येचुरी विभिन्न मुद्दों पर राज्यसभा में अपने सशक्त और स्पष्ट भाषणों के लिए जाने जाते थे। वह बहुभाषी थे और हिंदी, तेलुगु, तमिल, बांग्ला और मलयालम भी बोल सकते थे। वह हिंदू पौराणिक कथाओं के भी अच्छे जानकार थे और अक्सर अपने भाषणों में खासकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर हमला करने के लिए उन संदर्भों का इस्तेमाल करते थे। वह नरेन्द्र मोदी सरकार और इसकी उदार आर्थिक नीतियों के सबसे मुखर आलोचकों में से एक रहे।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 2018 में सीपीएम की केंद्रीय समिति ने कांग्रेस के साथ किसी भी तरह के गठबंधन के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था, यहां तक कि पार्टी के महासचिव येचुरी ने इस्तीफे की पेशकश भी की थी। हालांकि, 2024 के आम चुनाव के दौरान, जब एकजुट विपक्ष के लिए बातचीत शुरू हुई और विपक्षी दल एक साथ मिलकर ‘इंडिया’ गठबंधन बनाने लगे, तो सीपीएम इसका एक हिस्सा थी और येचुरी गठबंधन के प्रमुख चेहरों में से एक रहे।
राजनीति में उनका सफर ‘स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (एसएफआई) से शुरू हुआ था, जिसमें वह 1974 में शामिल हुए और अगले ही साल पार्टी के सदस्य बन गए। आपातकाल के दौरान कुछ महीने बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल से रिहा होने के बाद वह तीन बार जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए। वर्ष 1978 में वह एसएफआई के अखिल भारतीय संयुक्त सचिव बने और उसके तुरंत बाद अध्यक्ष बने।