सीजेआई ने कहा कि अब क्या वहां पूजा हो रही है ? जिस पर मुस्लिम पक्ष की तरफ से हुजैफा अहमदी ने हामी भरते हुए कहा कि 31 जनवरी से हो रही है. इस पर रोक लगाई जाए वरना बाद में बोला जाएगा कि लंबे समय से पूजा हो रही है. अगर पूजा को इजाजत दी गई तो ये समस्या पैदा करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद कमेटी की याचिका पर नोटिस जारी किया. अहमदी ने कहा कि मेरी आशंका यह है, हर दिन पूजा चल रही है. यह मस्जिद परिसर है, तहखाने में पूजा नहीं होनी चाहिए.
CJI ने कहा कि जाहिर तौर पर दो ताले थे? ताले कहां थे? अहमदी ने कहा कि मान लें कि उनका कब्ज़ा था, उन्होंने 30 साल तक कुछ नहीं किया. 30 साल बाद अंतरिम राहत का आधार कहां है? सुप्रीम कोर्ट ने ये भी पूछा कि दूसरा लॉक किसने खोला? क्या कलेक्टर ने. अहमदी ने कहा कि उन्हें आदेश लागू करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया था. उन्होंने बाधाओं को हटाने के लिए लोहे के कटर मंगवाए, ताले आदि खोले और प्रार्थनाएँ शुरू कीं.
तहखाने में किसी भी प्रार्थना होने का कोई सबूत नहीं है. यह केवल कुछ कलह को बढ़ावा देगा. इतिहास ने हमें कुछ अन्य सबक भी सिखाए हैं जहां आश्वासनों के बावजूद हिंसा हुई है. यह एक घोर आदेश है. वाद में स्वीकार किया गया है कि 1993 से 2023 तक तहखाना पर ताला लगा हुआ था और कोई पूजा नहीं की गई थी. सीजेआई ने पूछा कि क्या तहखाने और मस्जिद में जाने का एक ही रास्ता है ? जिसके जवाब में अहमदी ने कहा कि तहखाना दक्षिण में हैं और मस्जिद जाने का रास्ता उत्तर में है.
CJI ने कहा कि कलेक्टर का कहना है कि दूसरा लॉक राज्य का है. अहमदी ने कहा यह सही है कि 1993 तक उनका कब्ज़ा था. सीजेआई ने कहा कि आपके और उनके बीच, कब्ज़ा उनके पास था. 1993 में हस्तक्षेप राज्य द्वारा किया गया था. दूसरा ताला किसने खोला? – दूसरा ताला कलेक्टर ने खुलवाया. पहला ताला व्यास परिवार के पास था.? अहमदी ने कहा कि नहीं. उन्होंने बैरिकेड्स हटाने के लिए लोहे के कटर खरीदे, रात में बैरिकेड्स हटा दिए और सुबह 4 बजे पूजा शुरू कर दी.
तहखाने में हो रही पूजा से पहले कोई कब्जा नहीं है. इससे चीजें खराब हो जाएंगी. इतिहास ने हमें कुछ अलग सिखाया है. मैं इसमें नहीं पड़ना चाहता. सिविल कानून के सिद्धांतों के अनुसार, यह एक अनुचित आदेश है. अहमदी ने कहा कि धीरे-धीरे हम मस्जिद पर कब्ज़ा खो रहे हैं. यह कहना गलत है कि दक्षिण तहखाने में एक अलग प्रवेश द्वार है और मस्जिद परिसर अलग है. यह कहना सही नहीं है कि जब हम व्यास तहखाना में प्रवेश करते हैं तो हम मस्जिद में प्रवेश नहीं कर रहे होते हैं. ये कोई मंदिर नहीं है.
यहां पांच वक्त की नमाज हो रही है. बाईं ओर एक बड़ा मंदिर परिसर है जहां प्राचीन काल से पूजा की जाती है. सभी समुदाय मंदिर और मस्जिद के साथ-साथ शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रहे हैं. अब इस खास जगह पर इतनी जिद क्यों? राज्य सरकार ने निचली अदालत के आदेश को चार घंटे में लागू कर दिया. कुछ तो प्रक्रिया होनी चाहिए थी, राज्य सरकार क्या आम केसों में ऐसा कठोर कदम उठाती है ?
अहमदी ने कहा कि एक अमेरिकी अभिव्यक्ति है सलामी रणनीति. बिट बाई बिट, पीस बाई पीस, हम मस्जिद खो रहे हैं. वुज़ुखाना, जो सदियों से था, अब लुप्त हो गया है. अब वे तहखाना में प्रवेश करना चाहते हैं. तहखाने में कोई मंदिर या मूर्ति ना मिली, अदालत हमें संरक्षण दे. इतिहास ने हमें सिखाया है कि अयोध्या में क्या हुआ था. सर्वोच्च अधिकारियों के आश्वासन के बावजूद, मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया. ज्ञानवापी तहखाने पर सुप्रीम कोर्ट आदेश लिखा रहा है.
वाराणसी जिला अदालत में हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि नवंबर 1993 से पहले व्यासजी तहखाने में पूजा होती थी. तत्कालीन सरकार ने इस पर रोक लगा दी थी. वहीं, मुस्लिम पक्ष ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का हवाला देते हुए याचिका खारिज करने की मांग की थी. अदालत ने मुस्लिम पक्ष की मांग को अस्वीकार करते हुए हिंदू पक्ष को व्यासजी तहखाने में पूजा-पाठ का अधिकार दे दिया.
मुस्लिम पक्ष ने व्यासजी तहखाने में पूजा की इजाजत के फैसले पर रोक लगाने की मांग की. वकील हुजैफा अहमदी ने कहा कि निचली अदालत ने एक हफ्ते में पूजा शुरु कराने का आदेश दिया था. लेकिन यूपी प्रशासन ने रात को ही पूजा के लिए तहखाने को खुलवा दिया.
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