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Saturday, June 29, 2024

मानसून में जानवरों को इन बीमारियों से है खतरा, जा सकती है जान

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सतना: मानसून के दस्तक देने के साथ ही पशुओं में वर्षा ऋतु में होने वाली बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. ख़ास तौर पर एफएमडी, एचएस, बीक्यू, गलघोंटू या खुरपका मुंह पका जैसी संक्रामक बीमारियां जिनके होने से पशुओं की मौत भी हो सकती है. यह बीमारियां जानवरों में आसानी से एक जानवर से दूसरे जानवर में फैल जाती हैं.

लोकल 18 से बात करते हुए जिले के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. बृहस्पति भारती ने बताया कि खुरपका व मुंहपका विषाणुजनित बीमारी है. यह संक्रमण से फैलने वाली बीमारी है, जो की बेहद ही घातक है. इसलिए समय रहते इसका उपचार और बचाव के उपाय करने चाहिए. डॉ. भारती ने बताया कि पशुओं को इन रोगों से बचाने का सब से अच्छा माध्यम टीका है. पशुओं को इन बीमारियां का टीकाकरण करा कर सुरक्षित किया जा सकता है. क्योंकि टीकाकरण से पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है. पशु इन बीमारियों से खुद को सुरक्षित कर पाते हैं.

खुरपका व मुहपका रोग के लक्षण
खुरपका व मुंहपका रोग से पीड़ित पशुओं की प्राथमिक पहचान पशुओं के खुर यानी पांव के निचले हिस्से या मुंह से होती हैं. रोग होने की स्थित में पशुओं के खुर या मुंह में छाले नज़र आते हैं. इसके अलावा पशुओं में तेज बुखार, मुंह से लार और सफ़ेद फेन निकलने लगता है. पशु लंगड़ा के चलने लगते हैं. पशु खाना पीना भी कम कर देते है. जिसके चलते वह कमजोर होने लगते हैं. ऐसे में समय से इलाज नहीं मिला तो पशुओं की मौत भी हो जाती है.

बचाव के उपाय
1. सब से बेहतर उपाय है टीकाकरण, टीकाकरण से पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे पशुओं में इस बीमारी का खतरा पूरी तरह खतम हो जाता है. रोग से पीड़ित पशु के पैर को नीम और पीपल की छाल से तैयार काढ़ा से दिन में 3 बार धुलना चाहिए. प्रभावित अंग को फिनाइल-युक्त पानी से धुलना चाहिए ताकि मक्खी न बैठने पाए साथ ही चिकित्साक द्वारा दिए गए मलहम का प्रयोग करना चाहिए. पशुओं के मुँह के छाले ठीक करने 1 ग्राम फिटकरी 100 मिलीलीटर पानी में घोलकर दिन में तीन बार धोना चाहिए. रोग के लक्षण समझ आते ही पशु चिकित्सक कसे परामर्श तुरंत लें.

इन बातों से सावधानी रखें
रोग से पीड़ित पशुओं को साफ- सुथरी हवादार जगह पर रखें. प्राभावित पशु को स्वस्थ्य पशुओं से अलग और दूर रखें. प्राभावित पशु की देखरेख करने वाले व्यक्ति को हाथ-पांव साफ कर के ही दूसरे पशुओं के संपर्क में जाना चाहिए. पीड़ित पशुओं के मुँह से निकलने वाले लार एवं पैर के घाव के संसर्ग में आने वाले वस्तुओं पुआल, भूसा, घास आदि को जला देना चाहिए या जमीन में गड्ढा खोदकर चूना के साथ गाड़ दिया जाना चाहिए.

Tags: Animal husbandry, Local18, Satna news



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