18.8 C
Munich
Friday, August 23, 2024

'अर्बन नक्सल' पर महाराष्‍ट्र में नकेल कसने की तैयारी, नए कानून को लेकर विपक्ष ने साधा निशाना

Must read




मुंबई:

महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) भी तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और छत्तीसगढ़ की तर्ज पर अब विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 2024 (Special Public Security Bill 2024) लाने की तैयारी में जुटी है. सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि जंगल में गुरिल्ला युद्ध करने वाले सशस्त्र नक्सलियों से तो सुरक्षाबल निपटने में कामयाब हो रही है, लेकिन प्रभावी कानून के अभाव में नक्सलियों को लॉजिस्टिक सपोर्ट देने वाले अर्बन नक्सलियों से निपटने में मुश्किल आ रही है. नक्सल प्रभावित जिले गढ़चिरौली में सी-60 कमांडो और अन्य सुरक्षा एजेंसियां लगातार नक्सलियों का सफाया करने में जुटी हैं. सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि इसमें काफी हद तक सफलता भी मिली है, लेकिन शहरों में बैठे नक्सली समर्थक इसमें बड़ी बाधा बन रहे हैं. 

आईजी संदीप पाटिल ने कहा कि हमने देखा है कि ये लोग नक्सलियों को लॉजिस्टिक सपोर्ट, आर्म्स एंड एनिमेशन देने, उनके कैडर का इलाज करवाने जैसे काम करते हैं. उनसे बरामद दस्तावेजों से भी पता चलता है कि यह नक्‍सलियों के लिए सेफ हाउस हैं. यह माओवादियों का प्रोपेगेंडा करते हैं और समाज में असंतोष पैदा करते हैं. ऐसे संगठनों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कानून नहीं है. केंद्र सरकार का भी निर्देश है कि ऐसा कानून बनाया जाए, जिसके जरिए समाज में असंतोष पैदा करने वाले संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सके. 

इसलिए की जा रही कानून की मांग 

देश में आतंकवाद के खिलाफ UAPA जैसा कड़ा कानून है. सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि उसके जरिए आतंकी कार्रवाई में सीधे शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई करना तो संभव है, लेकिन शहरों में उनके संगठन के खिलाफ कार्रवाई करने में कानूनी अड़चनें आती हैं. 

उन्‍होंने कहा कि अभी हाल ही में नागपुर हाईकोर्ट के साईं बाबा केस का जो ऑर्डर आया है. जिसमें हाइकोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि सिर्फ माओवादी लिटरेचर होना या कोई भाषण देना, यह UAPA में दोषी साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है. इसलिए स्टेट पब्लिक सिक्‍योरिटी एक्ट जो तीन चार राज्यों में है, वैसे ही यहां भी कानून बना रहे हैं. 

सरकार की नीयत पर उठ रहे सवाल 

हालांकि अभी इस बिल को सलाहकार समिति के पास भेजा गया है, लेकिन जिस तरह से इसमें सामाजिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर नकेल कसने की बाते हैं, उससे विपक्ष, कुछ सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग और कुछ वरिष्ठ पत्रकार सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहे हैं. 

शिवसेना यूबीटी के सांसद संजय राऊत ने कहा कि ये अर्बन नक्सल कानून अपने विरोधियों को तकलीफ देने के लिए है. बहुत से कानून लाए, लेकिन खुद के ऊपर नहीं चलाते. दवा खुद नहीं लेते, उसमें जहर मिलाकर दूसरों को देते हैं. 

वहीं वरिष्‍ठ पत्रकार नीता कोल्‍हटकर ने कहा कि एक पत्रकार होने के नाते हमें इसे अलग-अलग नजरिए से देखना चाहिए, क्योंकि यह लोकतंत्र के खिलाफ है. इस देश में शहीद भगत सिंह और महात्मा गांधी दो अलग-अलग विचारधारा हैं, लेकिन आज भी प्रेरणादायक है. आज भी लोग उन्हें मानते हैं, लेकिन आप विरोध करने पर पाबंदी लगाएंगे तो आप सोचिए कि किस तरह से हम एक पुलिस राज में जा रहे हैं. 

बीजेपी ने बताया विपक्ष की ओछी राजनीति 

हालांकि सत्ताधारी दल बीजेपी इस बिल के विरोध को विपक्ष की ओछी राजनीति बता रही है. महाराष्‍ट्र भाजपा के प्रवक्‍ता राम कदम ने कहा कि देश के विपक्ष ने ठान रखी है कि जिस प्रकार से संविधान के बारे में झूठा भ्रम फैलाया है, उसी प्रकार से नए कानून को लाने का जो प्रावधान किया जा रहा है उस पर ओछी राजनीति की जा रही है. 

ये भी पढ़ें :

* नर्म मिट्टी पर लगाया गया था होर्डिंग, आसपास के पेड़ों को जहर देकर किया गया खराब, घाटकोपर हादसे में 17 मौतों का जिम्मेदार कौन?
* ट्रेनी IAS पूजा खेडकर के माता-पिता कहां हो गए गायब? पुलिस ने शुरू की तलाश
* दिल्ली में मोदी-सोरेन और मुंबई में पवार-भुजबल, एक दिन में इन 2 मुलाकातों की क्या है इनसाइड स्टोरी?




Source link

- Advertisement -spot_img

More articles

- Advertisement -spot_img

Latest article