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Mirzapur Latest News: मिर्जापुर में बनने वाले तबलों की थाप देश-विदेश में मचा रही है धूम. तीसरी पीढ़ी के कारीगर इम्तियाज़ हुसैन की मेहनत और हुनर से तैयार हो रहे हैं ऐसे तबले, जिनकी डिमांड महाराष्ट्र, दिल्ली, पंज…और पढ़ें
हाइलाइट्स
- मिर्जापुर में बनने वाले तबलों की थाप अब दुनिया भर में गूंज रही है.
- कारीगर इम्तियाज हुसैन इस पारंपरिक वाद्ययंत्र को तैयार कर रहे हैं.
- इन तबलों की मांग देश ही नहीं, विदेशों में भी बढ़ रही हैं.
मिर्जापुर: तबले की थाप सुनते ही रूह तक झनझना उठती है. अगर उस थाप के साथ संगीत का तालमेल भी हो, तो आनंद दोगुना हो जाता है. उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में तैयार होने वाला तबला (Mirzapur Tabla) न सिर्फ देश में, बल्कि विदेशों में भी बेहद लोकप्रिय है. यहां के तबले की थाप पर लोग खुद को थिरकने से नहीं रोक पाते. खास बात ये है कि यहां तीसरी पीढ़ी तबला बजाने की बजाय अब तबला बनाने में जुट गई है और इस हुनर को एक नई पहचान दे रही है.
तीसरी पीढ़ी ने बदली राह, अब तबला बनाकर कमा रहे मुनाफा
मिर्जापुर के घुरहूपट्टी इलाके में रहने वाले इम्तियाज हुसैन कई सालों से तबला तैयार कर रहे हैं. उनके दादा अंग्रेजों के जमाने में तबलावादक थे और पिता ने भी लंबे समय तक तबला बजाया. लेकिन अब तीसरी पीढ़ी ने इसे बनाना ही पेशा बना लिया है. इम्तियाज हफ्ते में करीब 50 तबले तैयार करते हैं. उनके साथ चार कारीगर काम करते हैं, जो बेहद बारीकी से हर तबले को तैयार करते हैं. इस पूरे काम में कई चरण होते हैं, जिसमें लकड़ी की बनावट से लेकर चमड़े की फिटिंग और धुन की जांच तक शामिल होती है.
मिर्जापुर के इम्तियाज हुसैन बताते हैं कि वे थोक में तबले बनाकर दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के दुकानदारों को सप्लाई करते हैं. वहीं से तबले विदेशों तक भी पहुंचते हैं. एक तबला बनाने में करीब तीन हजार रुपये खर्च आता है और इसे तैयार करने में दो से तीन दिन का समय लगता है. हालांकि थोक में बिक्री होने की वजह से मुनाफा बहुत ज़्यादा नहीं होता, लेकिन मांग हमेशा बनी रहती है. वे कहते हैं, “मांग के अनुसार आपूर्ति नहीं हो पाती, क्योंकि यह काम समय और मेहनत मांगता है.”
हफ्ते में बनते हैं 20 से 30 तबले
कारीगर नदीम खान बताते हैं कि वे कई सालों से तबला बनाने का काम कर रहे हैं. इस क्षेत्र में हमेशा काम की मांग बनी रहती है. वे कहते हैं, “प्रतिदिन 500 से 600 रुपये की कमाई हो जाती है. हफ्ते में करीब 20 से 30 तबले बना लेते हैं, लेकिन तबला बनाने में बेहद बारीकी की ज़रूरत होती है. इसी वजह से हफ्ते भर में सिर्फ 50 तक ही तैयार हो पाते हैं.”