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Wednesday, July 2, 2025

वेंगसरकर की ही तरह क्या अगरकर भी छोड़ सकते हैं एक शानदार विरासत?

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विमल कुमार. कहतें हैं समय का पहिया अक्सर अपनी रफ्तार से ही घूमता है और कई मौके पर इतिहास खुद को दोहराता भी है. आज से करीब दो दशक पहले टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और मुख्य चयनकर्ता दिलीप वेंगसरकर ने धारा के खिलाफ जाकर जिस तरह विराट कोहली और और रोहित शर्मा जैसे बेशकीमती तोहफे भारतीय क्रिकेट को दिये थे. अब एक और मुंबई के ही पूर्व खिलाड़ी अजीत अगरकर मुख्य चयनकर्ता के तौर पर वेंगसरकर वाली चूनौतीपूर्ण राह पर सहजता से चलने सी कोशिश कर रहें हैं.

अगरकर को अपनी इस नई पारी में पहले दौर में हेड कोच राहुल द्रविड़ का साथ मिला तो अब गौतम गंभीर उनके साथ इस मुश्किल जुगलबंदी को आगे ले जाने की कवायद में जुटे हैं. ऑस्ट्रेलिया दौरे से ठीक पहले गंभीर-अगरकर की जोड़ी ने चुना नितीश रेड्डी और हर्षित राणा जैसे युवा प्रतिभाओं पर भरोसा दिखाया और पिछले दौरे के अनुभवी खिलाड़ियो जिसमें विजयी कप्तान अंजिक्या रहाणे, बेहद कामयाब बल्लेबाज़ चेतेश्वर पुजारा और उपयोगी ऑलराउंडर शार्दुल ठाकुर के चयन के दावों को नज़रअंदाज़ किया.

हर्षित राणा ने ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट डेब्यू किया.

युवा नीतीश और हर्षित को चुना

भारतीय क्रिकेट में SRH के ऑलराउंडर नितीश रेड्डी और KKR के तेज गेंदबाज हर्षित राणा के ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए चुने जाने पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया था. चयन की चर्चा इसी बात पर केंद्रित रही कि दौरे पर पुजारा, रहाणे और मोहम्मद शमी को भी ज़रुर होना चाहिए था. आलम ये रहा कि रेड्डी औऱ राणा के चयन पर आलोचनाएं भी हुईं और इसे ‘IPL के प्रभाव से टेस्ट चयन’ कहकर खारिज कर दिया गया. इंडियन एक्सप्रेस अख़बार के खेल संपादक ने एक खूबसूरत लेख में अपने दिलचस्प अंदाज़ में ये भी लिखा कि रेड्डी औऱ राणा के चयन के साथ ही कोच गौतम गंभीर की KKR कनेक्शन वाली साजिश की कहानियां भी हर जगह फैल गईं.

खैर, मुंबई में पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया के लिए टीम के रवाना होने से से पहले, रेड्डी के चयन को लेकर गंभीर से एक तीखा सवाल भी किया गया था. उन्होंने आंध्र प्रदेश के 21 साल वाले रेड्डी को “बेहद प्रतिभाशाली” बताया और विश्वास जताया कि “अगर उन्हें मौका दिया गया तो वह खुद को साबित करेंगे.”

हर्षित राणा से बचते नजर आए मार्नस लैबुशेन. (AP)

हर्षित राणा से बचते नजर आए मार्नस लैबुशेन. (AP)

शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि पर्थ में खेले गए पहले टेस्ट में कप्तान रोहित शर्मा नहीं थे. दो सबसे अनुभवी और बड़े मैच-विनर रविचंद्रण अश्विन और रविंद्र जडेजा को बेंच पर बिठाने से कोच अगरकर ने हिचकिचाहट नहीं दिखाई. उस मैच में रेड्डी ने अपनी छोटी लेकिन उपयोगी पारियों से दिल जीता. मैच से ठीक एक दिन पहले पर्थ में ही टीम इंडिया के होटल के ठीक पास में एक मशहूर भारतीय रेस्तरां ‘बाल्टी’ हैं जहां रेड्डी और राणा चुपचाप शांत बाव से डिनर कर रहे थे.

नीतीश और हर्षित का असली टेस्ट शुरू

उनसे ठीक 2 मीटर की दूरी पर एक दूसरे टेबल पर ये लेखक भी खाना खा रहे थे लेकिन अनायास ही उनकी नज़रें इन दोनों युवाओं पर जा रही थी. उनकी भाव-भंगिमा को देखकर ऐसा लग रहा था कि उन्हें ये बता दिया गया है कि अगला दिन उनके करियर का सबसे बड़ा दिन होने वाला है और अब उनका टेस्ट क्रिकेट में टेस्ट होगा. खाना खत्म होने के बाद उस रेस्टरां में मौजूद 99 फीसदी लोगों को ये पता नहीं था कि ये दोनों युवा भारतीय खिलाड़ी है लेकिन उस रेस्टरां के मालिक को शायद आने वाली बेहतर भविष्य का आभास मिला हो जिसके चलते उन्होंने उनसे गुज़ारिश की कि दोनों के साथ उनकी एक यादगार तस्वीर बन जाये. दोनों युवाओं ने खुशी-खुशी स्टारडम के इस पहले कदम का स्वागत किया.

बाउंसर को समझो गोली

पर्थ में पहले दिन 150 रन पर ऑल ऑउट होने वाली टीम इंडिया के लिए रेड्डी ने सबसे ज़्यादा रन बनाने के बाद प्रेस कांफ्रेस में आए. इस लेखक ने सबसे आखिर में उनसे मैच से पहली वाली शाम की उस घटना का जिक्र करते हुए ये सवाल पूछा कि कोच गंभीर ने उन्हें ऑस्ट्रेलिया और पर्थ की बेहद ख़तरनाक उछाल लेने वाली पिच पर बल्लेबाज़ी की चुनौती से निपटने के लिए क्या कहा. उन्होंने कहा- ‘वह कह रहे थे कि ‘ आपको बाउंसर का सामना उसी तरह से करना है जैसे की आप देश के लिए गोली खा रहे हो’. कोच की इस बात से मेरा हौसला बढ़ा. उन्होंने जब ऐसा कहा तो मुझे लगा कि देश के लिए मुझे गोली खाने की जरूरत है. यह सबसे अच्छी बात है जो मैंने गौतम सर से सुनी है.’ प्रेस कांफ्रेस में सबसे आखिर में आया ये जवाब अगले दिन हर अख़बार औऱ टीवी चैनल की सबसे बड़ी हेडलाइन बनी.

इत्तेफाक से टीम इंडिया के पर्थ टेस्ट जीतने के बाद इस लेखक की मुलाकात कोच गौतम गंभीर से ठीक उसी बाल्टी रेस्तरां के बाहर होती है जहां पर वो अपनी पत्नी और बच्चों को लेने के लिए आये थे. गंभीर और ये लेखक एक-दूसरे को रणजी ट्रॉफी के दिनों से जानते हैं लेकिन पिछले 10 सालों में शायद 10 मिनट भी एक साथ अनौपचारिक तौर पर नहीं बिताये जिसकी वजह रही है गंभीर का व्यस्ततम कार्यक्रम. ख़ैर, उस रात हमारी किस्मत अच्छी थी और गंभीर ने अपने परिवार कोच के साथ टहलते हुए होटल जाने की बजाए हमारे साथ रेस्तरां से लेकर अपने होटल तक के मिनटों की चहलकदमी को आधे घंटे से ज़्यादा वक्त में पूरा किया.

जब इस लेखक ने हेड कोच को युवा खिलाड़ियों के बेहतरीन शुरुआत के लिए बधाई दी तो उन्होंने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में कहा कि अगर तारीफ का कोई हकदार है तो वो सिर्फ खिलाड़ी हैं. उन्होंने ये भी बताया कि अक्सर भारतीय क्रिकेट में कप्तान या कोच में हीरो तलाशने की कोशिश की जाती है लेकिन हर कोई पर्दे के पीछे सबसे मुश्किल काम करने वाले चयनकर्ताओं को भूल जाते हैं.

गंभीर और अगरकर की जोड़ी कमाल

गंभीर के मन में मौजूदा चीफ सेलेक्टर अजीत अगरकर के लिए ठीक वैसा ही सम्मान है जैसा कि पूर्व कोच राहुल द्रविड़ का अगरकर के लिए था. द्रविड़ की ही तरह गंभीर भी अगरकर के साथ खेल चुके हैं और रग-रग से वाकिफ हैं कि मुख्य चयनकर्ता के लिए प्रथमिकता सिर्फ भारतीय क्रिकेट की जीत ही होती है.

वाकई में अगर अगरकर ने सिर्फ रेड्डी के 24 प्रथम श्रेणी मैचों में 23 की बल्लेबाजी औसत और 26 की गेंदबाजी औसत को देखते हुए राय बना ली होती तो एक बेहद प्रतिभाशाली खिलाड़ी की झलक शायद इस दौरे पर किसी को भी नहीं मिल पाती. राणा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. जुलाई के महीने में श्रींलका दौरे पर वन-डे सीरीज़ के दौरान राणा लगातार कोहली और रोहित जैसे दिग्गजों को नैट्स में परेशान कर रहे थे और इसलिए उनका भी दौरे पर चयन हैरान करने वाला नहीं था.

पर्थ टेस्ट में भारत की अप्रत्याशित जीत ने इन दोनों के चयन को सही ठहराया. रेड्डी ने महत्वपूर्ण रन बनाए और राणा ने अहम विकेट लिए. खेल प्रेमियों और जानकारों को इन युवा खिलाड़ियों की काबिलियत से ज्यादा इनके धैर्य ने प्रभावित किया है. ये माना जा सकता है कि गंभीर और अगरकर ने शायद इस शुरुआती सफलता के बाद राहत की मुस्कान भी साझा की होगी.

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नीतीश कुमार रेड्डी ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ डे नाइट टेस्ट में खेली दिलेर पारी.

नीतीश रेड्डी ने खुद को साबित किया

एडिलेड टेस्ट के पहले दिन, रेड्डी ने पिंक बॉल टेस्ट में बल्लेबाज़ी की चुनौती को शायद किसी सैयद मुश्ताक अली टूर्नामेंट में खेलने जैसा माना. उन्होंने अपनी 42 रनों की पारी में रिवर्स स्कूप से एक छक्का जड़ा, लेकिन दूसरे छोर पर विकेट लगातार गिरने के चलते वो बड़ी पारी नहीं खेल पाये. उनमें वो खासियत, वो प्रतिभा नजर आई है जिसे क्रिकेट में अक्सर जौहरी वाली आंखे ही पहचान सकती हैं जो शायद पत्रकारों की सामान्य आंखों से परे होता है.

भारतीय क्रिकेट खुद की पीठ थपथपा सकता है जिसके पास आज अगरकर और गंभीर की जोड़ी कोच और मुख्य चयनकर्ता के तौर पर है जिनके पास एक-दूसरे के फैसलों में ईमानदारी और आत्मविश्वास और एक-दूसरे के प्रति समर्थन का भी अटूट भाव है. इनके चयन और फैसले भारतीय क्रिकेट के लिए नई उम्मीदें लेकर आए हैं. ये महज़ इत्तेफाक नहीं कि गंभीर ने आईपीएल की करोड़ों रुपयों वाली केकेआर की कोचिंग और टीवी कांमेट्री के आसान प्रस्ताव को ठुकराते हुए ये मुश्किल डगर चुनी है.

गंभीर ने लिया बड़ा फैसला

अगर वो चालाक होते तो शायद कुछ साल ठहरकर जब सीनियर खिलाड़ी परिपेक्ष्य से बाहर होकर क्रिकेट को अलविदा कह चुके होते तो तो नये युवाओं के साथ मिलकर एक नई टीम बनाने की ज़िम्मेदारी लेते. यही बात अगरकर के साथ भी लागू होती है को डेल्ही कैपिटल्स के साथ आईपीएल में अच्छी कमाई कर रहे थे. कामेंट्री के लिए भी वो अंग्रेजी-हिंदी और मराठी में अपना ज्ञान बांटते हुए करोडों का बैंक बैलेंस बिना किसी की नज़रों में खटके और आलोचना झेले आसानी से कमा सकते थे. इत्तेफाक से एडिलेड टेस्ट की पूर्व संध्या पर इस लेखक की अगरकर से मुलाकात होती है जो स्टेडियम से अपने होटल का करीब एक किलोमीटर का रास्ता टहलते हुए पूरा कर रहे थे.

अनौपचारिक बातचीत में इस लेखक ने एक बार फिर जब अगरकर उनके फैसलों के लिए शाबाशी देनी चाही तो उनका भी जवाब गंभीर की ही तरह था- भाई- ये हमारी ड्यूटी है और हमने कोई तोप नहीं मारा है. मैच आखिरकार खिलाड़ी ही जिताते हैं ना कि कोच या चयनकर्ता. हां, अगरकर ने इतना ज़रुर कहा कि वो शुक्रगुजाऱ है भारतीय सचिव जय शाह का जिन्होंने उन्हें कप्तान और कोच के काम करने के तरीकों में जरा भी हस्तक्षेप नहीं किया है. अतीत में बीसीसीआई के प्रभावशाली अधिकारियों के चयन समिति के फैसले में दखल देने के कई किस्सा मशहूर हैं.

पहले चयन समिति को अक्सर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. ख़ासकर तब जब सबसे महत्वपूर्ण चयन का निर्णय ऐसे चयनकर्ताओं द्वारा किए जाते थे जिनके साख को लेकर हर कोई सवाल उठा देता था. जिनके पास दिग्गजों के मुकाबले काफी कम अनुभव था. अच्छी बात ये है कि अगरकर और गंभीर, दोनों का ही क्रिकेट जगत में कद, प्रतिष्ठा, मान और अच्छा अनुभव है. वो सहासी फैसले ले सकते हैं क्योंकि अपने करियर और जीविका के लिए सिर्फ इन पदों के मोहताज नहीं है. और ये विकल्प उन्हें काफी इत्मिनान और दायर देता है कि वो बिना चिंता के अपने दिल और दिमाग के फैसलों में संतुलन और सामंजस्य बनाये रख सकते हैं. उनकी राय और उनके फैसलों का आत्मविश्वास भारतीय क्रिकेट के भविष्य के लिए आशा की किरण बन सकती है.

अगरकर-गंभीर की जोड़ी के लिए मौजूदा ऑस्ट्रेलिया दौरा उनके लिए सबसे कड़ी चुनौती है. पर्थ का पहला पड़ाव इस जोड़ी ने आसानी से पास किया लेकिन एडिलेड में रोहित के मिड्ल ऑर्डर में खेलने, वाशिंटन सुंदर की जगह आर अश्विन को प्लेइंग इलेवन में शामिल करने के फैसलों से उन पर आलोचनओं का हमला हुआ. पहली पारी में हर्षित राणा के संघर्ष के बाद ये भी तर्क भी दिया गया कि शायद इस पिच पर आकाशदीप बेहतर विकल्प हो सकते थे. ख़ैर, ऐसे फैसले और इसकी आलोचना तो कोच-चयनकर्ता की रोजर्मरा रुटिन का हिस्सा हैं. लेकिन, असली चुनौती तो अब आगे हैं. ख़ासतौर पर इसी ऑस्ट्रेलिया दौरे से उसकी शुरुआत हो चुकी है.

अगरकर और गंभीर ने उठाई जिम्मेदारी

अगरकर-गंभीर को जोड़ी ने भारतीय क्रिकेट में एक पीढी-बदलाव वाले दौर में ज़िम्मेदारी ली है. अब उनके सामने एक और बड़ी चुनौती है. भारतीय क्रिकेट के लिए एक बड़े बदलाव का समय आ रहा है. अगरकर और गंभीर ने पर्थ में अश्विन-जडेजा के 850 विकेट के अनुभव को अपने फैसलों पर हावी होने नहीं दिया था. लेकिन, आने वाले वक्त में क्या वो रोहित और विराट जैसे दिग्गजों (जिन्होनें साझे तौर पर लगभग 50 हज़ार अंत्तराष्ट्रीय रन भारतीय क्रिकेट को दियें हैं) के परे जाने के फैसलों पर एक ठोस राय सही वक्त पर ले सकते हैं? खास़तौर पर ये देखते हुए कि इनका कोई भी फैसला कोहली-रोहित के सोशल मीडिया पर करोंड़ों कट्टर समर्थकों के बीच अचानक से ही उन्हें विलेन बना सकता है.

प्रतिभाशाली युवा खिलाड़ियों की हौसला अफजाई करते हुए उन्हें अतंतराष्ट्रीय क्रिकेट में चुनौतियों के समुंद्र में ढकेल देना उनका समर्थन करना एक बात है, लेकिन दिग्गज खिलाड़ियों के भविष्य के बारे में- भारतीय क्रिकेट के बेहतर भविष्य का ख्याल रखते हुए एक सूझबूझ और साहस वाला फैसला सही समय पर लेना बिल्कुल अलग. इतिहास गवाह है कि अतीत में चयनकर्ता और कोच ने कपिलदेव और सचिन तेंदुलकर जैसे दिग्गजों के करियर पर भी सटीक फैसले लेने के समय चूके थे, (संदीप पाटिल को हालांकि वेंगसरकर की ही तरह एक अपवाद के तौर पर देखा जा सकता है जिन्होंने तेंदुलकर को वन-डे क्रिकेट छोड़ने की बात उनके मुंह पर कह दी थी) ऑस्ट्रेलिया दौरा ख़त्म होते-होते और बोर्डर-गावस्कर ट्राफी का नतीजा या तो गंभीर-अगरकर का काम बेहद आसान कर देगा या फिर बेहद मुश्किल और ये बात भविष्य के गर्भ में ज़्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह सकती है.

Tags: Ajit Agarkar, Dilip Vengsarkar, Gautam gambhir



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