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Saturday, November 9, 2024

जब लगे ‘नो मुश्ताक नो टेस्ट’ के नारे, टीम में न लिए जाने पर फूटा लोगों का गुस्सा, ऐसा था स्टाइलिश बैट्समैन का जलवा

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No Mushtaq, No Test: सैयद मुश्ताक अली ऐसे बल्लेबाज थे कि अगर आज के दौर में भी खेल रहे होते तो उनकी गिनती विस्फोटक खिलाड़ियों में होती. वह अपने दौर के बेरहम बल्लेबाज थे. टेस्ट मैचों में वह गेंदबाजों की निर्ममता से कुटाई किया करते थे. अच्छे खिलाड़ी होने के साथ मुश्ताक अली के व्यक्तित्व में कई पहलू थे. वह न केवल होल्कर की सेना के पूर्व कैप्टन बल्कि निडर, स्टाइलिश, रंगीन, लोकप्रिय और मिलनसार शख्स थे. देश में क्रिकेट की लोककथाओं का एक बड़ा हिस्सा उनके नाम है. 

उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि एक बार भारतीय टीम को कलकत्ता (अब कोलकाता) के ईडन गार्डेंस में ऑस्ट्रेलियाई सेना के साथ एक अनौपचारिक टेस्ट खेलना था. लेकिन मुश्ताक अली को इस मैच के लिए घोषित की गई टीम में शामिल नहीं किया गया. कलकत्ता में क्रिकेटप्रेमियों की भीड़ ने उस समय सेलेक्शन कमेटी के चीफ रहे दलीपसिंह जी को घेर लिया और उसने ‘नो मुश्ताक, नो टेस्ट’ के नारे लगाए. भीड़ के विरोध प्रदर्शन के बाद मुश्ताक अली की टीम में वापसी हो गई.  

विदेशी धरती पर पहला शतक
हालांकि मुश्ताक अली थे तो भारतीय टीम के ओपनिंग बैट्समैन, लेकिन उन्होंने करियर की शुरुआत बाएं हाथ के धीमे गेंदबाज के तौर पर की थी. लेकिन जल्द ही उन्होंने खुद को एक दमदार बैट्समैन के रूप में स्थापित कर दिया. दाएं हाथ के बैट्समैन मुश्ताक अली अपनी बल्लेबाजी के दौरान हमेशा रोमांच की भावना बनाए रखते थे. उन्हें 25 जुलाई 1936 को इंग्लैंड के खिलाफ ओल्ड ट्रैफर्ड ग्राउंड में केवल ढाई घंटे में 112 रन की बेहतरीन पारी के लिए हमेशा याद किया जाता है. यह किसी भारतीय बैट्समैन का विदेश में पहला शतक था. इस दौरान उन्होंने विजय मर्चेंट के साथ 203 रनों की शानदार साझेदारी निभाई थी. मुश्ताक अली जब अपना शॉट लगाते थे तो उनके ओपनिंग पार्टनर मर्चेंट अक्सर अविश्वास में अपना सिर हिलाते थे. क्योंकि वह तेज गेंदबाजों को पीटने के लिए बार-बार आगे बढ़ते थे. 

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विंडीज के खिलाफ यादगार पारी
मुश्ताक अली ने 20 साल की उम्र में 1934 में कोलकाता के ईडन गार्डेंस पर इंग्लैंड के खिलाफ अपना टेस्ट डेब्यू किया. इसके दो साल बाद उन्होंने इंग्लैंड की धरती पर शतक जड़कर खुद को क्रिकेट की दुनिया में अमर कर लिया. अपनी साहसिक बैटिंग के कारण अक्सर उन्हें अपना विकेट गंवाना पड़ता था. लेकिन फिर उन्होंने साबित कर दिया कि वह जिम्मेदारी के साथ बैटिंग कर सकते हैं. जब वह 1948-49 में वेस्टइंडीज के खिलाफ कलकत्ता में तीसरे टेस्ट में ओपनिंग बैट्समैन के रूप में वापस आए और भारत को मैच बचाने में मदद करने के लिए 54 और 106 रनों की शानदार पारी खेली. 

दो दशक में खेले 11 टेस्ट
लेकिन फिर भी वह कभी भी चयनकर्ताओं की नजरों में अच्छे बैट्समैन नहीं थे. इस सीरीज के बाद एक फिर उन्हें ड्रॉप कर दिया गया. इंग्लैंड के खिलाफ 1951-52 की सीरी- में उन्हें वापस बुलाया गया. मुश्ताक अली उस मैच में असफल रहे और उन्हें इंग्लैंड दौरे से तुरंत बाहर कर दिया गया, जिसने प्रभावी रूप से उनके करियर पर पर्दा डाल दिया. उनका करियर लगभग दो दशकों तक चला लेकिन इसमें उन्होंने केवल 11 टेस्ट खेले. मुश्ताक अली ने 11 टेस्ट मैचों की 20 पारियों में 32.21 के औसत से कुल 612 रन जड़े. इनमें दो शतक और तीन अर्धशतक शामिल हैं. उन्होंने अपने करियर का आखिरी टेस्ट इंग्लैंड के खिलाफ ही खेला था. चेन्नई में खेले गए इस मुकाबले में इसमें टीम इंडिया ने इंग्लैंड को रौंदा था. यह भारत की पहली टेस्ट जीत भी थी.

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उनके नाम पर घरेलू टी-20 ट्रॉफी
मुश्ताक अली ने 1967 में ‘क्रिकेट डिलाइटफुल’ नामक पुस्तक भी लिखी. उनके नाम पर ही भारत का घरेलू टी20 टूर्नामेंट ‘सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी’ खेली जाती है. भारत सरकार ने क्रिकेट में उनके अमूल्य योगदान को सलाम करते हुए उन्हें साल 1964 में ‘पद्म श्री’ से नवाजा था. मुश्ताक अली का जन्म 17 दिसंबर 1914 को इंदौर में हुआ था. उन्होंने 18 जून 2005 को 91 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहा.

Tags: England vs India, Indian cricket, On This Day, Syed Mushtaq Ali Trophy, Test cricket



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