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बॉलीवुड की सबसे महंगी दरबारी सीन के पीछे छिपा है एक ऐसा राज, जिसे आज तक कम ही लोग जानते हैं. असली सोने की मूर्ति और असली मोतियों की बरसात ने इस सीन को बना दिया था असाधारण। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शूटिंग के दौरान प्रोड्यूसर और डायरेक्टर के बीच इस पर कितनी बड़ी बहस हुई थी? आइए जानते हैं-
भारत में फिल्मों की शुरुआत 1913 में बनी ‘राजा हरिश्चंद्र’ से हुई थी. ये मूक फिल्म भारतीय सिने इतिहास की पहली कड़ी मानी जाती है. इसने उस दौर में मनोरंजन की एक नई लहर पैदा की…(PC-Imdb)


1960 में रिलीज हुई ‘मुगल-ए-आजम’ ने भारतीय सिनेमा को एक नई ऊंचाई दी. भले ही ये फिल्म 1960 में आई, लेकिन इसकी तैयारी 16 साल पहले ही शुरू हो गई थी. इतने लंबे वक्त में फिल्म कई बार रुकी, बदली और फिर दोबारा शुरू हुई……(PC-Imdb)


के आसिफ ने भले ही ज्यादा फिल्में न बनाई हों, लेकिन ‘मुगल-ए-आजम’ में उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी झोंक दी. फिल्म के हर फ्रेम में उनका परफेक्शन झलकता है. छोटी-छोटी डिटेलिंग में भी उन्होंने कोई समझौता नहीं किया…….(PC-Imdb)


फिल्म के एक भव्य दरबार सीन में विवाद खड़ा हो गया था. के आसिफ चाहते थे कि उसमें जो भगवान कृष्ण की मूर्ति रखी जाए, वो असली सोने की हो. इस पर फिल्म के प्रोड्यूसर से उनका टकराव हो गया……..(PC-Imdb)


काफी बहस और बातचीत के बाद आखिरकार डायरेक्टर की बात मानी गई और असली सोने की मूर्ति इस्तेमाल की गई. ये वही जुनून था जिसने इस फिल्म को ‘महान’ की श्रेणी में ला खड़ा किया…….(PC-Imdb)


प्रोड्यूसर इस खर्च से सहमत नहीं थे और इसी को लेकर शूटिंग एक महीने तक ठप रही. लेकिन आखिरकार फिर से के आसिफ की ही चली और सीन में असली मोतियों का इस्तेमाल हुआ….(PC-Imdb)


फिल्म के कई सीन्स में एक्ट्रेसेज ने असली गहनों का इस्तेमाल किया ताकि सीन में रियलिज्म बना रहे. शायद यही वजह है कि ‘मुगल-ए-आजम’ न सिर्फ एक फिल्म, बल्कि भारतीय सिनेमा का गौरव बन गई…(PC-Imdb)