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Tuesday, November 5, 2024

गुजरात में 12वीं कक्षा की किताब में बौद्ध धर्म को लेकर ऐसा क्या लिखा कि छिड़ गया विवाद, बदलना पड़ गया पैराग्राफ

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गुजरात में कक्षा 12वीं की सोशियोलॉजी की किताब में बोद्ध धर्म पर लिखे गए एक पाठ को लेकर विवाद पैदा हो गया है। बौद्धों का कहना है कि इसके जरिए बुद्ध धर्म के बारे में गलत धारणाएं फैलाई जा रही हैं। इसके अलावा इसमें कई गलतियां होने का दावा भी किया जा रहा है। विवाद बढ़ता देख गुजरात स्टेट बोर्ड ऑफ स्कूल टेक्सटबुक्स ने विवादित पैराग्राफ को बदलने का आदेश दिया है और सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि छात्रों को संशोधित पैराग्राफ ही पढ़ाया जाए। 

बता दें, इस मामले को लेकर बौद्धों ने गुजरात पाठ्य पुस्तक मंडल से मुलाकात कर विरोध दर्ज कराया था। उनका कहना था कि यह पाठ जातिवाद को बढ़ावा देता है जबकि बौद्ध धर्म जाति मुक्त है। बौद्ध ने जिस पाठ को लेकर विरोध किया, उसमें लिखा गया था कि बौद्ध धर्म के दो स्तर हैं। ऊपरी स्तर में ब्राह्मण, क्षत्रिय और गृहस्थ श्रेणी के लोग शामिल हैं और निचले स्तर में बौद्ध धर्म अपनाने वाले आदिवासी और अन्य समूह हैं।  इसके धार्मिक शिक्षक को ‘लामा’ के रूप में जाना जाता है, और यह पुनर्जन्म में विश्वास करता है। जीएसबीएसटी ने इस मामले में एक सर्कुलर जारी किया है और जिला शिक्षा अधिकारियों को भेजा है। इसके साथ उस नए पैराग्राफ को भी अटैच किया गया जो विवादित हिस्से से बदला जाना है। 

विवादित पैराग्राफ में क्या लिखा है?

जिस पैराग्राफ को लेकर बौद्ध धर्म ने विरोध दर्ज कराया है, उसमें लिखा है, सिखों की तरह भारत में बौद्ध धर्म के अनुयायियों का हिस्सा भी बहुत कम है। इनमें से ज्यादातर महाराष्ट्र में रहते हैं। वे उत्तर-पश्चिम भारत और अरुणाचल प्रदेश में भी रहते हैं। सम्राट अशोक के समय भारत में बौद्ध धर्म का काफी प्रसार था। बौद्ध धर्म की तीन शाखाएं हैं,  हीनयान, महायान और विराजयान। इसके दो स्तर हैं।  बौद्ध धर्म के ऊपरी स्तर में ब्राह्मण, क्षत्रिय और कुछ कुलीन वर्ग शामिल हैं, जबकि निचले स्तर में बौद्ध धर्म अपनाने वाले आदिवासी और सीमांत समूह शामिल हैं। सारनाथ, सांची और बोधिगया बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण केंद्र हैं। इनके धार्मिक गुरु को लामा के नाम से जाना जाता है। उनके धार्मिक स्थल, जिन्हें बौद्ध मंदिर के नाम से जाना जाता है, में ‘इच्छा चक्र’ है। त्रिपिटक उनका धर्मग्रंथ है और वे कर्म और पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। बौद्धों का कहना था कि इस पाठ से जातिवाद का संकेत दिया जा रहा है जबकि बौद्ध धर्म जाति से मुक्त है।  



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