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Friday, July 5, 2024

Explainer: कैसे अफगानिस्तान में क्रिकेट को लेकर बढ़ी इतनी दीवानगी, कैसे निकलते हैं वहां से खिलाड़ी

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Craze for cricket in Afghanistan: अफगानिस्तान के लिए वेस्टइंडीज और अमेरिका की सहमेजबानी में खेला जा रहा आईसीसी टी-20 विश्व कप ऐतिहासिक साबित हुआ है. अफगानिस्तान ने पहली बार सेमीफाइनल में जगह बनाकर क्रिकेट की दुनिया को अपना दमखम दिखाया है. अफगान टीम ने सुपर-8 दौर में पहले ऑस्ट्रेलिया जैसी दिग्गज टीम को पटखनी दी और फिर बांग्लादेश को शिकस्त देकर शान के साथ अंतिम चार टीमों में जगह बनाई. ये दोनों टीमें रेंकिंग में उससे काफी ऊपर हैं. अफगानिस्तान की कामयाबी इस नजरिये से महत्वपूर्ण है कि तीन साल पहले इस मुल्क की सत्ता पर तालिबानियों ने कब्जा कर लिया था. उसके बाद से देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमराई हुई है. आम नागरिकों के लिए वहां के हालात बद से बदतर हो चुके हैं. ऐसे में टीम की सफलता पर पूरा देश खुशी से झूम उठा है.

तालिबान ने पहले लगाया बैन, फिर हटाया
एक जमाना था जब तालिबान ने अफगानिस्तान में सभी खेलों पर प्रतिबंध लगा दिया था. जो खेलता दिखता उसे गोली से उड़ा दिया जाता. लेकिन साल 2000 में तालिबान ने क्रिकेट पर लगा यह प्रतिबंध खत्म कर दिया. तालिबान को इस खेल में काफी मनोरंजन नजर आया. उसके बाद से जब भी अफगानिस्तान क्रिकेट टीम कोई बड़ा मैच या टूर्नामेंट खेलते तो उसे शुभकामनाएं देने में तालिबानी सबसे आगे होते. क्रिकेट की दीवानगी का आलम ये हो गया कि तालिबान के नियंत्रण वाले इलाके में क्रिकेट मैच सबसे ज्यादा देखे जाने लगे. जो लोग टीवी पर मैच नहीं देख सकते थे वो रेडियो पर कमेंट्री सुनते थे. दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रीय टीम में खेलने वाले सबसे ज्यादा खिलाड़ी इन्हीं इलाकों से आते हैं.  

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पाकिस्तान के शरणार्थी कैंपों में सीखा क्रिकेट
अफगानिस्तान की टीम में कई ऐसे क्रिकेटर हैं, जो देश में चल रहे गृहयुद्ध के समय अपने माता-पिता और परिवार के साथ पाकिस्तान में शरणार्थी शिविरों में रहे थे. तब वो काफी छोटे थे. उन्होंने पाकिस्तानियों को क्रिकेट खेलते देखा तो उनकी भी इस खेल में दिलचस्पी बढ़ी. बाद में वे खुद भी क्रिकेट खेलने लगे. जब ब्रिटिश फौजें 19वीं सदी में इस देश को फतह करने पहुंची थीं, तब भी अफगानियों को क्रिकेट का चस्का लगा था, लेकिन वो धीरे-धीरे खत्म हो गया. इस खेल का असली नशा को उन्हें पाकिस्तान के शरणार्थी शिविरों में ही चढ़ा.

तालिबानी भी लेने लगे क्रिकेट का लुत्फ
ताज मलूक खान के शख्स ने 80 के दशक में पेशावर के काचा गारी  शरणार्थी शिविर के बाहर एक अफगान क्रिकेट क्लब बनाया. एक दशक बाद जब अफगान नागरिक अपने देश लौटने लगे तो क्रिकेट को अपने साथ ले आए. शुरुआत में तो तालिबान ने सभी खेलों पर प्रतिबंध लगाया हुआ था. उनका मानना था कि खेलों की वजह से व्यक्ति नमाज से दूर हो जाता है. बाद में तालिबान का क्रिकेट को लेकर रवैया नरम होता चला गया. फिर वो दौर भी आया तालिबानी लड़ाकों ने अपनी एके-47 गनों को क्रिकेट के लिए किनारे रख दिया. जब अफगानिस्तान ने विश्व कप 2019 के लिए क्वालीफाई किया तो उन्होंने पूरे देश को गोलियों से थर्रा दिया. तालिबानियों का क्रिकेट में जीत पर खुशी जाहिर करने का यह अपना तरीका था.

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ग्रामीण इलाकों में क्रिकेट का जोर
एक रिपोर्ट के अनुसार क्रिकेट ही ऐसा खेल है, जिसका आनंद तालिबानी कमांडर भी लेते हैं. इनके नियंत्रण वाले इलाकों में क्रिकेट मैच में देखने वालों की भारी भीड़ इकट्ठा हो जाती है. कमाल की बात है कि इस दौरान कोई लड़ाई- झगड़ा नहीं होता है. ये सभी अपने देश की टीम के प्रशंसक हैं और उसकी भरपूर हौसलाअफजाई करते हैं. 

खुलने लगीं क्रिकेट अकादमियां
जब से अफगानिस्तान में क्रिकेट को लेकर दीवानगी बढ़ी है वहां जगह-जगह क्रिकेट अकादमियां खुलने लगी हैं. बच्चे गांवों और शहरों में क्रिकेट खेलते हुए दिख जाते हैं. हालांकि अफगानिस्तान के मौजूदा हालात की वजह से विदेशी टीमें वहां खेलने नहीं जाती हैं. ऐसी स्थिति में अफगानिस्तान की टीम ने भारत में ग्रेटर नोएडा को अपना ठिकाना बनाया. उसके बाद अपने घरेलू मैदान को देहरादून और अंततः दुबई में स्थानांतरित कर दिया. अफगानिस्तान की सफलता के पीछे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड द्वारा पड़ोसी देश के लिए ग्रेटर नोएडा और देहरादून में मैदान और ट्रेनिंग के लिए बुनियादी ढांचा उपलब्ध करवाना है. जो विदेशी टीम अफगानिस्तान नहीं आना चाहती उसके साथ वे तटस्थ स्थान पर मैच खेलते हैं. उसने विदेशी टीमों के साथ भारत में कुछ मैच भी खेले हैं.

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भारत में भी मना जीत का जश्न
भारत में रह रहे अफगान शरणार्थियों और छात्रों को मुल्क की याद सबसे ज्यादा दो मौकों पर आती है जब उनकी मां ईद पर बिरयानी बनाती हैं और जब उनके पसंदीदा गेंदबाज राशिद खान स्टंप उखाड़ते हैं. ग्रेटर नोएडा की शारदा यूनिवर्सिटी में बड़ी संख्या में अफगानी छात्र पढ़ते हैं. जाहिर है वो अफगान टीम की सफलता को लेकर रोमांचित हैं. अब वो सेमीफाइनल मैच को लेकर उत्साहित हैं. सुपर-8 में बड़ी टीमों पर जीत के बाद दिल्ली के भोगल और लाजपत नगर में कई अफगान शरणार्थियों के घर पर जश्न का माहौल था. यहां तक ​​कि जो लोग क्रिकेट में दिलचस्पी नहीं रखते, वे भी सेमीफाइनल मैच देखने और अपने देश के लिए नारे लगाने को तैयार हैं. 

Tags: Afghanistan Cricket, Afghanistan taliban news, Cricket world cup, Icc T20 world cup, Taliban afghanistan



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