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Tuesday, October 1, 2024

कितनों को सजा दिलाई, किसी को वर्षों तक जेल में कैसे रख सकते हैं; SC ने ईडी से पूछे तीखे सवाल

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सुप्रीम कोर्ट (SC) ने मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) से कई कड़े सवाल किए। कोर्ट ने पूछा कि आखिर मनी लॉन्ड्रिंग कानून (पीएमएलए) के मामलों में दोषसिद्धि की दर क्या है? कोर्ट ने ये भी कहा कि आप व्यक्ति को सालों तक जेल में रखते हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति उज्जवल भुइयां की पीठ छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उप-सचिव सौम्या चौरसिया को अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

इस दौरान पीठ ने कहा कि चौरसिया एक साल और नौ महीने से अधिक समय से हिरासत में हैं, उनके खिलाफ आरोप तय होना बाकी है और सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई है। इसी के साथ कोर्ट ने सौम्या चौरसिया को अंतरिम जमानत दे दी। कोर्ट ने यह फैसला उनकी हिरासत में बिताए गए समय और अभी तक आरोप तय न होने को ध्यान में रखते हुए लिया। सौम्या चौरसिया छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पूर्व उप सचिव रही हैं। उन पर कोयला घोटाले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में आरोप लगाए गए हैं। वह पिछले 1 साल और 9 महीनों से जेल में हैं।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति भुइयां ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को उनके कमजोर दोषसिद्धि दर और आरोप तय किए बिना लोगों को लंबे समय तक जेल में रखने की प्रवृत्ति को लेकर फटकार लगाई। उन्होंने पूछा, “बिना आरोप तय किए, आप कितने समय तक किसी व्यक्ति को जेल में रख सकते हैं? अधिकतम सजा 7 साल की है! पीएमएलए मामलों में सजा की दर क्या है? संसद में कहा गया कि सिर्फ 41 मामलों में सजा हुई है। फिर? आप किसी व्यक्ति को वर्षों तक जेल में कैसे रख सकते हैं?” न्यायमूर्ति दत्ता ने आश्चर्य व्यक्त किया कि जिन मामलों में वारंट जारी नहीं किए जा सके, क्या वह किसी व्यक्ति को जेल में रखने का आधार हो सकता है। अंततः अदालत ने अंतरिम जमानत प्रदान की और मामले की अगली सुनवाई 26 अक्टूबर को निर्धारित की।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और उज्जल भुइयां की पीठ चौरसिया की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के 28 अगस्त, 2024 के आदेश को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने उनकी तीसरी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी विचार व्यक्त किए और पक्षकारों को व्यापक सुनवाई का अवसर देने के उद्देश्य से उन्हें अंतरिम राहत प्रदान की। अदालत ने चौरसिया को जमानत बांड भरने का निर्देश दिया, जो कि ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के अधीन होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि राज्य सरकार चौरसिया को सिर्फ अंतरिम जमानत पर रिहा होने के कारण सेवा में बहाल न करे। वह आगे के आदेश तक निलंबित रहेंगी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि चौरसिया को ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश होने, गवाहों को प्रभावित न करने और सबूतों से छेड़छाड़ न करने, पासपोर्ट जमा कराने और देश छोड़ने से पहले ट्रायल कोर्ट से अनुमति लेने जैसी शर्तों का पालन करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में जिन प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान दिया, उनमें कई बातें शामिल हैं। जैसे, चौरसिया ने 1 साल और 9 महीने की सजा काट ली है। सह-आरोपी में से कुछ को नियमित या अंतरिम जमानत मिल चुकी है। अब तक आरोप तय नहीं हुए हैं।



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