7.8 C
Munich
Wednesday, September 18, 2024

मंजन में हड्डी, टूथपेस्ट में साबुन! गलत चुनाव कहीं बत्तीसी ना कर दें खराब

Must read


कुछ दिन पहले बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि के दंत मंजन की खूब चर्चा हुई. एक शख्स ने कोर्ट में याचिका दायर की और आरोप लगाया कि उनकी कंपनी का दंत मंजन शाकाहारी नहीं है. इसमें समुद्र फेन यानी कटलफिश की हड्डी से मिलने वाला पदार्थ मिलाया जा रहा है. इस मामले में 28 नवंबर को हाईकोर्ट में सुनवाई है. हम सभी की सुबह की शुरुआत दांतों को साफ करने से होती है. बस फर्क इतना है कि कोई दंत मंजन, कोई दातुन तो कोई टूथपेस्ट का इस्तेमाल करता है. दांतों की सेहत के लिए इनमें से बेस्ट क्या है और तीनों में क्या फर्क है, कई लोग नहीं जानते. 

हड्डी और चूरे से बनता था दंतमंजन
सफेद चमकते दांत पर्सनैलिटी में चार चांद लगाते हैं. अब भले ही नमक, पुदीने, चारकोल वाला टूथपेस्ट बाजार में बिक रहा हो लेकिन लोग सदियों पहले दंतमंजन से ही अपने दांत चमकाते थे. दंतमंजन की शुरुआत लगभग 2600 साल पहले चीन से हुई थी. यह एक पाउडर होता है, जिसे पुराने जमाने में जानवरों की हड्डी और सीपियों के चूरे से तैयार किया जाता था, लेकिन धीरे-धीरे इसे मुलेठी, दालचीनी, लौंग, हल्दी, बेकिंग सोडा जैसी चीजों से भी बनाया जाने लगा. आजकल बाजार में कई आयुर्वेदिक दंतमंजन बिक रहे हैं, जो एंटीबैक्टीरियल गुणों का दावा करते हैं.

पुराने लोग इसलिए करते थे दातुन
दातुन का मतलब है पेड़ की टहनी. पुराने जमाने में लोग इसी से दांत साफ करते थे. गुरुग्राम में संजीवनी आयुर्वेद में आयुर्वेद आचार्य डॉ.एस.पी कटियार कहते हैं कि दातुन कई पेड़ की टहनियों से बनती है जिसके फायदे अलग-अलग हैं लेकिन सबसे बेहतर दातुन वही है जो कड़वी हो जैसे नीम. इसके अलावा बबूल, महुआ, जामुन, बांस, शीशम और अमरूद की टहनी से भी दातुन बनती है. नीम की दातुन कई बीमारियों के लिए रामबाण है. इससे दांत ना सड़ते हैं और इनमें कीड़े लगते हैं. बबूल की दातुन मसूड़ों को मजबूत बनाती है और छालों या पायरिया से बचाती है. महुआ की दातुन से दांतों के हिलने की समस्या दूर होती है. दातुन हमेशा ताजी होनी चाहिए और इसे उकड़ू यानी स्क्वैट पोजीशन में बैठकर करना चाहिए.     

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजिंग के अनुसार खराब ओरल हेल्थ अल्जाइमर की वजह बन सकती है. (Image-Canva)

साबुन से बना पहला टूथपेस्ट!
आज भले ही कई कलर और फ्लेवर में टूथपेस्ट बिक रहे हों लेकिन दुनिया में पहली बार टूथपेस्ट साबुन से बनाया गया था. 1824 में पीबॉडी नाम के डेंटिस्ट ने साबुन को डेंटल पेस्ट में मिलाया था ताकि उसे दांतों पर घिसते ही झाग बनने लगें. इसी सामग्री में 1850 में अमेरिका के बिजनेसमैन जॉन हैरिस ने चॉक को मिलाया. इसके लगभग 23 साल बाद यानी 1873 में लोगों तक जार में टूथपेस्ट को पहुंचाया गया. आज यह एक नामी टूथपेस्ट कंपनी बन चुकी है. 1892 में डॉ.वाशिंगटन शेफील्ड ने टूथपेस्ट को ट्यूब में डाला.     आज बाजार में बिक रहे लगभग सभी टूथपेस्ट पानी, एब्रेसिव, फ्लोराइड और डिटर्जेंट से बन रहे हैं जिसमें कई तरह के रंग और फ्लेवर मौजूद हैं.  

दांत ज्यादा घिसने से दिक्कत
दिल्ली के पब्लिक डेंटल क्लीनिक में डेंटिस्ट डॉ. रविंद्र कहते हैं दंतमंजन एक क्लीनिंग एजेंट है लेकिन अक्सर इसमें मिट्टी के कण मिलते रहते हैं. कुछ में फिटकरी, तंबाकू और स्टेरायड्स भी डाले जाते हैं. दांत ज्यादा घिस जाने से दांतों की एनेमल लेयर खराब हो जाती है और मसूड़े खराब होने लगते हैं. दातुन भी लोग करते हैं लेकिन यह असरदार नहीं है. ओरल हाइजीन के लिए सबसे बेस्ट टूथपेस्ट ही हैं क्योंकि यह क्लिनिकली जांच-परख कर बाजार में बेचे जाते हैं.

टूथपेस्ट ओरल हेल्थ के हिसाब से चुनें
टीवी पर एक विज्ञापन खूब चला जिसमें पूछा गया कि आपके टूथपेस्ट में नमक है? बाजार में बिक रहे हर टूथपेस्ट में लगभग एक-जैसे इंग्रीडिएंट्स हैं. लेकिन ज्यादा नमक यानी हाई सोडियम दांतों को खराब कर देता है. डॉ. रविंद्र कहते हैं कि अगर किसी को दांतों में दिक्कत है तो उन्हें बीमारी के हिसाब से टूथपेस्ट इस्तेमाल करना चाहिए. दांतों की सेंसिटिविटी, पायरिया जैसी बीमारियों के लिए अलग-अलग टूथपेस्ट आते हैं. टूथपेस्ट कौन-सा इस्तेमाल करें , इससे ज्यादा जरूरी है लोग अपनी ओरल हाइजीन पर ध्यान दें. इंडियन डेंटल एसोसिएशन के मुताबिक, हमारे देश में 28% लोग ही दिन में 2 बार ब्रश करते हैं. वहीं 85% डेंटल कैविटी के शिकार हैं और 51% टूथपेस्ट का इस्तेमाल करते हैं. दांतों की सेहत के लिए दिन में 2 बार ब्रश करना बेहद जरूरी है.   

जंक फूड खाने से 80% बच्चे डेंटल कैविटी के शिकार हैं. (Image-Canva)

अपने टूथपेस्ट को पहचानें
लोग टूथपेस्ट खरीदते तो हैं पर उसकी स्ट्रिप्स पर बने कलर कोर्ड को नजरअंदाज कर देते हैं. हर टूथपेस्ट पर एक कलर कोर्ड होता है जो बताता है कि टूथपेस्ट नेचुरल चीजों से बना है या केमिकल से. हर टूथपेस्ट की ट्यूब के अंत पर यह कलर कोर्ड छपा होता है. ब्लू कलर का मतलब है कि टूथपेस्ट में कुछ इंग्रीडिएंट्स नेचुरल हैं और कुछ मेडिसिन बेस्ड हैं. हरे रंग का मतलब है नेचुरल इंग्रीडिएंट्स, लाल कोड यानी नेचुरल और केमिकल इंग्रीडिएंट. काले कोड वाले टूथपेस्ट से बचना चाहिए क्योंकि यह पूरी तरह केमिकल से बनता है. 

प्रेग्नेंट महिलाएं रहे सतर्क
प्रेग्नेंसी में ओरल हाइजीन सबसे जरूरी है. डॉ. रविंद्र कहते हैं कि प्रेग्नेंसी में महिला के शरीर में हार्मोन्स लगातार बदलते हैं, इससे उन्हें प्रेग्नेंसी इंड्यूस्ड जिंजिवाइटिस हो सकता है. इसमें मसूड़े सूज जाते हैं और खून आने लगता है. इस दौरान उनका इलाज भी मुश्किल होता है क्योंकि प्रेग्नेंसी में सभी दवाएं नहीं दी जाती. अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की रिपोर्ट के अनुसार अगर किसी प्रेग्नेंट महिला को पेरियोडोंटल नाम का इंफेक्शन हो जाए तो उनकी प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा बढ़ जाता है.

रील्स को देखकर ना करें प्रयोग
सोशल मीडिया के दौर में कई रील्स दांतों को मोती जैसे चमकाने का दावा करती हैं. डेंटिस्ट मानते हैं कि लोगों को ऐसी रील्स के झांसे में नहीं आना चाहिए. अगर एक बार एनेमल लेयर खराब हो गई तो कई तरह की बीमारियां झेलनी पड़ सकती है. दांतों में दिक्कत है तो डेंटिस्ट के पास जाएं.

Tags: Health, Lifestyle, Trending news, United States of America



Source link

- Advertisement -spot_img

More articles

- Advertisement -spot_img

Latest article