AIIMS New Delhi: ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज नई दिल्ली के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गई है. हाल ही में एम्स ट्रामा सेंटर में बनी लैब को एनएबीएल मान्यता हासिल हो गई है. ऐसे में न केवल यह एम्स की पहली लैब है जो एनएबीएल एक्रेडिटेड है, बल्कि स्टेंडर्ड लैब बन चुकी है जो ग्लोबली एक्सेप्टेड है और देशभर के सरकारी अस्पतालों में कम ही देखने को मिलती हैं.
इस बारे में एम्स ट्रॉमा सेंटर के चीफ डॉ. कामरान फारुख ने बताया कि एम्स में की पहली लैब को मिले इस एक्रेडिटेशन का बडा महत्व है. अब यह एक विश्वसनीय लैब है और यहां जांच में गलती होने की संभावना काफी कम होती है. वहीं अगर गलती होती भी है तो वह तुरंत रिपोर्ट हो जाती है. ऐसे में जांचों के रिजल्ट बहुत सही आते हैं. इतना ही नहीं यहां कराई जाने वाली जांच न केवल भारत बल्कि दुनिया के किसी भी देश में मान्य होगी.
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कैसे मिलती है मान्यता?
डॉ. फारुख कहते हैं कि नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिबरेशन लैबोरेटरीज की ओर से मान्यता लैब की क्वालिटी कंट्रोल के तहत पूरे प्रोसेस के लिए मिलती है, कि सैंपल कितने सही तरीके से और समयसीमा के अंदर लिए जा रहे हैं. तय समय सीमा में उनकी जांच हो रही है, सैंपल कंटामिनेटेड तो नहीं है और टर्न अराउंट टाइम में एक्यूरेट रिजल्ट आ रहा है. सब चीजें एक्यूरेट तरीके से हो रही हैं या नहीं. इसके अलावा जो इक्विपमेंट और मशीनें हैं वे पूरी तरह सही काम कर रही हैं या नहीं. यह एनएबीएल मान्यता एक तरह से सटीकता की मुहर लगने जैसी है.
रोजाना कितने टेस्ट, कितनी देर में रिपोर्ट?
डॉ. कामरान कहते हैं कि एम्स ट्रॉमा सेंटर की इस लैब में एक दिन में बायोकैमिस्ट्री लैब में करीब 200 सैंपल लिए जाते हैं और उनकी जांच की जाती है, वहीं माइक्रोबोयोलॉजी में करीब 50 जांचें रोजाना होती हैं. वहीं हर जांच का रिजल्ट लगभग एक घंटे के अंदर आ जाता है.
डॉ. फारुख ने बताया कि एम्स की बाकी लैब्स को भी एनएबीएल मान्यता दिलवाने के लिए कोशिश की जा रही है. आमतौर पर प्राइवेट लैब्स अपनी लैब में पेशेंट्स को बुलाने के लिए और भरोसा कायम रखने के लिए एनएबीएल एक्रेडिटेशन के लिए प्रयास करते हैं. सरकारी अस्पतालों में वैसे भी मरीज आते ही हैं और लैब्स में जांच होती ही हैं, लेकिन एम्स स्टेंडर्ड पर काम कर रहा है.
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FIRST PUBLISHED : July 26, 2024, 16:25 IST