कांग्रेस ने पत्र में यह तर्क देते हुए कि एनएचआरसी अध्यक्ष और सदस्यों के चयन में योग्यता प्राथमिक मानदंड है, कहा कि “राष्ट्र की क्षेत्रीय, जाति, समुदाय और धार्मिक विविधता को प्रतिबिंबित करने वाला संतुलन बनाए रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।”
कांग्रेस के नोट में कहा गया है कि जाति और समुदाय का संतुलन “यह सुनिश्चित करता है कि मानवाधिकार आयोग समावेशी दृष्टिकोण के साथ काम करे, जो समाज के सभी वर्गों के अनुभवों के प्रति संवेदनशील हो।” नोट में कहा गया है, “इस महत्वपूर्ण सिद्धांत की उपेक्षा करके, समिति इस प्रतिष्ठित संस्था में जनता के विश्वास को खत्म करने का जोखिम उठा रही है।”
18 दिसंबर को समिति को सौंपे गए कांग्रेस के असहमति नोट में कहा गया है कि, “समिति द्वारा अपनाई गई चयन प्रक्रिया मूल रूप से दोषपूर्ण थी…विचार-विमर्श को बढ़ावा देने और सामूहिक निर्णय सुनिश्चित करने के बजाय, समिति ने नामों को अंतिम रूप देने के लिए संख्या के बहुमत पर भरोसा किया और बैठक के दौरान उठाई गई वैध चिंताओं और दृष्टिकोणों की अनदेखी की।”
गौरतलब है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष का चयन करने वाली समिति की अगुवाई प्रधानमंत्री करते हैं। इसमें लोकसभा अध्यक्ष, केंद्रीय गृह मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता और राज्यसभा के उपसभापति सदस्य होते हैं।