राम बिलास शर्मा ने टिकट कटता देख किसी दूसरे के नाम का ऐलान होने से पहले ही अपना नामांकन भी कर दिया था। हाईकमान को अपने योगदान की याद वह दिलाते रहे। वह कहते रहे कि उनका 55 साल का संघर्ष रहा है। मैंने डंडा नहीं बदला, झंडा नहीं बदला और एजेंडा नहीं बदला। मुझे कमजोर न करें। आपको मेरे ईमान की कसम, मेरे जयराम भगवान की कसम, आप मुझे भावुक होकर कमजोर न करें। नहीं तो मैं टूट जाऊंगा। जिंदगी 10 साल या 15 साल की है, मुझे अंत में उस झंडे के साथ ही रहने दीजिए। बावजूद इसके हाईकमान नहीं पसीजा।
बीजेपी के लिए हरियाणा में राम बिलास शर्मा का योगदान कोई सामान्य नहीं है। 1982 में उन्होंने पहली बार बीजेपी से चुनाव लड़ा था। 1991 में वह पूरे प्रदेश में अकेले बीजेपी से चुनाव जीते थे। 2014 में जब बीजेपी हरियाणा में पहली बार अपने दम पर सत्ता में आई तो राम बिलास शर्मा ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे। सीएम के लिए भी वही सबसे बड़े दावेदार थे, लेकिन लॉटरी निकली मनोहर लाल खट्टर के नाम। केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने भी कहा कि जब वह स्वयं कांग्रेस पार्टी में होते थे तो हरियाणा में बीजेपी का झंडा केवल रामबिलास शर्मा लहराते थे। पार्टी टिकट दे या न दे, लेकिन उन्हें बेइज्जत करने का अधिकार किसी को नहीं है। अगर पार्टी उन्हें नकारती है तो केवल महेंद्रगढ़ में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश को इससे धक्का लगेगा।
जले में नमक यह कि इसी बीच मुख्य सचिव की तरफ से रामबिलास शर्मा और उनके बेटे गौतम शर्मा के खिलाफ एक मामले में कार्रवाई का लेटर वॉट्सऐप्प पर वायरल हो गया। पूर्व केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी मनाने आए तो राम बिलास शर्मा की उनसे बहस भी हुई। खट्टर मुर्दाबाद और बीजेपी मुर्दाबाद के नारे भी लगे। आखिर टिकट न मिलने पर उन्होंने अपना नॉमिनेशन वापस ले लिया, लेकिन यह साफ हो गया कि मोदी युग में पार्टी के लिए किसी की कुबार्नी के कोई मायने नहीं हैं।