जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 में कई अलगाववादी नेता मुख्यधारा की राजनीति में स्विच करते दिख रहे हैं। अलगाववादी नेता और हुर्रियत सदस्य सैयद सलीम गिलानी रविवार को पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) में शामिल हो गए। गिलानी पीडीपी कार्यालय में पार्टी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की मौजूदगी में इस राजनीतिक दल में शामिल हुए। इसके बाद उन्होंने कहा, ‘पीडीपी ऐसी पार्टी है जो लोकतांत्रिक अधिकारों, मानवाधिकारों और लोगों के राजनीतिक अधिकारों की बात करती है। यह कश्मीर समस्या के राजनीतिक समाधान की बात करती है। इसलिए मुझे लगा कि इसमें शामिल होने के लिए यह सही पार्टी है।’ उन्होंने कहा कि कश्मीर मुद्दे का समाधान केवल राजनीतिक रूप से ही हो सकता है। बंदूक से कोई समाधान नहीं हो सकता। हिंसा में खत्म हो रही जिंदगियों को बचाने का यही एकमात्र तरीका है।
सैयद सलीम गिलानी जेल में बंद अलगाववादी नेता शब्बीर अहमद शाह का करीबी सहयोगी रहा है। वह मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाली हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की जनरल काउंसिल के सदस्य थे। गिलानी का स्वागत करते हुए मुफ्ती ने कहा कि यह अच्छी बात है कि पूर्व अलगाववादी नेता कश्मीर समस्या का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं। उन्होंने कहा, ‘हमने गिलानी से PDP के टिकट पर चुनाव लड़ने का अनुरोध किया था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने में असमर्थता जताई। उन्होंने कहा कि किसी और को चुनाव लड़ने का मौका मिलना चाहिए।’
‘पहले बहिष्कार किया करते थे अलगाववादी’
नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने भी इसका स्वागत किया है। उमर ने कहा कि अलगाववादी नेताओं का मुख्यधारा के दलों में शामिल होने और जम्मू-कश्मीर में चुनाव लड़ने का फैसला वैचारिक बदलाव का संकेत है। उन्होंने कहा, ‘इससे पहले जब भी चुनाव होते थे, अलगाववादी बहिष्कार का मुद्दा उठाते थे। आज वे चुनाव लड़ रहे हैं। यह दर्शाता है कि वैचारिक परिवर्तन हुआ है।’ उमर अब्दुल्ला से पूछा गया कि क्या अलगाववादी नेता सैयद सलीम गिलानी का पीडीपी में शामिल होना 2002 के चुनावों में पीडीपी को अलगाववादियों के समर्थन का सबूत है? इस पर उन्होंने कहा कि आप मुझसे इस सवाल का जवाब दिलवाकर दरार पैदा करना चाहते हैं, तो मैं इसका जवाब नहीं दूंगा।
इन पूर्व अलगाववादी नेताओं ने भरा नॉमिनेशन
जमात-ए-इस्लामी के 2 पूर्व सदस्यों ने पहले चरण के चुनाव के लिए दक्षिण कश्मीर से नॉमिनेशन फाइल किया है। पूर्व जमात नेता तलत मजीद ने फर्स्ट फेज के लिए पुलवामा विधानसभा क्षेत्र से अपना नामांकन पत्र भरा। जमात के एक अन्य पूर्व नेता सयार अहमद रेशी ने दक्षिण कश्मीर के कुलगाम विधानसभा क्षेत्र से अपना नॉमिनेशन दाखिल किया। इसी तरह, जमात के पूर्व सदस्य नजीर अहमद देवसर निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने जा रहे हैं। जानकारों का मानना है कि इंजीनियर रशीद ने लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की, जिससे दूसरे अलगाववादी नेताओं का चुनाव लड़ने को लेकर मनोबल बढ़ा है। राशिद की अवामी इत्तेहाद पार्टी ने इस विधानसभा चुनाव के लिए 9 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची भी जारी कर दी है।
अलगाववादी सरजान बरकती का नामांकन पत्र खारिज
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए नामांकन पत्रों की जांच के दौरान जेल में बंद अलगाववादी सरजान बरकती सहित 35 उम्मीदवारों के नामांकन पत्र खारिज कर दिए गए, जिससे अब मैदान में 244 उम्मीदवार रह गए हैं। जिन 35 उम्मीदवारों के नामांकन पत्र खारिज हुए हैं, उनमें जेल में बंद अलगाववादी कार्यकर्ता सरजान अहमद वागय उर्फ सरजान बरकती भी शामिल है। बरकती की बेटी सुगरा ने शोपियां जिले के जैनापुरा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर बरकती का नॉमिनेशन दाखिल किया था। 2016 की गर्मियों में हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद अशांति के दौरान बरकती चर्चा में आया था।
आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने का आरोप
बरकती को पहली बार 8 साल पहले गिरफ्तार किया गया था और उस पर लोक सुरक्षा कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था। पिछले साल बरकती को फिर से गिरफ्तार किया गया और उस पर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत आरोप लगाए गए। इसी साल अदालत में बरकती के खिलाफ दाखिल आरोपपत्र के अनुसार, वह आतंकवादी-अलगाववादी गठजोड़ का सक्रिय समर्थक है। बरकती ने अपने भड़काऊ भाषणों के जरिए आतंकवादी, अलगाववादी विचारधाराओं और गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अपने रिश्तेदारों सहित अन्य लोगों के साथ आपराधिक साजिश रची। ऐसे ऑडियो-वीडियो भड़काऊ भाषणों के माध्यम से उसने युवाओं को आतंकवादी संगठनों में शामिल होने के लिए उकसाया। बरकती के अलावा जिन अन्य उम्मीदवारों के नामांकन पत्र खारिज किए गए हैं, उनमें 13 निर्दलीय उम्मीदवार और विभिन्न राजनीतिक दलों के कई कैंडिडेट शामिल हैं।
(एजेंसी इनपुट के साथ)