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Saturday, September 14, 2024

अप्राकृतिक यौन संबंधों को लेकर BNS में सजा का कोई प्रावधान नहीं, HC ने केंद्र को 6 महीने की दी मोहलत

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दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत बिना सहमति के कुकर्म या ‘अप्राकृतिक’ यौन संबंधों के लिए दंड का प्रावधान शामिल करने की मांग पर शीघ्र निर्णय ले। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने इससे पहले केंद्र के वकील से एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर जवाब मांगा था।

बीएनएस ने भारतीय दंड संहिता का स्थान लिया है

पीठ ने केंद्र से भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) से अप्राकृतिक यौन संबंध और कुकर्म के अपराधों के लिए दंडात्मक प्रावधानों को बाहर करने पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। याचिका में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के समकक्ष प्रावधान को नए आपराधिक कानूनों के अंतर्गत शामिल न किए जाने को चुनौती दी गई है। बता दें कि बीएनएस ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) का स्थान लिया है।

‘बिना सहमति से किया गया सेक्स दंडनीय नहीं’

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, आज, केंद्र सरकार के स्थायी वकील (सीजीएससी) अनुराग अहलूवालिया ने कहा कि सरकार इस मुद्दे पर सक्रिय रूप से विचार कर रही है, और इस पर समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाएगा। इस पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, “लोग जो मांग कर रहे थे, वह यह था कि सहमति से बनाए गए सेक्स को दंडनीय न बनाया जाए। आपने तो बिना सहमति से बनाए गए सेक्स को भी दंडनीय नहीं बनाया… किसी अपराध के लिए कोई जगह नहीं हो सकती। मान लीजिए कि अदालत के बाहर कुछ होता है, तो क्या हम सभी अपनी आंखें बंद कर लें क्योंकि यह कानून की किताबों में दंडनीय अपराध नहीं है?”

न्यायालय ने आगे कहा कि मामले पर ध्यान दिए जाने की अत्यावश्यकता है और सरकार को यह समझना चाहिए। कोर्ट ने कहा, “यदि इसके लिए अध्यादेश लाने की आवश्यकता है, तो वह भी आ सकता है। हम भी इस पर विचार कर रहे हैं। चूंकि आप बता रहे हैं कि कुछ हैं इसलिए इस प्रक्रिया में लंबा समय लग सकता है। हम बस इस पर विचार कर रहे हैं।” अंततः, पीठ ने सरकार को जनहित याचिका को एक प्रतिनिधित्व के रूप में लेने और “जितना संभव हो सके, उतना शीघ्र या फिर अधिकतम छह महीने के भीतर” निर्णय लेने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि विधायिका को बिना सहमति के अप्राकृतिक यौन संबंधों के मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत है।

“कोई प्रावधान ही नहीं है”

मामले की पिछली सुनवाई के दौरान न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि नए आपराधिक कानून में इस तरह के अपराध का कोई प्रावधान ही नहीं है। पीठ ने कहा था, “वो प्रावधान कहां है? कोई प्रावधान ही नहीं है। वो है ही नहीं। कुछ तो होना चाहिए। सवाल ये है कि अगर वो (प्रावधान) वहां नहीं है, तो क्या वो अपराध है? अगर कोई अपराध नहीं है और अगर उसे मिटा दिया जाता है, तो वो अपराध नहीं है…” पीठ ने कहा, “(सजा की) मात्रा हम तय नहीं कर सकते, लेकिन अप्राकृतिक यौन संबंध जो बिना सहमति के होते हैं, उनका ध्यान विधायिका को रखना चाहिए।”

अदालत गंतव्य गुलाटी नामक वकील की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए थे, तथा उन्होंने बीएनएस लागू होने से उत्पन्न “आवश्यक कानूनी कमी” को दूर करने की मांग की थी। बीएनएस के लागू होने के कारण भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को भी निरस्त करना पड़ा। वकील ने कहा कि बीएनएस भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के समतुल्य किसी भी प्रावधान को शामिल नहीं करती है, जिसके कारण प्रत्येक व्यक्ति, विशेषकर ‘एलजीबीटीक्यू’ समुदाय प्रभावित होगा। उन्होंने एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों के खिलाफ कथित अत्याचारों पर भी प्रकाश डाला। भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत दो वयस्कों के बीच बिना सहमति के अप्राकृतिक यौन संबंध, नाबालिगों के खिलाफ यौन गतिविधियां और पशुओं से यौन संबंध को दंडित किया जाता है। आईपीसी की जगह लेने वाली बीएनएस एक जुलाई 2024 को प्रभावी हुई थी।



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