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Saturday, September 14, 2024

नारायणसाईं को जेल में नहीं मिलेगा लैपटॉप, HC ने राष्ट्रीय सुरक्षा को भी बताया खतरा

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गुजरात हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा कि राज्य सरकार को ज्ञान और अनुसंधान उद्देश्यों को पूरा करने के लिए राज्य की जेलों में बंद कैदियों को इंटरनेट की सीमित पहुंच प्रदान करने पर विचार करना चाहिए। जस्टिस हसमुख डी सुथार ने कहा कि अब समय आ गया है कि जेल अधिकारी प्रौद्योगिकी को अपनाएं और जेल में डिजिटल वातावरण बनाएं। कोर्ट आसाराम बापू के बेटे नारायणसाईं आशाराम हरपलानी की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें रेप के आरोपी नारायणसाई ने जेल में व्यक्तिगत रूप से लैपटॉप, आईपैड और कंप्यूटर की सुविधा उपलब्ध कराने की मांग की थी।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने जेल में बंद आरोपियों और दोषियों के ज्ञान और अनुसंधान के उद्देश्य को समृद्ध करने के उद्देश्य से राज्य सरकार को विशेषज्ञों से परामर्श करने कहा। कोर्ट ने कहा कि उपयोगकर्ताओं द्वारा धोखाधड़ी को रोकने के लिए फायरवॉल या अन्य तकनीक का उपयोग करके इंटरनेट एक्सेस को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने और सीमित इंटरनेट एक्सेस प्रदान करने के लिए एसओपी तैयार करना चाहिए। साथ ही कहा कि दुरुपयोग के मामले में ऐसी सुविधाओं को बंद कर देना चाहिए।

कोर्ट ने बलात्कार के दोषी नारायणसाईं की जेल में लैपटॉप, आईपैड और कंप्यूटर का उपयोग करने की अनुमति मांगने वाली याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं। याचिका में यह तर्क दिया गया था कि रेप के दोषी आसाराम बापू के बेटे नारायणसाईं एक अच्छे लेखक हैं। उन्होंने जेल जाने से पहले 19 किताबें लिखीं। गिरफ्तारी के बाद भी उन्होंने पांच और किताबें प्रकाशित कीं। याचिका में यह भी कहा किया गया कि उनके और उनके परिवार के खिलाफ मामलों के दस्तावेज हजारों पृष्ठों में हैं। ऐसे में उन्हें अपने वकीलों के साथ संवाद करने में सक्षम बनाने के लिए एक लैपटॉप और फोन प्रदान किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि निजी मोबाइल और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल जेल मैनुअल और जेल अधिनियम का उल्लंघन होगा। कोर्ट ने कहा कि इस बात की प्रबल आशंका है कि अगर नारायणसाई को मोबाइल और इंटरनेट सुविधाएं प्रदान की गईं, तो वह अपने अनुयायियों और बाहरी लोगों से संपर्क कर सकते हैं। इससे सार्वजनिक शांति को खतरा हो सकता है। कोर्ट ने जेल के अंदर नारायणसाई के आचरण पर भी ध्यान दिया। कहा कि उसे मोबाइल फोन का उपयोग करने की अनुमति देना राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकता है।

कोर्ट के आदेश में कहा गया कि जहां तक ​​याचिकाकर्ता का सवाल है, उसका जेल आचरण भी अच्छा नहीं है। वह बार-बार जेल में अवैध रूप से मोबाइल रखते और इस्तेमाल करते हुए पकड़ा गया है। इसके लिए जेल में अपराध भी दर्ज किए गए हैं। फिर भी उन्होंने जेल से भूख हड़ताल का आह्वान किया और कैदियों को उकसाया और सार्वजनिक शांति भंग की। कोर्ट ने यह भी कहा कि नारायणसाईं की छुट्टी की अर्जी को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। साथ ही जेल के अंदर उनके आचरण के कारण उन्हें प्रदान की जाने वाली सुविधाएं भी निलंबित कर दी गई थीं।

कोर्ट ने कहा कि मोबाइल फोन, बैटरी और तंबाकू जैसी अनधिकृत वस्तुएं रखने के लिए याचिकाकर्ता को एक अलग उच्च सुरक्षा सेल में रखा गया था। इसके अलावा, उनकी कैंटीन सेवाएं और मुलाकात अधिकार भी एक महीने के लिए निलंबित कर दिए गए। याचिकाकर्ता का आचरण उसकी स्वतंत्रता के दुरुपयोग का संकेत देता है और उसे जेल में लैपटॉप, कंप्यूटर या आईपैड जैसी व्यक्तिगत वस्तुएं रखने की अनुमति देने से सार्वजनिक शांति का और अधिक उल्लंघन हो सकता है। इस प्रकार कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि गैजेट के उपयोग की ऐसी अनुमति देने का कोई मामला नहीं बनता है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वकील आशीष एम दगली जबकि राज्य सरकार की ओर से लोक अभियोजक हार्डी और अतिरिक्त लोक अभियोजक एचके पटेल ने कोर्ट में दलीलें रखीं।



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