6.5 C
Munich
Wednesday, September 18, 2024

शायरी की एक लाइन और लिख डाला पूरा गाना, आज भी नहीं इस रोमांटिक सॉन्ग का कोई मुकाबला, दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड जीतने वाले पहले गीतकार

Must read


मजरूह सुल्तानपुरी के गाने से जुड़ा दिलचस्प किस्सा


नई दिल्ली:

मजरूह सुल्तानपुरी: कुछ गाने बेहद यादगार होते हैं. दौर कोई से भी हों, जनरेशन का नाम कुछ भी हो. उन गानों के जज्बात में डूबे अल्फाज हर बार मौजू ही लगते हैं. ऐसा ही एक गीत है जो फिल्माया गया है सुनील दत्त और आशा पारेख पर. गीत के बोल ऐसे हैं कि सुनकर आप भी कहेंगे कि महबूब की आंखों की तारीफ के लिए इससे बेहतर गजल क्या होगी. गाने के सिंगर और कंपोजर की जितनी तारीफ की जाए कम है. लेकिन उससे कहीं ज्यादा तारीफ के हकदार हैं इस यादगार नगमे को शब्दों से सजाने वाले लिरिसिस्ट मजरूह सुल्तानपुरी का  जिन्होंने सिर्फ एक लाइन सुनकर ये खूबसूरत गीत रच दिया था. मजरूह सुल्तानपुरी का असली नाम असरार उल हसन खान था.

जिस गीत की हम बात कर रहे हैं वो है चिराग फिल्म का गीत तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है. इस गाने के लिए डायरेक्टर राज खोसला ने मजरूह सुल्तान पुरी को बुलाया. उन्हें फैज अहमद फैज की गजल मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न मांग की एक लाइन तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा  क्या है दी. राज खोसला ने कहा इस एक लाइन पर पूरा गाना बनाना है. मजरूह सुल्तानपुरी ने भी ये चैलेंज लिया और खूबसूरत गीत रच दिया. ये गाना इतना पसंद किया गया कि फिल्म में इसे पहले मोहम्मद रफी और फिर लता मंगेशकर की आवाज में गवाया गया. गाने में म्यूजिक दिया था मदन मोहन जोशी ने.



अपनी कलम के हुनर से मजरूह सुल्तानपुरी ने कभी यादगर नगमे लिखे हैं. दोस्ती फिल्म के गाने चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे के लिए उन्हें फिल्म फेयर बेस्ट लिरिसिस्ट अवॉर्ड जीता था. साल 1993 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया. ये प्रतिष्ठित अवॉर्ड जीतने वाले वो बॉलीवुड के पहले लिरिसिस्ट बने. मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म 1 अक्तूबर 1919 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ था. उनका निधन 24 मई 2000 को मुंबई में हुआ.





Source link

- Advertisement -spot_img

More articles

- Advertisement -spot_img

Latest article