मथुरा: कृष्ण की नगरी वृंदावन में एक प्रेरणादायक कहानी सामने आई है. 10 वर्ष की उम्र में घर-परिवार त्यागकर भगवान की भक्ति में लीन होने वाले शिवम ने राधा दामोदरदास के रूप में नई पहचान बनाई है. उनका सफर, साधना और भगवान के प्रति असीम श्रद्धा इस कथा को विशेष बनाते हैं.
शिवम, जो अब राधा दामोदरदास के नाम से जाने जाते हैं, मथुरा जिले के रहने वाले हैं. बचपन में ही उनके पिता का स्वर्गवास हो गया था, जिसके बाद उनका ज्यादातर समय ननिहाल में बीता. वहां घर के पास स्थित एक मंदिर ने उनके मन में भगवान के प्रति जिज्ञासा और आस्था का बीज बोया. सातवीं तक सामान्य शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने संस्कृत विद्यालय में अध्ययन किया और अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू की.
संन्यास की ओर कदम
राधा दामोदरदास ने बताया कि 10 साल की उम्र में उन्होंने सब कुछ त्यागकर वृंदावन का रुख किया. यहां उन्होंने एक गुरु से दीक्षा ली और संन्यासी जीवन को अपनाया. उन्होंने कहा, “प्रभु की भक्ति को ही मैंने अपना परिवार बना लिया है.”
कृष्ण की नगरी में जीवन
वृंदावन को साधु-संतों की नगरी कहा जाता है, और यहां राधा दामोदरदास जैसे सन्यासी अपने तप और भक्ति से इसे और पावन बना रहे हैं. उन्होंने बताया कि मंदिर के प्रांगण में बिताए समय ने उनके जीवन को दिशा दी. वर्तमान में वे भगवान सीता-राम की पूजा और सेवा में समय बिताते हैं.
परिवार के प्रति भावनाएं
हालांकि उन्होंने सन्यास ले लिया है, लेकिन उनकी मां अगर उनसे मिलने वृंदावन आएंगी, तो वे अवश्य उनसे मिलेंगे. उनके अनुसार, “माता-पिता का स्थान जीवन में विशेष होता है, और भक्ति के मार्ग पर चलने के बावजूद मैं उनके प्रति आदर रखता हूं.”
प्रेरणा का स्रोत
राधा दामोदरदास की यह यात्रा भगवान के प्रति समर्पण और भक्ति का उदाहरण है. उनकी कहानी यह बताती है कि जब भक्ति की लगन लगती है, तो मनुष्य जीवन के सांसारिक बंधनों से ऊपर उठकर दिव्यता को अपनाता है.
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FIRST PUBLISHED : November 28, 2024, 12:09 IST