वाराणसी: दुर्गा पूजा उत्सव पर काशी में मिनी बंगाल की झलक देखने को मिलती है .इस बार दुर्गापूजा को लेकर काशी में अभी से तैयारियां जोरों पर हैं. मूर्तिकार मां दुर्गा की प्रतिमाओं को अंतिम रूप दें रहे हैं. खास बात यह है कि ये मूर्तियां पूरी तरह से इको फ्रेंडली है. गंगा की शुद्ध माटी, पुआल और नारियल की जटा से इन मूर्तियों को बनाया जा रहा है. लेकिन इस बार बारिश के कारण मूर्तिकारों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
दरसअल, इस बार सितंबर के महीने में लगातार बारिश का दौर जारी है. ऐसे में 3 अक्टूबर से नवरात्रि की शुरुआत हो रही है. नवरात्रि की शुरुआत के साथ ही कई जगहों पर कलश स्थापना के साथ नौ दिनों के पूजा का आगाज हो जाता है. तो वहीं ज्यादातर जगहों पर नवरात्रि की षष्ठी तिथि को मां दुर्गा पंडालों में विराजती है. ऐसे में बारिश के कारण मिट्टी की मूर्तियों को सूखाने में काफी दिक्कतें हो रही है.
बढ़ाई गई कारीगरों की संख्या
मूर्तिकार राजू दादा ने बताया कि हम लोग समय से मूर्तियां पंडाल तक पहुंच सकें इसके लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं और दिन रात इस काम में जुटे हुए हैं. पहले की अपेक्षा में अब कारीगरों की संख्या भी बढ़ाई गई है. बता दें कि चैत्र नवरात्रि से ही मूर्तिकार इनको बनाने का काम शुरू कर देते हैं.
इन चीजों का हो रहा इस्तेमाल
मूर्तिकार राणा ने बताया कि इस बार शहर के पूजा पंडाल पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देंगे. क्योंकि पंडालों में देवी की इको फ्रेंडली मूर्तियां स्थापित होंगी. ये मूर्तियां शुद्ध माटी, पुआल, नारियल की जटा और बांस की लकड़ियों से बनाया जा रहा है. इसके अलावा इनको सजाने के लिए जो रंग इस्तेमाल हो रहे हैं वो भी पूरी तरह से केमिकल रहित है. इन मूर्तियों की रंगाई खड़िया, गेरू के साथ वॉटर कलर का इस्तेमाल किया जा रहा है .जिससे यह कुंड तालाबों को किसी तरह का नुकसान नहीं होगा.
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FIRST PUBLISHED : September 30, 2024, 15:58 IST