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Thursday, March 6, 2025

चुपके-चुपके महामारी बनने लगी है यह बीमारी, बड़े ही नहीं 3 में से एक बच्चा भी प्रभावित, आखिर क्या है इसकी वजह

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Fatty Liver Silent Epidemic: भारत में यह बीमारी चुपके-चुपके महामारी बनती जा रही है. बड़े तो छोड़िए अब 3 में से एक बच्चा भी इस बीमारी का शिकार हो गया है.

बच्चों में मोटापा इस बीमारी की बड़ी वजह.

Fatty Liver Silent Epidemic: फैटी लिवर डिजीज आमतौर पर वयस्कों को ही होता था लेकिन अब यह चीजें बदल रही है. वैसे भी हर तीन में से एक वयस्क में फैटी लिवर डिजीज है लेकिन अब बच्चों में भी यही हाल हो गया है. तीन में से एक बच्चे भी अब फैटी लिवर डिजीज के शिकार हो गए हैं. नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज का मतलब है कि लिवर में फैट जमा हो जाता है. अगर लिवर के वजन का 5 से 10 प्रतिशत तक फैट जमा हो जाता है तो उसे फैटी लिवर डिजीज कहते हैं. इस बीमारी के लिए मोटापा सबसे बड़ी वजह है और यही कारण है कि बच्चे में फैटी लिवर डिजीज के शिकार हो रहे हैं.

इन वजहों से फैटी लिवर डिजीज
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक 8 से 20 साल के बीच के 17 से 40 प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य से ज्यादा होता है. इसका सबसे बड़ा कारण है कि आज के बच्चे का लाइफस्टाइल बहुत खराब है. वे अक्सर जंक फूड का सेवन करते हैं और बाहर खेलने के लिए नहीं जाते. वे हर पल फुर्सत के क्षणों में मोबाइल से चिपके रहते हैं. या तो स्कूल जाते हैं या फिर घर में रहकर मोबाइल देखते रहते हैं. मां-बाप भी बच्चों को खुशी से मोबाइल दे रहे हैं. इन सबसे इंसुलिन रेजिस्टेंस हो जाता है और लिवर में चर्बी जमा होने लगता है. दूसरी ओर बच्चे फल और सब्जी भी कम खाते हैं जिस कारण उसे फाइबर नहीं मिलता है. फाइबर हमारे लिवर को हेल्दी रखता है. इन सब वजहों से बच्चों को असंतुलित एनर्जी मिलती है और जब इन चीजों को खाकर एनर्जी मिलती है तो यह पूरी तरह से खर्च नहीं हो पाती है और लिवर में जमा होने लगती है.

बच्चों को खेल-कूद में प्रोत्साहित करें
फैटी लिवर डिजीज के कारण लिवर में इंफ्लामेशन होता है. इंफ्लामेशन अगर बढ़ता है तो लिवर में घाव होने लगता है. अगर सही समय पर लाइफस्टाइल ठीक नहीं किया गया और इलाज नहीं किया गया तो इससे लिवर में घाव हो सकता है और लिवर सिरोसिस की बीमारी भी हो सकती है. इसका सबसे ज्यादा असर हार्ट पर पड़ता है. मेटाबोलिक सिंड्रोम से टाइप 2 डायबिटीज का खतरा सबसे ज्यादा रहता है. कंसल्टेंट पेडिएट्रिक्स डॉ. संजय मजुमदार कहते हैं कि माता-पिता और स्कूल के शिक्षक बच्चों के केयर टेकर होते हैं. इन लोगों को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए. जैसा हमारी पहले की दिनचर्या थी, बच्चों के साथ ऐसा ही करवाना चाहिए. उसे बाहर खेल-कूद के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. खाने में घर का बना खाना देना चाहिए. साबुत अनाज, फलीदार सब्जियां, दाल, हरी पत्तीदार सब्जियां और ताजे फलों का रोजाना सेवन कराना चाहिए. फुटबॉल, बेडमिंटन, साइक्लिंग, स्विमिंग आदि को प्रोत्साहित करना चाहिए.

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चुपके-चुपके महामारी बनने लगी है यह बीमारी, 3 में से एक बच्चा भी इसका शिकार



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