अयोध्या: अयोध्या के रितेश दास की कहानी हम सभी को एक खास संदेश देती है. रितेश ने समाज के प्रति अपने दायित्वों को समझा. न केवल नदियों की सफाई की, बल्कि लावारिस जानवरों की देखभाल और दुर्घटनाओं में मरे हुए लोगों की मदद भी की. वह हर दुख और सुख में लोगों के साथ खड़े रहते हैं. जब रितेश नदियों की सफाई करते थे, तो लोग उन्हें पागल कहते थे. पर उन्होंने लोगों के कमेंट पर कभी गौर नहीं किया.
कुछ ऐसी है रितेश की कहानी
8 साल की उम्र में रितेश ने अपने पिता को खो दिया. उस समय उनकी मां ने उन्हें सिद्ध पीठ नागेश्वरनाथ में दान कर दिया. यहीं से रितेश के समाजसेवी बनने का सफर शुरू हुआ. सुबह-सुबह सरयू तट पर सफाई करते हुए रितेश लोगों को पागल दिखाई देते थे, लेकिन उनका मन समाज सेवा के लिए समर्पित था. धीरे-धीरे उनका झुकाव गोवंशों की मदद की ओर बढ़ने लगा. वे कुएं में गिरे या दुर्घटनाग्रस्त गोवंशों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते थे. लोगों से उधार लेकर, भीख मांगकर, वह उनके इलाज का प्रबंध करते थे. जब गोवंश मर जाते, तो रितेश उनके शव को नदी में फेंकने के बजाय श्मशान घाट पर दफन करते ताकि नदी दूषित न हो.
कोरोना काल में की हजारों लोगों की मदद
धीरे-धीरे, समाज सेवा के प्रति रितेश का लगाव और बढ़ता गया. कोरोना काल के दौरान उन्होंने हजारों लोगों की मदद की. कई परिवार ऐसे थे, जिन्हें उनके अपने परिजनों ने छोड़ दिया था. यहीं से रितेश का लावारिस लोगों की मदद करने का सिलसिला शुरू हुआ. उन्होंने न केवल लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया, बल्कि निशुल्क प्रक्रिया भी पूरी की. कोरोना काल में ब लोग शवों के पास भी नहीं जाते थे, रितेश दास उन शवों का अंतिम संस्कार अपने हाथों से करते थे.
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अब हर कोई कहता है मसीहा
आज रितेश दास अयोध्या और फैजाबाद में किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. वह हमेशा जरूरतमंदों की मदद के लिए खड़े रहते हैं. आपातकालीन स्थिति में लोग पहले पुलिस या किसी अन्य से संपर्क करने के बजाय रितेश दास को फोन करते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि रितेश हर संभव मदद करेंगे. अब तक रितेश दास ने लगभग 2200 से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया है.
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FIRST PUBLISHED : October 18, 2024, 15:59 IST