गाजीपुर: तुलसी को हिंदू धर्म में देवी पौधा माना जाता है. यह अपने आयुर्वेदिक गुणों के लिए भी प्रसिद्ध है. इसे हरिप्रिया, विष्णुप्रिया और कृष्ण बल्लभ जैसे नामों से पूजा जाता है. आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी के रूप में देखा गया है जो कई बीमारियों से निजात दिलाने में सहायक है.
आयुर्वेद में तुलसी का महत्व
आयुर्वेदिक चिकित्सक हर्षवर्धन श्रीवास्तव के अनुसार, तुलसी को देव पौधा कहा गया है. इसका उपयोग सर्दी (पीनस), जननांग खुजली (कंडू), चर्म रोग और ज्वर जैसे विकारों के उपचार में किया जाता है. तुलसी की मंजरी मूत्र संबंधी विकारों में फायदेमंद है जबकि कमजोर महिलाओं के लिए यह हड्डियों को मजबूत करने में सहायक है. तुलसी का सेवन नपुंसकता दूर करने और धातु वृद्धि में भी उपयोगी है.
तुलसी के औषधीय लाभ
सर्दी-जुकाम: तुलसी के काढ़े से सर्दी और गले की खराश में राहत मिलती है.
चर्म रोग: तुलसी का चूर्ण चर्म रोगों में लाभकारी है.
हड्डियों को मजबूती: तुलसी महिलाओं में अस्थि पोषण को बढ़ावा देती है.
युवावस्था बनाए रखना: नियमित सेवन त्वचा को निखारता है और आपको युवा बनाए रखता है.
मूत्र रोग: तुलसी की मंजरी मूत्र विकारों का प्रभावी उपचार करती है.
ऐसे करें तुलसी का सेवन
काढ़ा: तुलसी, अदरक और गुड़ से बना काढ़ा रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.
चूर्ण: तुलसी के पत्तों को सुखाकर चूर्ण बनाएं और सुबह सेवन करें.
ताजा पत्तियां: खाली पेट तुलसी की 4-5 पत्तियां चबाएं.
चाय: तुलसी पत्तियों को चाय में मिलाकर पिएं.
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
तुलसी का विवाह भगवान विष्णु से होता है जो इसे धार्मिक दृष्टि से विशेष बनाता है. इसे देवताओं की प्रिय माना गया है और हर घर में इसकी पूजा होती है. यह न केवल आध्यात्मिक लाभ देती है बल्कि इसे स्वास्थ्य की दृष्टि से “देव औषधि” भी माना गया है.
तुलसी आपके घर में मौजूद एक ऐसा पौधा है जो पूजा से लेकर चिकित्सा तक हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण है. इसे अपने दैनिक जीवन में शामिल करके न केवल रोगों से बचा जा सकता है बल्कि शरीर को मजबूत और मन को शांत रखा जा सकता है.
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FIRST PUBLISHED : December 25, 2024, 19:00 IST