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Tuesday, April 1, 2025

NDTV की मुहिम: फ्लैट की पूरी पेमेंट करने के बाद भी नहीं की गई रजिस्ट्री… होम बायर्स का दर्द जान आप भी रह जाएंगे हैरान

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गाजियाबाद की इस सोसाइटी में मिल रही सुविधाओं से खुश नहीं है होम बायर्स


गाजियाबाद:

अपने घर का सपना कौन नहीं देखता, हर कोई चाहता है कि वह अपने जीवन की खून-पसीने की कमाई से अपने लिए सपनों का घर खरीदे. जहां उसका परिवार उसके साथ रहे. लेकिन बिल्डर्स की गलतियों के कारण कई बार ये सपना सपना ही रह जाता है. NDTV की खास मुहिम में हमने ऐसे ही होम बायर्स के दर्द को जानने की कोशिश की जो दशकों से अपने सपने के घर की चाबी मिलने के इंतजार में हैं या जिन्हें अपना आशियाना मिल तो गया है लेकिन घर खरीददते समय बिल्डर ने जो वादा किया था वो आज तक पूरा नहीं किया गया. 

ऐसे ही एक सासाइटी है गाजियाबाद के सिद्धार्थ विहार में. फ्रेगरेंस ड्रीम होम प्रोजेक्ट में बने फ्लैट में लोग रह तो रहे हैं लेकिन उन्हें फ्लैट बेचते समय जो वादे किए गए थे वो आज तक पूरे नहीं किए. फ्लैट खरीददार इस सोसाइटी में कई सुविधाओं के ना होने और किए गए वादे को पूरा ना किए जाने की शिकायत कर रहे हैं. 

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विनय तिवारी ने बताया कि यहां सारी बुनियादी सुविधाओं का आभाव है. ये प्रोजेक्ट 2015 में लॉन्च किया गया था. 2021-2022 में बिल्डर ने सबको पजेशन देना शुरू कर दिया. पजेशन देते समय ये लिखा जाता है कि अगर आप 45 दिन के अंदर सारे पैसे नहीं देते हैं तो आपका फ्लैट कैंसल किया जाएगा. अब आप ऐसी स्थिति में एक बायर की भी सोचिए. वो एक तरफ रेंट दे रहा है दूसरे तरफ उसको अगले 45 दिन में ही नए फ्लैट के बचे पैसे भी चुकाने हैं. ऐसे में उसकी मजबूरी है कि वह इस फ्लैट में आए. ऊपर से रजिस्ट्री भी नहीं हुई है. जो लोग दो तीन साल से यहां रह रहे हैं अगर वो बिल्डर के पास अपनी समस्या लेकर जाए तो वो अपना अलग दीमाग चलाने लगते हैं.  

एक अन्य खरीददार ने बताया कि हमने 2015 में ही 60 लाख रुपये दे दिया था. इसके बावजूद भी आज तक इन्होंने हमे कुछ नहीं दिया और ऊपर से ये हमारा फ्लैट कैंसल कर अब किसी और को बेच रहे हैं. 

इसी सोसाइटी में रहने वाली एक महिला बायर ने बताया कि उन्हें यहां आए दो साल हो गए हैं. दो साल से हम परेशान हैं. हमारी कोई सुनवाई नहीं होती. सोसाइटी की मेंटेनेंश टीम कुछ नहीं करती. घर की दीवारें खराब हो चुकी हैं. हवा से घर के दरवाजे तक टूट चुके हैं. हम यहां किस हालत में रहने को मजबूर हैं ये हमें ही पता है. 





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