सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट की संविधान पीठ ने एकमत से फ़ैसला दिया कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्ज़ा खत्म करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने का केन्द्र सरकार का फैसला वैध, सही और क़ानून सम्मत था। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने अपने साथ-साथ जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत का फ़ैसला पढ़कर सुनाया, वहीं, संविधान पीठ के दो अन्य जज, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस संजीव खन्ना ने अपने फ़ैसले अलग सुनाए। लेकिन सभी पांचों न्यायाधीश इस बात पर सहमत थे कि संविधान का अनुच्छेद 370 अस्थायी था। 1947 में जम्मू-कश्मीर रियासत का जब भारत में विलय हुआ, उसके बाद जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देना एक अस्थायी व्यवस्था थी क्योंकि तब वहां युद्ध जैसे हालात थे और भारत के राष्ट्रपति को इस बात का पूरा अधिकार था कि वह संविधान के इस अनुच्छेद को बाद में ख़त्म कर सकें। सुप्रीम कोर्ट ने लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करके केंद्र शासित क्षेत्र बनाने के फ़ैसले को भी सही ठहराया। अपने फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार ने भरोसा दिया है कि वो जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्दी से जल्दी बहाल करेगी। अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वो अगले साल 30 सितंबर से पहले जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए। अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ 23 याचिकाएं दायर की गई थीं। संविधान पीठ ने 16 दिन तक इस मामले पर लगातार सुनवाई की थी। जस्टिस संजय किशन कौल ने जम्मू-कश्मीर में अस्सी के दशके के बाद से हुई हिंसा की जांच के लिए ट्रुथ ऐंड रिकंसिलिएशन कमिशन बनाने का भी सुझाव दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऐतिहासिक बताया। मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि सुप्रीम कोर्ट का ये फ़ैसला जम्मू-कश्मीर के हमारे भाई-बहनों की आशाओं, प्रगति और एकता की उद्घोषणा है। उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले से एकता की मूल भावना को मजबूत किया है, एकता की इस भावना को भारत के हम सभी लोग अत्यन्त मूल्यवान और सर्वोपरि मानते हैं। यह केवल न्यायालय का फैसला नहीं है, बल्कि यह आशाओं की मशाल, उज्ज्वल भविष्य का वचन और एक मजबूत और एकीकृत भारत बनाने के हमारे सामूहिक प्रण का संकल्प पत्र है।” 5 अगस्त 2019 को संसद ने जो निर्णय लिया, उस पर अपनी मुहर लगाकर, उच्चतम न्यायलय ने कहा कि एक भारतीय के तौर पर हम सब एक हैं। मोदी ने लिखा कि वो जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों को यक़ीन दिलाना चाहते हैं कि उनकी सरकार दोनों क्षेत्रों की तरक़्क़ी और ख़ुशहाली के सपने पूरे करेगी। प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में विस्तार से बताया कि धारा 370 ख़त्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर में कितनी तेज़ी से तरक़्क़ी हो रही है और आतंकवादी घटनाओं, सीमा पार से घुसपैठ में कितनी कमी आई है। गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत किया। कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और पी. चिदम्बरम ने कहा कि “प्रथमदृष्ट्या जिस तरीके से धारा 370 को समाप्त किया गया, उस पर न्यायलय के फैसले से हम सम्मानपूर्वक असहमति प्रकट करते हैं। हम कांग्रेस कार्य समिति के उस प्रस्ताव को दोहराना चाहते हैं जिसमें कहा गया है कि धारा 370 का सम्मान किया जाय जब तक कि भारत के संविधान के तहत उसमें संशोधन न हो। हम जम्मू कश्मीर में पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली के न्यायलय के फैसले का स्वागत करते हैं और हमारी मांग है कि वहां जल्द विधानसभा चुनाव कराये जायं।”
फ़ैसला आने के बाद जम्मू में डोगरा समुदाय के लोगों ने मिठाइयां बांटी, शिवसेना, विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल ने कहा कि अदालत ने अपने निर्णय से साबित कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट अंग है। कश्मीर घाटी में माहौल शांत रहा। कोई विरोध प्रदर्शन और हंगामा नहीं हुआ। हालांकि सियासी तौर पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। नैशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने फैसले पर नाखुशी जताई और कहा कि पार्टी अब धारा 370 की बहाली के लिए एक लम्बी लड़ाई लडेगी। पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि उन्हें घरों में नजरबंद रखा गया है लेकिन उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इन आरोपो को बेबुनियाद बताया। पूर्व मुख्यमंत्री ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि देश की सबसे बड़ी अदालत का ये फ़ैसला जम्मू-कश्मीर में किसी को भी पसंद नहीं आया, इससे राज्य के लोगों का बहुत नुक़सान होगा, उनकी रोज़ी-रोटी छिनेगी। जम्मू-कश्मीर रियासत के पूर्व महाराजा कर्ण सिंह ने कहा कि सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना ठीक नहीं हैं, जम्मू-कश्मीर की जनता ये सच्चाई स्वीकार कर ले कि उसका विशेष दर्जा हमेशा के लिए ख़त्म हो गया है। अब धारा 370 वापस नहीं आने वाली, जम्मू-कश्मीर की जनता को अब सियासी लड़ाई की तैयारी करनी चाहिए और जब चुनाव हों, तो चुनाव डटकर लड़ें। ग़ुलाम नबी आज़ाद, महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला जैसे नेता आज भी ये तर्क दे रहे हैं कि धारा 370 भारत और कश्मीर के बीच हुए क़रार का लिंक है, इसी शर्त पर कश्मीर साथ आया था। पर ये तर्क कितना बेमानी है, ये इस बात से समझ में आ जाता है कि अक्टूबर 1947 में इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर दस्तखत हुआ, तब न तो आर्टिकल 370 था, न इसका कोई जिक्र। इसकी तो किसी ने बात तक नहीं की थी। ये तो 1950 में जब संविधान बना तब अस्तित्व में आया।
संविधान सभा ने भी जब इसे पास किया, तो ये वादा किया गया था कि धारा 370 अस्थायी है, तो ये कंडीशनल कैसे हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने इन सारी बातों पर मुहर लगा दी है। इन नेताओं को देखना तो ये चाहिए था कि धारा 370 कश्मीर को फ़ायदा पहुंचा रहा था या नुक़सान। इनको देखना तो ये चाहिए था कि धारा 370 की वजह से कश्मीर में न तो पूंजीनिवेश हुआ, न उद्योग लग पाये, न प्राइवेट हॉस्पिटल बने, न प्राइवेट स्कूल खुले। पिछले चार साल में इन सबके लिए अवसर बढ़ गए। जो राज्य पर्यटन पर जीता हो, वहां होटल चेन्स ने दिलचस्पी दिखाई, नौजवानों को रोज़गार के अवसर दिखाई देने लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद इन सब बातों को एक बार फिर से महसूस किया गया। जो लोग कहते थे कि धारा 370 हटा तो ख़ून की नदियां बह जाएंगी, वो देख रहे हैं कि कश्मीर में नौजवानों की हताशा कम हुई है। अब पाकिस्तान को कश्मीर में आतंकवाद के लिए नौजवान नहीं मिलते। जो कहते थे धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में तिरंगा उठाने वाला कोई नहीं मिलेगा, वो देख रहे हैं कि इस बार स्वतंत्रता दिवस पर पूरे कश्मीर में तिरंगा शान से लहराया, घर-घर में लहराया। ये ठीक है कि धारा 370 का समर्थन करने वाले उच्चतम न्यायालय से उम्मीद लगाए बैठे थे। अदालत ने इन सबकी बातों को पूरे इत्मीनान से सुना। अब ये विवाद हमेशा हमेशा के लिए ख़त्म हो जाना चाहिए। धारा 370 अब इतिहास के पन्नों में दफ़्न हो जाना चाहिए। कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा जल्दी मिले, वहां चुनाव हों, और चुनी हुई सरकार कश्मीर के लोगों की सुख और उनकी समृद्धि के लिए काम करे। कश्मीर में पुराने नेता, नए ज़माने के साथ चलना सीखें और इस बात को महसूस करें कि हिंदुस्तान बदल गया है। (रजत शर्मा)
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