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Saturday, July 27, 2024

इस्लाम मे बैंड बाजा, डीजे, नाच-गाना की है मनाही, यह है वजह

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वसीम अहमद /अलीगढ़: घर-परिवार में शादी और अन्य समारोहों में बैंड बाजा या डीजे ना बजे तो मजा नहीं आता. इसके उलट मुस्लिम समुदाय में कुछ लोग शादियों में बैंड बाजे से ऐतराज करते हैं. तो चलिए जानते हैं कि आखिर मुस्लिम समुदाय में कुछ लोग बैंड बाजे से दूरी क्यों रखते हैं. क्या इस्लाम धर्म शादियों में बैंड बाजा बजाने की इजाजत नहीं देता या फिर इसके पीछे कुछ और कहानी है. तो आपको बता दें कि बैंड बाजा, डीजे न बजाने के पीछे का मकसद यह है कि इसके लिए इस्लाम इजाजत नहीं देता है. इस्लाम धर्म में बैंड बाजा, डीजे, नाच-गाने की सख्त मनाही है.

इस बारे में जानकारी देते हुए इस्लामिक स्कॉलर मौलाना उमर खान बताते हैं कि इस्लाम ऐसे किसी भी काम की इजाजत नहीं देता, जिसमें जिसमें फिजूल खर्ची हो. उन्होंने कहा कि आजकल मुस्लिम समाज की शादियों में भी बैंड बाजा और डीजे का खूब इस्तेमाल होता है जो कि गलत है और यह इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ है. हालांकि, कुछ लोग आज भी इससे दूरी बनाए हुए हैं.

शादियों में बैंड बाजे का इस्तेमाल करने वाले हैं गुनाहगार
इस्लामिक स्कॉलर उमर खान के मुताबिक, इस तरह की चीजें इस्लाम में बिल्कुल भी बर्दाश्त के काबिल नहीं है. उन्होंने कहा कि जो मुसलमान दूसरों को देखकर शादियों में बैंड बाजे और डीजे का इस्तेमाल कर रहे हैं ऐसे लोग गुनहगार हैं.

सभी मजहब के हैं अपने नियम
उमर खान ने कहा कि हिंदुस्तान में सभी धर्म के लोग एक साथ रहते हैं और सभी लोग अपने-अपने धर्म के हिसाब से अपने रीति-रिवाज का पालन करते हैं. ऐसे में अगर किसी दूसरे के मजहब की तरह आप भी शादियों में बैंड-बाजे का इस्तेमाल कर रहे हैं तो यह गलत है.

उमर खान बताते हैं कि हमारे नबी ने फरमाया है कि अगर किसी के घर में शादी हो तो लोगों को यह पता होना चाहिए कि फलां घर में शादी है. पहले के समय में शादी की इत्तला देने के लिए दफ (ढोल की तरह दिखने वाला ) का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन आज आधुनिक दौर है और अब दफ कोई नहीं बजाता.

उन्होंने कहा कि दफ की जगह अपने घर में लाइट लगाकर घर को सजा कर, कार्ड देकर, उनकी दावत करके भी लोगों को इत्तला दे सकते हैं कि हमारे घर में शादी है. शादी के नाम पर डीजे बजाना, नाच-गाना करना, फिजूल खर्ची करना या ऐसी चीजें करना जिसकी इस्लाम में मनाही है ऐसा करना सरासर गलत है.

Tags: Local18, Muslim Marriage



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