क्या किसी शादीशुदा महिला को विवाहेत्तर संबंध (Extramarital Affair) रखने के चलते पति को आत्महत्या के लिए उकसाने की दोषी माना जा सकता है? गुजरात हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले की मिसाल देकर मुकदमे को रद्द कर महिला और उसके पार्टनर को बरी कर दिया।
लाइव लॉ कि रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट ने आरोपी महिला की सास द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर रद्द कर दी, जिसमें उसने अपनी बहू और पर अपने पति को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था। सास ने बहू के प्रेमी को भी आरोपी बनाया था।
जस्टिस दीयेश ए जोशी की सिंगल जज बेंच ने कहा कि भले ही एफआईआर की सामग्री को सच मान लिया जाए, लेकिन यह साबित नहीं किया जा सकता कि आरोपी का अपने मृतक पति को आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई इरादा था। नतीजतन, हाईकोर्ट ने आरोपी के खिलाफ कोई भी आपराधिक इरादा नहीं पाया और इसलिए कोई भी मनःस्थिति नहीं बताई जा सकती। इस प्रकार, इस अदालत की राय में, एफआईआर में लगाए गए आरोपों में उकसाने का तत्व गायब है और आरोपों में उकसाने के तत्व के अभाव में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 आईपीसी के तहत अपराध नहीं बनता।”
हाईकोर्ट चार्जशीट दायर होने के बाद भी FIR रद्द कर सकता है? SC ने किया साफ
हाईकोर्ट ने इस मामले में के.वी. प्रकाश बाबू बनाम कर्नाटक राज्य के केस में स्थापित मिसाल पर भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि विवाहेत्तर संबंध में शामिल होने से जरूरी नहीं कि धारा 306 आईपीसी के तहत दोषसिद्धि हो, हालांकि यह तलाक या अन्य वैवाहिक राहत के लिए आधार हो सकता है।
इस आधार पर गुजरात हाईकोर्ट ने कहा, आरोपी नंबर 1 (महिला) का आरोपी नंबर 2 (पार्टनर) के साथ विवाहेत्तर संबंध में शामिल होना आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषसिद्धि को आमंत्रित नहीं कर सकता है।”
हाईकोर्ट का यह फैसला दो अलग-अलग आपराधिक याचिकाओं के जवाब में आया है। आरोपियों पर आईपीसी की धारा 306 और 114 के तहत दंडनीय अपराधों का आरोप लगाने वाली एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि शिकायतकर्ता के बेटे ने अपनी पत्नी के विवाहेतर संबंध का पता चलने के बाद आत्महत्या कर ली थी।
अदालत ने कहा, “यदि एफआईआर में लगाए गए आरोपों को उनके अंकित मूल्य पर लिया जाए और उनकी संपूर्णता में स्वीकार किया जाए, तो भी वे आरोपित अपराध नहीं बनते हैं और पूरी सुनवाई के बाद भी अंतिम दोषसिद्धि की संभावना कम है और आवेदक आरोपी के खिलाफ आपराधिक केस जारी रखना महज एक खोखली औपचारिकता और अदालत के कीमती समय की बर्बादी है।”
अदालत ने आरोपियों की आवेदनों को स्वीकार कर एफआईआर को रद्द करते हुए कहा,”मैं शिकायतकर्ता जो कि मृतक की मां है, उनके दर्द और तकलीफ से वाकिफ हूं। यह भी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मृतक ने अपनी जान गंवा दी है, लेकिन जैसा कि जियो वर्गीस (सुप्रा) के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है, अदालत की सहानुभूति और शिकायतकर्ता की पीड़ा और तकलीफ, कानूनी उपाय में तब्दील नहीं हो सकते, आपराधिक मुकदमा तो दूर की बात है।”
आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) में कहा गया है:- अगर कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो जो कोई भी उसे आत्महत्या के लिए उकसाता है, उसे 10 साल तक के कारावास की सजा दी जाएगी और जुर्माना भी देना होगा।