अमेठी. हर जगह कुछ न कुछ ऐसा जरूर है जो उसे अनूठा बनाता है. लेकिन अगर किसी जिले से किसी खास व्यक्तित्व का नाता बन जाए तो ये और बड़ी हलचल है. वह इलाका गर्वित महसूस करेगा. इसी कड़ी में हम आपको एक ऐसे सूफी संत के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने देश की धरोहर के रूप में अपनी पहचान बनाई और आज अपनी गैर-मौजूदगी में भी लोगों के बीच आदर्श बने हुए हैं.
हम बात कर रहे हैं महान कवि और सूफी संत मलिक मोहम्मद जायसी की, जिनका उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले से गहरा नाता रहा. यहां आज भी उन्हें सभी धर्मों के लोग सम्मान की नजर से देखते हैं.
अमेठी जनपद के जायस नगर में महान सूफी संत मलिक मोहम्मद जायसी की जन्मस्थली और शोध संस्थान है. उनका जन्म जायस नगर के तांबाना इलाके साल 1477 में हुआ था.
मलिक मोहम्मद जायसी महान सूफी संत थे. उन्होंने कई सदी पहले आम जनमानस को समर्पित करने वाली अवधी भाषा में अपनी लेखनी चलानी शुरू की. 16वीं सदी में उन्होंने मशहूर महाकाव्य ‘पद्मावत’ की रचना की. उस समय की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जानकारी के लिए पद्मावत महत्त्वपूर्ण श्रोत है. उनकी अन्य रचनाओं में खास हैं अखरावट, आखिरी कलाम, चित्ररेखा, मसलानामा और कहरानामा.
ऐसे गई जान
इतिहास के प्रवक्ता गोविंद सिंह कहते हैं कि मलिक मोहम्मद जायसी राज परिवार के दरबारी कवि थे और अमेठी राज परिवार के निजी सलाहकार के रूप में भी महाराज के साथ रहते थे. उनकी मृत्यु एक गलती का नतीजा है. एक समय वे जंगल में घूम रहे थे. इसी बीच घुसपैठिया समझकर राज परिवार के सैनिकों ने गोली चला दी. इस हादसे में जायसी की मौत हो गई. उन्हें पूरे सम्मान के साथ रामनगर में दफनाया गया. यहां आज भी जायसी का मकबरा है, जहां पर लोग दूर-दूर से घूमने आते हैं.
पिता मामूली जमींदार
मलिक मोहम्मद जायसी के पिता अशरफ एक मामूली जमींदार थे और खेती कर अपने परिवार का जीवनयापन करते थे. गोविंद सिंह कहते हैं कि आज भी हर धर्म के लोग इस सूफी संत की खूब चर्चा करते हैं. मलिक मोहम्मद जायसी की कविताएं आज कई बड़े शैक्षिक संस्थानों में पढ़ाई जाती हैं.
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FIRST PUBLISHED : January 7, 2025, 17:16 IST