सहारनपुर: जब हौंसले बुलंद हों तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है. चाहे लोग मजाक उड़ाते रहें या फिर ताने मारें.सहारनपुर के गांव भलस्वा ईसापुर के रहने वाले दुष्यंत शर्मा की कहानी भी यही बताती है. विकलांग होने के बावजूद भी उन्होंने मेहनत जारी रखी. इसी का परिणाम है कि आज वो टीचर हैं.
दुष्यंत शर्मा के संघर्ष की कहानी
दुष्यंत शर्मा बचपन से ही पोलियो के कारण विकलांग हैं. लेकिन दुष्यंत शर्मा ने अपनी उम्मीदों को मरने नहीं दिया. उन्होंने 12वीं तक की शिक्षा गांव के ही इंटर कॉलेज से की, जिसके बाद उन्होंने जे.वी जैन डिग्री कॉलेज से B.A, M.A, B.ED किया. साल 2010 में वो सरकारी टीचर बने. अब वो सहारनपुर की विधानसभा बेहट के जनता इंटर कॉलेज में पढ़ाते हैं. दुष्यंत शर्मा के दादाजी डॉक्टर रूपचंद शर्मा स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं और उनके पिता बिजेंद्र कुमार शर्मा किसान हैं.
गरीब बच्चों को दे रहे हैं मुफ्त शिक्षा
दुष्यंत शर्मा ने लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि बचपन में जब वह 8 महीने के थे. तब उनको पोलियो का बुखार आया था और तभी से ही वह चल नहीं पाते. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और मेहनत कर शिक्षा के क्षेत्र में एक अच्छा मुकाम हासिल किया. जिस कारण से दुष्यंत शर्मा अब गरीब बच्चों को निशुल्क में शिक्षा दे रहे हैं. 2001 से दुष्यंत शर्मा अपनी टीम के साथ मिलकर गरीब बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रहे हैं.
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40-50 लाख का लिया लोन
2020 में दुष्यंत शर्मा के एकलव्य चैरिटेबल ट्रस्ट को रजिस्टर्ड कराया गया. जिसकी बिल्डिंग बनाने में लगभग 40 से 50 लाख रुपए का खर्चा आया. दुष्यंत शर्मा ने लोन उठाकर इस बिल्डिंग को खड़ा किया और अब अपनी सारी सैलरी से लोन को चुकता कर रहे हैं. दुष्यंत शर्मा का एक ही मकसद है कि गरीब और असहाय लोगों के बच्चे भी शिक्षित बने और आगे बढ़े.
इनसे पढ़कर कई बच्चों को मिली सफलता
उनके इस कोचिंग सेंटर में गरीब बच्चों को निशुल्क कंप्यूटर क्लास, ट्यूशन, कंपटीशन की तैयारी कराई जाती है. कुछ बच्चों को अगर कुछ फीस देनी होती है तो दान पत्र में डाल देते हैं. उनके द्वारा कंपटीशन में तैयार किए गए 50 से अधिक बच्चे सरकारी विभाग में विभिन्न पदों पर तैनात है. एक तरीके से गरीब बच्चों का भविष्य बनाने के लिए दुष्यंत शर्मा ने अपना जीवन समर्पित कर दिया.
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FIRST PUBLISHED : September 24, 2024, 14:27 IST