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Friday, October 18, 2024

पुलिस को जग्गी वासुदेव के आश्रम में नहीं मिली कोई गड़बड़ी, सुप्रीम कोर्ट में जमा कराई रिपोर्ट

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सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन को लेकर तमिलनाडु पुलिस के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक रिपोर्ट सौंपी गई है। इसमें आश्रम में अवैध रूप से बंधक बनाने के कोई सबूत नहीं मिले हैं। आपको बता दें कि आश्रम के खिलाफ जांच मद्रास हाईकोर्ट के 30 सितंबर के आदेश के बाद शुरू हुई। अदालत ने पुलिस को उन दावों की जांच करने का निर्देश दिया था जिसमें 38 और 42 वर्ष की दो महिलाओं को कोयंबटूर के थोंडामुथुर में आश्रम में बंधक बनाकर रखने की बात कही गई थी।

कोयंबटूर के एक रिटायर प्रोफेसर ने आरोप लगाया था कि उनकी बेटियों को अवैध रूप से बंधक बनाकर रखा गया है। पिता ने दावा किया कि उन्हें आश्रम के मठवासी मार्ग में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया और उन्हें बाहर जाने से रोका गया। इन आरोपों के बाद हाईकोर्ट ने पुलिस जांच का निर्देश दिया था। इसके बाद 150 अधिकारियों की एक बड़ी पुलिस टीम एक अक्टूबर को जांच के लिए आश्रम परिसर में दाखिल हुई।

भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने 3 अक्टूबर को कोयंबटूर के थोंडामुथुर में फाउंडेशन के आश्रम में पुलिस द्वारा की जा रही जांच पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले को हाईकोर्ट से अपने पास स्थानांतरित कर लिया था। कोर्ट ने पुलिस को जांच रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था।

कोयंबटूर के पुलिस अधीक्षक द्वारा तैयार की गई पुलिस रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों महिलाओं ने अपने पिता के दावों का स्पष्ट रूप से खंडन किया है। दोनों ने कहा कि वे अपनी इच्छा से आश्रम में रह रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों महिलाएं काफी पढ़ी लिखी हैँ। उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने अपनी इच्छा से ईशा योग केंद्र में मठवासी मार्ग चुना है। वे किसी दबाव या जबरदस्ती वहां नहीं रह रही हैं।

महिलाओं ने पुलिस को यह भी बताया कि दोनों नियमित रूप से अपने माता-पिता से मिलती हैं। हाल ही में 7 जून, 2024 को अपने माता-पिता की सालगिरह पर उनसे मिली थीं। पुलिस रिपोर्ट में उनके माता-पिता के साथ उनकी मुलाकातों के सीसीटीवी फुटेज के साथ-साथ महिलाओं द्वारा हाथ से लिखे गए बयान भी शामिल किए गए हैं। महिलाओं ने यह स्पष्ट किया कि उनके पिता के साथ उनके संबंध तभी खराब हुए जब उन्होंने उनके कारावास के बारे में सार्वजनिक रूप से आरोप लगाना जारी रखा। ये आरोप झूठे थे।

रिपोर्ट के अनुसार, ईशा फाउंडेशन में रहने वाले कुल 217 ब्रह्मचारियों (भिक्षुओं) में से 30 का साक्षात्कार लिया गया। सभी ने पुष्टि की कि वे अपनी मर्जी से वहां रह रहे थे। रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया कि महिलाएं एक स्वस्थ जीवन शैली जी रही थीं। उनमें से एक ने 10 किलोमीटर की मैराथन में भी भाग लिया था।



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