुकने का स्थान क्या होगा? आवाजाही की सुविधा, मौसम का हाल सहित बहुत सारी चीजें पर ध्यान दिया जाता है. इसके बाद सभा या भीड़ जुटाने की अनुमति दी जाती है. अनुमति देने से पहले लोकल इंटेलिजेंस यूनिट एलआईयू से भीड़ के संख्या या अन्य तरह की जानकारी भी हासिल की जा सकती हैं. आपको बता दें कि हरेक थाने में इस तरह के आयोजनों का डाटा रहता है, जिससे पता चल जाता है कि पिछले साल भीड़ कितनी रही और पिछले के पिछले साल भीड़ कितनी रही. अगर मान लीजिए पिछले साल 1 लाख की भीड़ थी तो स्वाभाविक है कि इस साल सवा से डेढ़़ लाख पहुंचेंगे. मुझे जानकारी मिली है कि तीन दिन पहले से ही हाथरस में भीड़ जुट रही थी. ऐसे में जिला प्रशासन क्या कर रही थी?
भीड़ को कैसे मिलती अनुमति?
भीड़ की अनुमति देने के सवाल पर ओपी सिंह कहते हैं, ‘देखिए भीड़ को अनुमति देने के लिए कोई हार्ड एंड फास्ट रूल नहीं है. ये निर्भर करता है कि भीड़ कितनी है और उसका व्यक्तित्व कैसा है. विषय क्या है. भीड़ अगर एग्रेसिव नहीं है पीसफूल है यहां पर एक धार्मिक भीड़ है जहां पर लोग आते हैं अपनी श्रद्दा से आते हैं. यहां क्राउड मैनेजमेंट की पूरी रणनीति तय करनी चाहिए थी. हेल्थ की व्यवस्था कैसी है? खाने-पीने की व्यवस्था सही है? क्या हर आने-जाने वाले लोगों के लिए रूट तया था? बाबा के जाने के वक्त क्या हम प्रोटोकोल देंगे ताकि भीड़ अचानक उनके पास न आए. इन सब चीजों की परिकल्पना डिस्ट्रिक एडिमिनिस्ट्रेशन और पुलिस एडिमिनिस्ट्रेशन को करनी चाहिए थी?
जवाबदेही तय होनी चाहिए
सिंह आगे कहते हैं, ‘जहां तक पुलिस की जवाबदेही का सवाल है पुलिस क्रीमिनल नेगलिजेंस या क्रिमिनल इंटेंट को देखता है कि आखिर क्या हुआ है? क्या कोई पार्टिकुलर आईडलॉजी की साजिश तो नहीं हो सकती है, जैसा कि माननीय मुख्यमंत्री जी ने कहा है. बाबा पर मामला दर्ज होने के सवाल पर सिंह कहते हैं, देखिए बाबा क्या थे, वह पुलिस में थे या उनका आचरण अच्छा था उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. अगर इतनी जानें गईं हैं तो उसकी जवाबदेही से वह बच नहीं सकते.
पुलिस अधिकारी से कहां हुई चूक
ओपी सिंह कहते हैं, ‘आप एक पुलिस अधिकारी हैं. आपको देखना चाहिए था अगर इस तरह की घटना होती है तो इससे कैसे काबू पाया जाए. पुलिस अधिकारी को विजुलाइज करना चाहिए था कि कौन सी स्थिति आने पर उससे कैसे निपटा जाए. इसी हिसाब से जिला प्रशासन प्लान तैयार करती और हादसा को होने से बचा सकती थी. देखिए पुलिसिंग केवल पुलिस को डिप्लामेंट करने के लिए नहीं है, बल्कि मैनेज भी करना चाहिए था. यह ठीक नहीं कि हमने 40 पुलिस के जवान को लगा दिया और काम खत्म हो गया.
ओपी सिंह कहते हैं कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन को क्राउड मैनेजमेंट बेहतर तरीके से करना चाहिए. हादरस हादसा में निर्दोष जानें गई हैं. खासकर महिलाओं और बच्चों की जानें गई हैं. हम नहीं चाहेंगे कि भविष्य में और किसी की जान ऐसी घटनाओं से चली जाएं.
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FIRST PUBLISHED : July 3, 2024, 12:53 IST