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Wednesday, April 2, 2025

Bhavani Prasad Mishra ki kavitayen: मैं तैयार नहीं था सफ़र के लिए…भवानी प्रसाद मिश्र की कविताएं जो आपको आएंगी बेहद पसंद

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नई दिल्ली:

Bhavani Prasad Mishra Poem in Hindi: हिंदी साहित्य में आसान लेखनी के लिए जाने जाने वाले भवानी प्रसाद किसी पहचान के मोहताज नहीं. साहित्य में उनके योगदान के लिए हर कोई उनकी आभारी है. उनका जन्म 29 मार्च 1913 को हुआ था, उनकी कई शानदार रचनाए हैं. जिसे लोग पढ़ना खूब पसंद करते हैं. उन्होंने साहित्य में गद्य और पद्य दोनों क्षेत्रों में अपनी अद्वितीय रचनाओं से योगदान दिया है. उनके इस योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें  ‘पद्मश्री’ और ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया. वैसे तो उनकी कई रचनाएं हैं लेकिन कुछ कविताएं जो काफी दिल को छू जाती है, पढ़िए उनकी बेहतरीन कविताएं.

मैं फिर आऊंगा

गतिहीन समय ने
मुझे इस तरह फेंक दिया है

अपने से दूर
जिस तरह फेंक नहीं पाती हैं

चट्टानें लहरों को
मैं समय तक आया था यों

कि उसे भी आगे बढ़ाऊं
मगर उसने

मुझे पीछें फेंक दिया है
मैं चला था जहां से

अलबत्ता वहां तक तो
नहीं ढकेल पाया है वह मुझे

और कुछ न कुछ मेरा
समय को भले नहीं

सरका पाया है आगे
ख़ुद कुछ आगे चला गया है उससे

लांघकर उसे छिटक गए हैं
मेरे शब्द

मगर मैं उसे अब
समूचा लांघकर

आगे बढ़ना चाहता हूं
अभी नहीं हो रहा है उतना

इतना करना है मुझे
और इसके लिए

मैं फिर आऊंगा.

मैं तैयार नहीं था सफर के लिए

मैं तैयार नहीं था सफ़र के लिए
याने सिर्फ़ चड्डी पहने था और बनियान

एकदम निकल पड़ना मुमकिन नहीं था
और वह कोई ऐसा बमबारी

भूचाल या आसमानी सुल्तानी का दिन नहीं था
कि भाग रहे हों सड़क पर जैसे-तैसे सब

इसलिए मैंने थोड़ा वक़्त चाहा
कि कपड़े बदल लूं

रख लूं साथ में थोड़ा तोशा
मगर जो सफर पर चल पड़ने का

आग्रह लेकर आया था
वह जाने क्यों अधीर था

उसने मुझे वक़्त नहीं दिया
और हाथ पकड़कर मेरा

लिए जा रहा है वह
जाने किस लंबे सफ़र पर

कितने लोगों के बीच से
और मैं शरमा रहा हूँ

कि सफ़र की तैयारी से
नहीं निकल पाया

सिर्फ़ चड्डी पहने हूं
और बनियान!

चिकने लंबे केश

चिकने लंबे केश
काली चमकीली आंखें

खिलते हुए फूल के जैसा रंग शरीर का
फूलों ही जैसी सुगंध शरीर की

समयों के अंतराल चीरती हुई
अधीरता इच्छा की

याद आती हैं ये सब बातें
अधैर्य नहीं जागता मगर अब

इन सबके याद आने पर
न जागता है कोई पश्चात्ताप

जीर्णता के जीतने का
शरीर के इस या उस वसंत के बीतने का

दुःख नहीं होता
उलटे एक परिपूर्णता-सी

मन में उतरती है
जैसे मौसम के बीत जाने पर

दुःख नहीं होता
उस मौसम के फूलों का!

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