मिर्जापुर: गंगा के पवित्र तट पर ईशान कोण में स्थित मां विंध्यवासिनी धाम को आदिशक्ति का साक्षात् स्वरूप माना जाता है. मां के दर्शन मात्र से समस्त भक्तों के कष्टों का अंत हो जाता है. इस पावन धाम का उल्लेख त्रेता युग से जुड़ा हुआ है. जब स्वयं भगवान श्रीराम ने यहां पधार कर अपने पिता राजा दशरथ के मोक्ष के लिए पिंडदान किया था.
जानें यहां पिंडदान की परंपरा
ऐसे में मिर्जापुर के रामगया घाट पर संपन्न इस धार्मिक कृत्य के बाद प्रभु श्रीराम ने शिवपुर में भगवान शिव की स्थापना की, जो आज “रामेश्वरम” के नाम से विख्यात है. यह स्थान तब से लेकर आज तक दूर-दूर से श्रद्धालुओं को अंतिम संस्कार और पिंडदान के लिए आकर्षित करता रहा है. यहां पिंडदान करने से गया धाम के समान फल की प्राप्ति होती है.
मां विंध्यवासिनी के दर्शन किए थे श्रीराम
वहीं, विन्ध्यधाम के प्रख्यात कथावाचक पं. अनुपम महाराज ने लोकल 18 से विशेष बातचीत में बताया कि पौराणिक ग्रंथों में प्रभु श्रीराम के यहां आगमन का उल्लेख मिलता है. अयोध्या वापसी के बाद गुरु वशिष्ठ की आज्ञा पर प्रभु श्रीराम ने मां विंध्यवासिनी के दर्शन किए, जहां उन्होंने धर्मदान और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए.
इसके उपरांत उन्होंने रामगया घाट पर पिंडदान संपन्न किया, जिसके बाद से इस घाट को रामगया घाट के नाम से जाना जाने लगा. यह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है और यहां अंतिम संस्कार व पिंडदान करने से व्यक्ति को महान पुण्य की प्राप्ति होती है.
रामेश्वरम की स्थापना और महिमा
उन्होंने बताया कि प्रभु श्रीराम ने पिंडदान के बाद शिवलिंग की स्थापना की, जिसे “रामेश्वरम” के नाम से जाना जाता है. यह मंदिर विशेष महत्व रखता है, जहां पिंडदान के बाद भक्तजन अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं. पितृ पक्ष के दौरान विशेष रूप से अमावस्या पर यहां पिंडदान और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं. आगामी अमावस्या 2 अक्टूबर को है. ऐसे में इस पवित्र धाम में एक बार फिर भक्तों का सैलाब उमड़ने की संभावना है.
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FIRST PUBLISHED : September 26, 2024, 10:41 IST