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Wednesday, January 8, 2025

पानी भरे तालाब में तैयार करें यह फसल, बहुत ही कम समय में होगी बंपर कमाई

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रायबरेली: सिंघाड़ा जितना हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है, उससे कहीं अधिक यह किसानों के लिए उनकी आय वृद्धि करने में भी सहायक है. ऐसे में किसान सिंघाड़े की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. आपको बता दें कि सिंघाड़ा उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में उगाई जाने वाली फसल है.परंतु इसकी फसल रोपाई के दौरान कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए, तो आइए  कृषि विशेषज्ञ से जानते हैं कि सिंघाड़े की फसल रोपाई के बाद कौन-कौन सी जरूरी बातों का ध्यान रखना आवश्यक है?

कृषि के क्षेत्र में 10 सालों का अनुभव रखने वाले रायबरेली जिले के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के प्रभारी अधिकारी शिव शंकर वर्मा बताते हैं कि सिंघाड़ा जिसे अंग्रेजी में वाटर चेस्टनट कहा जाता है. यह एक जलीय फल है. इसीलिए इसे आमतौर पर लोग जलीय अखरोट के नाम से भी जानते हैं. सिंघाड़े की फसल रोपाई का काम लगभग पूरा हो चुका है. अब सिंघाड़े की खेती करने वाले किसान सिंघाड़े की फसल रोपाई के बाद किसान कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखें, जिससे उन्हें किसी प्रकार के नुकसान का सामना न करना पड़े.

इन बातों का रखें विशेष ध्यान
शिवशंकर वर्मा ने लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि सिंघाड़े की खेती करने वाले किसान इन 6 बातों का ध्यान रखें, जिससे उन्हें अच्छी पैदावार मिल सके.

1. जल प्रबंधन
सिंघाड़े की फसल जल में उगाई जाती है, इसलिए पानी का स्तर 2-3 फीट तक होना चाहिए. पानी की सतह साफ और स्वच्छ होनी चाहिए. ताकि पौधों को उचित पोषण मिले और रोग कम हों.

2. खाद और उर्वरक का उपयोग
 सिंघाड़े की फसल के लिए गोबर की खाद और जैविक खाद का प्रयोग बेहतर होता है. फास्फोरस और पोटाश जैसे उर्वरकों का संतुलित मात्रा में उपयोग करें ताकि पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिल सके.

3. कीट और रोग नियंत्रण
फसल को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए समय-समय पर निरीक्षण करें. जैविक कीटनाशक का प्रयोग करे. फसल को प्रभावित करने वाले रोगों से बचाने के लिए पानी की गुणवत्ता का ध्यान रखें.

4. फसल की कटाई का समय
जब सिंघाड़े का रंग गहरा हो जाए और फलों की त्वचा थोड़ी कठोर हो, तो इसे काटने का सही समय होता है. जल्द ही कटाई करने से फसल का आकार छोटा रह सकता है और देर से कटाई करने पर गुणवत्ता खराब हो सकती है.

5. जल निकासी और सफाई
फसल की बढ़वार के समय जल निकासी की उचित व्यवस्था करें. ताकि जल जमाव न हो. इसके साथ ही फसल क्षेत्र को साफ रखें जिससे कीट और रोगों का प्रकोप कम हो.

6. सहायक पौध संरक्षण उपाय
रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करें और पौध संरक्षण के अन्य जैविक उपायों का उपयोग करें. ताकि रासायनिक दवाओं की जरूरत कम हो और पर्यावरण भी सुरक्षित रहे.

Tags: Agriculture, Local18, Raebareli News



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