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Tuesday, April 15, 2025

न्‍यू मॉम और बच्‍चे के लिए Postpartum Depression क्‍यों खतरनाक? जानें इसके शुरुआती लक्षण और बचाव के आसान उपाय

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Postpartum Depression In Mothers: मां बनना एक खूबसूरत अनुभव है. लेकिन कई बार यह खुशी तनाव और डिप्रेशन में भी बदल सकती है. डिलीवरी के बाद हार्मोनल बदलाव, शारीरिक थकान, नींद की कमी और जिम्मेदारियों का बढ़ना महिलाओं को डिप्रेशन की ओर धकेल सकता है और ऐसी स्थिति को पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाता है. यह एक आम लेकिन गंभीर समस्या है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. अगर समय रहते इसके शुरुआती लक्षणों को पहचाना जाए और सही देखभाल मिले, तो मां को इस स्थिति से बाहर लाया जा सकता है.
Mayoclinic के अनुसार, सामान्‍य बेबी ब्‍लूज के लक्षण बच्चे के जन्म के बाद कुछ दिन से लेकर 1-2 हफ्ते तक रहते हैं. मूड का अचानक बदलना (मूड स्विंग्स), चिंता महसूस होना, उदासी रहना, चिड़चिड़ापन, थका हुआ या बोझिल महसूस करना, बार-बार रोना, ध्यान केंद्रित करने में परेशानी, भूख में कमी या ज़्यादा लगना, नींद न आना या बहुत नींद आना जैसे लक्षण दिखते हैं. जबकि पोस्टपार्टम डिप्रेशन इससे कहीं खतरनाक हालात होते हैं.

पोस्टपार्टम डिप्रेशन (Postpartum Depression) के लक्षण- पोस्टपार्टम डिप्रेशन, बेबी ब्लूज़ से कहीं ज़्यादा गंभीर मानसिक स्थिति होती है. यह सिर्फ कुछ दिनों का नहीं होती, बल्कि कई हफ्तों या महीनों तक चल सकता है. यह नई मां के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है और बच्चे की देखभाल में भी मुश्किलें ला सकता है. इसके सामान्य लक्षण:
– बार-बार और बहुत तेज़ मूड स्विंग्स या बहुत अधिक उदासी
– बिना किसी वजह के ज़्यादा रोना
– अपने बच्चे से जुड़ाव महसूस न होना
– परिवार और दोस्तों से दूरी बना लेना
– बहुत कम या बहुत ज़्यादा खाना
– नींद में परेशानी (बहुत कम या बहुत ज़्यादा नींद आना)
– लगातार थकान या ऊर्जा की कमी महसूस होना
– पहले जिन चीज़ों में खुशी मिलती थी, अब उनमें रुचि न रहना
– चिड़चिड़ापन या गुस्सा आना
– यह डर लगना कि आप एक अच्छी मां नहीं हैं
– हीन भावना, शर्म, अपराधबोध या निराशा महसूस होना
– सोचने और निर्णय लेने में कठिनाई होना
– बेचैनी और घबराहट के दौरे (पैनिक अटैक)
– खुद को या बच्चे को नुकसान पहुंचाने के विचार आना
– बार-बार मौत या आत्महत्या के विचार आना
अगर इस डिप्रेशन का इलाज नहीं किया जाए तो यह महीनों या उससे अधिक समय तक भी रह सकता है.

पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis)- यह डिलीवरी के बाद होने वाली एक गंभीर मानसिक परेशानी है, जो अक्सर बच्चे के जन्म के 1 हफ्ते के अंदर शुरू होती है. इसमें महिला का व्यवहार और सोच बहुत बदल जाती है और उसे तुरंत इलाज की जरूरत होती है. इसके लक्षण:
-बार-बार उलझन होना या सच-झूठ का फर्क समझ में न आना.
-बच्चे को लेकर अजीब या डरावने ख्याल आना.
-ऐसी चीज़ें देखना या सुनना जो असल में नहीं होती (मतिभ्रम).
-नींद बिल्कुल न आना.
-बहुत ज़्यादा एक्टिव या बेचैन रहना.
-हर किसी पर शक करना या डर महसूस होना.
-खुद को या बच्चे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करना.
ऐसी स्थिति में बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करना बहुत ज़रूरी है. पोस्टपार्टम साइकोसिस जानलेवा हो सकता है, इसलिए तुरंत इलाज जरूरी है.

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पोस्टपार्टम डिप्रेशन से बचाव के उपाय (Prevention Tips in Points):
-अगर आपको पहले कभी डिप्रेशन या डिलीवरी के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन हुआ है, तो प्रेग्नेंट होने से पहले या प्रेग्नेंसी के समय डॉक्टर को जरूर बताएं.
-डॉक्टर आपकी मानसिक स्थिति को समझने के लिए प्रेग्नेंसी के दौरान डिप्रेशन से जुड़ा टेस्ट करवा सकते हैं.
-अगर हल्का डिप्रेशन है, तो काउंसलिंग, सपोर्ट ग्रुप या बातचीत से जुड़ी थैरेपी से काफी फायदा हो सकता है.
-अगर डिप्रेशन ज्यादा हो, तो डॉक्टर प्रेग्नेंसी के दौरान भी कुछ दवाएं दे सकते हैं, जो मां और बच्चे दोनों के लिए सुरक्षित होती हैं.
-डिलीवरी के बाद डॉक्टर आपका मेंटल हेल्थ चेक कर सकते हैं, जिससे अगर कोई दिक्कत हो तो तुरंत इलाज शुरू किया जा सके.
-अगर आपको पहले भी डिलीवरी के बाद डिप्रेशन हुआ है, तो इस बार डॉक्टर से बात कर के टॉक थेरेपी या दवाएं शुरू करवा लें, ताकि हालात बिगड़ने न पाएं.

आपको या आपके किसी जानने वाले को ये लक्षण दिखाई दें, तो जल्द से जल्द डॉक्टर या मेंटल हेल्‍थ एक्‍सपर्ट से संपर्क करना बेहद जरूरी है. इस तरह समय रहते इलाज से मां और बच्चे दोनों को सुरक्षित रखा जा सता है और मां को डिप्रेशन मैनेज करने में मदद की जा सकती है.



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