मथुरा. ब्रज भूमि वह पावन स्थान है, जहां की रज-रज में भगवान विद्यमान रहते हैं और 33 कोटि देवता विराजमान रहते हैं. इसीलिए मान्यता है कि इस पावन भूमि में मुक्ति को भी मुक्ति मिल जाती है. कान्हा की नगरी के वृंदावन की बाहरी सीमा पर आगरा दिल्ली नेशनल हाईवे से थोड़ी दूर स्थित है गरुण गोविंद जी का मंदिर. यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां गोविंद विष्णु भगवान जी 12 भुजाओं में विराजमान है और उनकी एक तरफ लक्ष्मी जी विराजमान है, तो दूसरी ओर बाल स्वरूप में कृष्ण कन्हैया.
शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि इस मंदिर में विधि-विधान से पूजा करने पर कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है. इस संबंध में आचार्य शिवदत्त पाराशर ने बताया कि जाने अनजाने भूलवश यदि सांप की हत्या की जाती है या हो जाती हे और कुंडली में सभी ग्रहों के बीच राहु केतु के आने से काल सर्प योग बन जाता है, जो दोनों ही लाभ और हानि जीवन में देता है. यदि काल सर्प दोष कुंडली में है, तो गरुण गोविंद मंदिर में पूजा करने से मुक्ति मिलती है.
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तीन दिन करनी होगी पूजा
तीन दिन में विधि-विधान से पूजा संपन्न होती है जिसके बाद जीवन की उन्नति में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और जीवन खुशहाल रहता है. इस संबंध में एक और मान्यता है कि द्वापर युग में गरुण जी के डर से यमुना नदी में कालिया नाग रहता था और गरुण जी के डर के चलते यमुना जी को छोड़कर नहीं जाता था कालिया नाग को डर था कि यदि वह वृंदावन से जाएगा तो उसे गरुण खा जाएंगे, उधर कालिया नाग के जहर से यमुना का जल विषैला था और उसका पानी-पीने से जानवर ओर लोग मर जाते थे, जिससे आहत होकर ब्रजवासियों के कहने पर भगवानकृष्ण ने कलिया नाग का मर्दन किया था और कलिया नाग यमुना को छोड़ने का मजबूर हुआ.
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अंत में कालिया नाग ने भगवान कृष्ण से गरुण का भय बताया जिस पर भगवान कृष्ण ने कालिया नाग से कहा कि तुम्हारे ऊपर मेरे चरण चिन्ह है जिसके चलते गरुण तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे और उसके बाद कलिया नाग यमुना को छोड़ गए. तब भगवान कृष्ण ने कहा कि जो भी ब्रज की सीमा में रहकर भजन करेगा उसको भी काल सर्प दोष के योग से मुक्ति मिलेगी.
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इस मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रतिदिन आते है पूजा पाठ करते हैं. इस मंदिर में ब्रज और आसपास के इलाके के नव दंपत्ति भी आकर हजारी लगाते हैं ताकि उनके जीवन में सुख शान्ति बनी रहे. क्योंकि यहां लक्ष्मी और गोविंद दोनों एक साथ विद्यमान है. यहां लोग संबंध तय होने पर सबसे पहले शादी का कार्ड भगवान के चरणों में रखकर जाते हैं और जब शादी संपन्न हो जाती है, तो भगवान को प्रसाद और श्रृंगार का सामान भेंट करने आते हैं.
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FIRST PUBLISHED : November 23, 2024, 17:50 IST